Friday, January 28, 2011


खुशबू बसंत की


कुँवर कुसुमेश 

चारो तरफ़ से आयेगी खुशबू बसंत की,
बादे-सबा भी लायेगी खुशबू बसंत की.

रंगीनिये-हयात की खुशबू संभल ज़रा,
तुझको भी आज़मायेगी खुशबू बसंत की.

जिसका चला गया कहीं महबूब छोड़कर,
उसको न रास आयेगी खुशबू बसंत की.

अच्छा है दोस्तों के तसव्वर में डूबना,
यादों में सिमट जायेगी खुशबू बसंत की.

राहे-वफ़ा में प्यार,मुहब्बत की तर्ज़ पर,
रह रह के गुनगुनायेगी खुशबू बसंत की.

गुज़रे हुए बरस से अधिक इस बरस 'कुँवर',
खुशियाँ लुटा के जायेगी खुशबू बसंत की.
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बादे-सबा=सुबह की हवा, रंगीनिये-हयात=ज़िन्दगी की रंगीनी 
राहे-वफ़ा= वफ़ा की राह 

Monday, January 24, 2011


     आज़ादी में जी रहे ........
(कुण्डली)

कुँवर कुसुमेश 

आज़ादी में जी रहे , छः दशकों से आप,

सुख के पल दो-चार हैं,अनगिन हैं संताप.

अनगिन हैं, संताप हर तरफ शोर मचा है,

दुःख का बादल सभी ओर घनघोर उठा है.

लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,

बेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
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       जय हिन्द,जय भारत .

Wednesday, January 19, 2011

पेड़ - पौधे
 ( दोहे )    
कुँवर कुसुमेश  
पौधे अवशोषित करें,हर ज़हरीली गैस.
मानव करता फिर रहा,उनके दम पर ऐश.

चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
दिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.

अरे ! कुल्हाड़ी पेड़ पर,क्यों कर रही प्रहार.
ये भी मानव की तरह,जीने के हक़दार.

ग्रहण विषैली गैस कर,प्राणवायु का त्याग.
पेड़ प्रदर्शित कर रहे,जग के प्रति अनुराग.

जिसके घर के सामने,खड़ा हुआ है नीम.
उसके घर मौजूद है,सबसे बड़ा हकीम.

चेतनता भरता रहा,पर्यावरण विभाग.
कुम्भकर्ण-सा आदमी,अब तक सका न जाग.
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Monday, January 10, 2011

तेरा ख़त

कुँवर कुसुमेश 


आया है मेरे हाथ में फिर आज तेरा ख़त,
वल्लाह लिए है नया अंदाज़ तेरा ख़त.

अंजामे-मुहब्बत मुझे मालूम नहीं है,
इतना पता है सिर्फ है आग़ाज़ तेरा ख़त.

तनहाइयों में बैठ के पढ़ना है मुनासिब,
डर है कि कहीं खोल न दे राज़ तेरा ख़त.

दुनिया ने कहा प्यार के रस्ते हैं पुरख़तर,
ऐसे में बराबर लगा जाँ-बाज़ तेरा ख़त.

इस दर्ज़ा मिला है मुझे पैग़ामे-मुहब्बत,
गोया कि शहंशाह को मुमताज़ तेरा ख़त.

तब्दील 'कुँवर' पुर्जा-ए-काग़ज़ में हो गया,
दिल में जगा के हसरते-पर्वाज़ तेरा ख़त.
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अंजामेमुहब्बत-मुहब्बत का परिणाम, आग़ाज़-शुरुआत , पैग़ामे-मुहब्बत-मुहब्बत का पैग़ाम  
पुरख़तर- ख़तरनाक , हसरतेपर्वाज़-उड़ने कि इच्छा 

Tuesday, January 4, 2011

दोहे "योग" पर
       
कुँवर कुसुमेश 

रक्तचाप,पथरी,दमा,ह्रदयरोग,मधुमेह.
दूर रहेंगे आपसे , अगर योग से नेह.
                   
बिन औषधि बिन डॉक्टर ,मानव हुआ निरोग.
जिससे ये संभव हुआ,कहते उसको योग.

बरसों के बीमार को,दो दिन में आराम.
चाहे करके देखिये,प्रातः प्राणायाम.

यदि लगती है आपकी,तबियत थोड़ी सुस्त.
योगासन अपनाइए,बनिए चुस्त-दुरुस्त.

दवा करोड़ों व्याधि की,सिर्फ एक है 'योग'.
फिर से महिमा योग की ,जान गए अब लोग.

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