Sunday, January 29, 2012

सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है.......


कुँवर कुसुमेश 

ऐसा नहीं कि रस्मे-मुहब्बत नहीं रही.
दुनिया में सिर्फ आज शराफ़त नहीं रही.

तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही.

सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही.

बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.

देखा न एक बार पलट करके भी 'कुँवर'
गोया ख़ुदा को वाक़ई फुरसत नहीं रही.
*****
शब्दार्थ:-
 रस्मे-मुहब्बत =मुहब्बत की रस्म,
हर्फ़े-वफ़ा=वफ़ा शब्द 

57 comments:

  1. तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
    मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही.-----वाह क्या कहने

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  2. बहुत खूब..क्या बात है.

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    1. दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
      ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही.

      बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
      हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.
      Bahut,bahut sundar!

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  3. हमेशा की तरह शानदार गजल...

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  5. जिंदगी के कई पहलुओं का समावेश इन पंक्तियों में..

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  6. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
    ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही.

    आज के परिवेश पर सार्थक प्रस्तुति ..बहुत खूबसूरत गज़ल

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  7. बहुत खूब....
    गहन अभिव्यक्ति..

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  8. Nice .

    Ved Quran: वेद क़ुरआन में ईश्वर का स्वरूप God in Ved & Quran
    हम परमेश्वर के मार्गदर्शन में चलें जो कि वास्तव में ही ज्ञान का देने वाला है। उसका परिचय वेद और क़ुरआन में इस तरह आया है-
    ...
    1. हुवल अव्वलु वल आखि़रु वज़्-ज़ाहिरु वल्-बातिनु, व हु-व बिकुल्लि शैइन अलीम.
    वही आदि है और अन्त है, और वही भीतर है और वही बाहर है, और वह हर चीज़ का ज्ञान रखता है.
    (पवित्र क़ुरआन, 57,3)

    त्वमग्ने प्रथमो अंगिरस्तमः ...
    अर्थात हे परमेश्वर ! तू सबसे पहला है और सबसे अधिक जानने वाला है.
    (ऋग्वेद, 1,31,2)

    2. ...लै-इ-स कमिस्लिहि शैउन ...
    अर्थात उसके जैसी कोई चीज़ नहीं है.
    (पवित्र क़ुरआन, 42,11)

    न तस्य प्रतिमा अस्ति ...
    उस परमेश्वर की कोई मूर्ति नहीं बन सकती.
    (यजुर्वेद, 32,3)

    क़ुरआन में ईश्वर के स्वरूप का वर्णन देखकर जाना जा सकता है कि वह उसी ईश्वर की उपासना की शिक्षा देता है जिसकी उपासना सनातन काल से होती आ रही है। सनातन धर्म यही है। सनातन सत्य को सब मिलकर थामें तो बहुत सी दूरियां ख़ुद ब ख़ुद ही ख़त्म हो जाएंगी।
    जो चीज़ लोगों को बांटती है वह धर्म नहीं होती।
    जो चीज़ लोगों को ज्ञान के मार्ग से हटा दे, वह भी धर्म नहीं होती।

    सत्य को जानेंगे तो हम सब एक बनेंगे।
    एकता में शक्ति होती है।

    3. क़द तबय्यनर्रूश्दु मिनल ग़य्यि, फ़मयं-यकफ़ुर बित्ताग़ूति व-युअमिम्-बिल्लाहि फ़-क़दिस्-तम-सका बिल् उर्वतिल वुस्क़ा...
    सही बात नासमझी की बात से अलग होकर बिल्कुल सामने आ गई है, अब जो ताग़ूत (दानव) को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान ले आए उस ने एक बड़ा सहारा थाम लिया.
    (पवित्र क़ुरआन, 2,256)

    दृष्ट्वारूपेव्याकरोत् सत्यानृते प्रजापतिः अश्रद्धांमनृते दधाच् छृद्धां सत्ये प्रजापतिः
    अर्थात परमेश्वर ने सत्य और असत्य के तथ्य को समझकर सत्य को असत्य से अलग कर दिया. उसकी आज्ञा है कि (हे लोगो) सत्य में श्रद्धा करो, असत्य में अश्रद्धा करो.
    (यजुर्वेद, 19,77)

    ईश्वर के कल्याणकारी सत्य स्वरूप का ज्ञान केवल ईश्वर की वाणी के माध्यम से ही पाया जा सकता है।
    ईश्वर का सत्य स्वरूप और उसका आदेश आप सबके सामने है, अब जो मानना चाहे वह मान ले।
    http://vedquran.blogspot.com/2012/01/god-in-ved-quran.html

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  9. बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
    हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.

    kya bar hai !!!

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  10. एक बहुत ही गंभीर और मन को प्रभावित करने वाली ग़ज़ल! इसमें सामाजिक-पारिवारिक स्थितियों से उपजती विडंबनाओं को ढोती ज़िंदगी की बेबसी और असहायता के साथ-साथ मानवीय दुर्बलताओं को भी रेखांकित किया गया है।

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  11. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    Bahut Gahari Baat...

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  12. वाह!! जनाब लगता है मेरे अन्तरमन को जबान दे दी…………

    तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
    मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही.

    सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

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  13. तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
    मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही.
    ............................
    बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
    हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.

    सारे शेर ही खूबसूरत ही....
    एक मुकम्मल गज़ल....

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  14. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    सभी शेर बहुत अच्छे लगे...खूबसूरत गज़ल|

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  15. बधाई ||
    खूबसूरत प्रस्तुति ||

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  16. दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
    ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही...bahut sunder ...

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  17. यही है आर्थिक सुधार की सौगात भाई साहब .
    मनमोहन जी ,आहलुवालिया साहब भी पढ़ें और मंद बुद्धि कोंग्रेसी राजकुमार भी जो कलावती की रोटियाँ तोड़ रहें हैं .

    दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
    ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही.

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  18. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    वाह कुंवर जी हकीकत से रु-ब-रु कराते बेहद शानदार गज़ल्………हर शेर दाद के काबिल्।

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  19. बहुत अच्छे हैं सभी शेर...बहुत खूबसूरत |

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  20. बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
    हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.
    बहुत खूब कुसुमेश जी. ग़ज़ल के सभी शे'र सुंदर बन पड़े हैं.

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  21. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.
    वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।

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  22. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.
    वाह!

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  23. waah! bahut khub... kaee din baad kuch itna umda padha.... FB par sab ke sath saanjha kar rhi hun...

    naye blog par aap saadr aamntrit hai

    गौ वंश रक्षा मंच gauvanshrakshamanch.blogspot.com

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  24. वाह बहुत ही उम्दा ....आपके शेर पढ़ कर हर बार अच्छा लगता हैं .....आभार

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  25. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
    ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  26. वाह ....बहुत ही उम्दा

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  27. वाह... बहुत सुन्दर प्रस्तुति! बधाई ||

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  28. सज्दा खुदा के सामने करना फुजूल है,
    मन में तुम्हारे साफ जो नीयत नहीं रही.

    बहुत गहरी बात है इस शेर में।
    मन में यदि निर्मलता नहीं है तो ईश्वर की आराधना व्यर्थ है।

    संदेश देती हुई बढि़या ग़ज़ल।

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  29. सीधे सादे शब्दों में गंभीर बात कह जाना आप की विशेषता है.

    देखा न एक बार पलट करके भी 'कुँवर'
    गोया ख़ुदा को वाक़ई फुरसत नहीं रही.

    यह शेर तो जहन में उतर गया. सचमें खुदा को भी अब पुर्सत नहीं है.

    बधाई.

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  30. Behtareen sir.. kamaal..
    bahut bahut bahut khoob ghazal :):)

    kabhi waq mile to mere blog par bhi aaiyega.. ummed karta hun aapko pasand aayega.. :)
    http://palchhin-aditya.blogspot.com

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  31. दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
    ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही.

    सही कहा है आपने बहुत मुश्किल है गरीब के लिए रोटियां जुटाना...
    हर शेर कुछ कह रहा है... आभार आपका

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  32. बहुत गहरे भाव लिए रचना |
    आशा

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  33. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    .....बेहतरीन गज़ल...हरेक शेर गहन और सार्थक भाव संजोये...आभार

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  34. गहरे भाव की सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,वाह,...उम्दा पोस्ट,...
    welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

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  35. हर शेर पर दिली दाद कुबूल करें, बेहतरीन गज़ल, वाह !!!!!!!!

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  36. gahan soch samajh kee upaj hai ye nayaab gazal .

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  37. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.
    बहुत सुंदर हर पंक्ति सार्थक है !

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  38. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.
    दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
    ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही...
    सटीक पंक्तियाँ! सच्चाई को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है! लाजवाब प्रस्तुती!

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  39. तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
    मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही.

    कबीर दास का दोहा याद आ गया जो तोके कांटा बुवे ताको बोये तू फूल...बहुत सुंदर गजल, आभार!

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  40. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही....

    बहुत खूब कुंवर जी ... गहरी बात आसानी से कह दी इस शेर के माध्यम से ... लाजवाब ...

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  41. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.
    एक सच्चा अच्छा शेर...पूरी ग़ज़ल ही बेजोड़ है...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  42. बहुत सुन्दर रचना,सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

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  43. बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
    हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.
    क्या बात है कुंवर कुसुमेशजी.

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  44. तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
    मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही...बहुत सुन्दर भावो को बहुत ही खूबसूरती से अभिव्यक्त किया..आभार..

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  45. बहुत खूबसूरत गज़ल...

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  46. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    खूबसूरत गज़ल

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  47. बेहतरीन अभिव्यक्ति.........
    कृपया इसे भी पढ़े-
    नेता, कुत्ता और वेश्या

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    1. सुन्दर गजल ..बहुत खूब

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  48. दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
    ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही.

    बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
    हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.

    kushmesh ji bilkul sahi likha hai apne .....yatharth sateek rekhankan ke liye hardik badhai.

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  49. देखा न एक बार पलट करके भी 'कुँवर'
    गोया ख़ुदा को वाक़ई फुरसत नहीं रही.

    sahi kaha aaj kal aesa hi lagta hai
    sunder gazal
    rachana

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  50. सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
    मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

    बहुत खूब...

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  51. तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
    मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही.

    bahut khoob......

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