कुँवर कुसुमेश
बाल श्रमिक बढ़ने लगे,प्रतिदिन कई हज़ार.
इनके जीवन की लगे,नैय्या कैसे पार ?
नन्हे-मुन्नों का उठा,जीवन से विश्वास.
होटल में बच्चे दिखे,धोते हुए गिलास.
कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.
थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
बिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल.
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
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पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
आस पर ही तो जीवन टिका है !!
मानवीय सरोकार की सोच लिए दोहे..... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteपतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
आशा की यही किरण कुछ आश्वस्त करती है वरना तो हालात बहुत ही दुखदायी हैं ! मानवीय संवेदनाओं से भरपूर बेहतरीन रचना ! आभार !
निराशा में ही तो छुपी है कहीं आशा...
ReplyDeleteपतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास...
बहुत सार्थक रचना..
सादर.
देश की गंभीर समस्या पर आपने ये सुंदर दोहे लिखे हैं. ये दोहे एक सकारात्मकता के साथ हैं जो मन को आराम देता है और आशा बँधाता है कि भविष्य में यह ठीक हो जाएगा.
ReplyDeleteAah! Bahut achhee rachana hai!
ReplyDeleteमधुमास अवश्य आएगा !
ReplyDeleteशुभकामनायें कुसुमेश भाई !
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
bahut sunder rachna .....hamare desh ka yahi haal hai...
bas rk din madhumas aayega ise hi soch ker jiye ja rahe hai.sunder bhavpurnn sarthal rachna ke liye badhai
शुक्रवारीय चर्चामंच पर है यह उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteआयेगा मधुमास...आयेगा मधुमास...अस है तो सांस है, उत्कृष्ट रचना !
ReplyDeleteपतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.............सही कहा हैं आपने
उम्मीद हैं तो सब कुछ हैं
कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
ReplyDeleteबचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.
कडवी सच्चाई तो यही है………
थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
ReplyDeleteबिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल.
..
समाज की असल तस्वीर
थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
ReplyDeleteबिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल....
हर दोहा बाल श्रमिक की व्यथा बयान कर रहा है ... कड़े नियम और समाजोक परिवर्तन से ही इसे निजात पाई जा सकती है ...
सभी दोहे बढ़िया हैं!
ReplyDeleteकटु सत्य को कहते सभी दोहे सार्थक लिखे हैं .. संवेदनशील भाव मयी रचना .
ReplyDeleteसार्थकता लिए हुए उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
ReplyDeleteनिराशाजनक स्थिति
ReplyDeleteखूबसूरत दोहे
आज आपके दोहे ऐसे विषय पर केन्द्रित हैं जो समाज के विकृत रूप को उजागर करता है !
ReplyDeleteऔर इस दोहे ने तो उम्मीद की लौ में जैसे प्राण फूँक दिया है !
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
आभार आपका,
नमन आपकी कलम को !
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
बाल श्रमिकों की व्यथा की ओर ध्यानाकर्षण करते दोहे अंत में आशा की ज्योति भी जगा रहे हैं।
kash wo madhumaas jaldi aaye..dasha behtar ho...
ReplyDeleteसार्थक दोहे।
ReplyDeleteकितनी जल्दी आएगा वह दिन?
ReplyDeleteक्या हम किसी बच्चे को कहीं काम करते देख, उसकी शिकायत कर सकते हैं?
एक दिन आएगा मधुमास...एक आशावादी रचना...उनके लिए जिन्हें ये भी नहीं मालूम कि किसी को उनके दर्द से सरोकार भी है...
ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरपूर आपके दोहे, बाल श्रमिकों की व्यथा को उजागर करते हैं.
ReplyDeleteसादर नमन..
आपकी रचना में समाज की सही तस्वीर नज़र आती है....
ReplyDeleteसार्थक रचना..
बहुत सार्थक रचना..
ReplyDelete२००१ की जनगणना के अनुसार भारत में बाल श्रमिकों की संख्या १२६६६३७७ है | .सरकारी आंकड़ो पर यदि गौर करे तो बाल श्रमिको की संख्या लगभग 2 करोड़ हैं परन्तु निजी स्रोतों पर गौर करे तो यह लगभग 11 करोड़ से अधिक हैं .
ReplyDeleteआप इन दोहों के द्वारा इन ग्यारह करोड़ बालश्रमिकों की जुबान बने हैं।
आपकी सोच और लेखनी को नमन!
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
सही कहा है आपने... एक छोटी से कोशिश हर कोई करे तो जल्दी आ सकता है... सार्थक भाव... सादर
बदलेगा हिन्दुस्तान एक दिन बदलेगा .इसी आस पे गरीब ज़िंदा है .सब्ज़ बाग़ दिखातें हैं चुनावी वायदे .बालकों को बंधक बनाके रखने वाली इस अर्थ व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष करतें हैं यह दोहे .पूरी एक चित्रमय झांकी ही उकेरदी है आपने .
ReplyDeleteनन्हे-मुन्नों का उठा,जीवन से विश्वास.
होटल में बच्चे दिखे,धोते हुए गिलास.
कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.
थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
बिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल.
बहुत सार्थक रचना..आपकी लेखनी को नमन!
ReplyDeleteयह बहुत बड़ी समस्या है...दोहे में सार्थक प्रस्तुति|
ReplyDeleteइस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteआपकी सोच और आपकी लेखनी को नमन!
ReplyDeleteआपकी रचना में समाज की सही तस्वीर नज़र आती है|
बहुत खूबसूरत रचना सच्चाई को बयाँ तो कर रही है पर आस अभी बाकि है ये भी इशारा है कर रही इसे मत छोड़ना | बहुत सुन्दर :)
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सच को दर्शाती सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबाल मजदूरी की समस्या को बहुत सुंदर तरीके से पेश किया है कुशुमेश जी. हर बार की तरह एक सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteसमय के साथ संवाद करती हुई आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "भीष्म साहनी" पर आपका बेशब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत अच्छे विषय का चुनाव किया आपने ...सार्थक पोस्ट
ReplyDeletebahut bhavmai rachanaa .badhaai aapko .
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली का (३०) मैं शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका स्नेह और आशीर्वाद इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है
http://hbfint.blogspot.in/2012/02/30-sun-spirit.html
नन्हे-मुन्नों का उठा,जीवन से विश्वास.
ReplyDeleteहोटल में बच्चे दिखे,धोते हुए गिलास.
कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.
wah Bhai Kushmesh ji bahut hi sundartam dhang se ap ne likha hai ....Sadar badhai
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
तमाम विसंगतियों के बावजूद यही आस तो रह जाती है, बहुत बढ़िया दोहे...
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
बहुत बढ़िया.
बहुत अच्छी रचना,सुंदर सार्थक प्रस्तुति ,..लाजबाब,....
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.bahut khoobsurat....
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
yehi asha karte hai, hamesha ki tarah sundar rachna .
badhai aapko bhi ....
सार्थक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक दोहे...
ReplyDeleteसादर.
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
ati sundar ,hame bhi hai kuchh aesa hi vishwash ,shukriyaan
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
इसी उम्मीद पे दुनिया कायम है .
बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर सटीक रचना के लिए बधाई,.....
ReplyDeleteMY NEW POST...आज के नेता...
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
ReplyDeleteकुंवर जी बेहद सुन्दर बाल श्रम पर गज़ल ... मजबूर हो गयी सोचने को ये काम क्यों कर रहे है... लगता है इनका ही नहीं ये इनके माँ पिता का दुःख और मजबूरी है..
ReplyDeletebahut achchhi rachna...
ReplyDeleteबाल श्रमिक बढ़ने लगे,प्रतिदिन कई हज़ार.
ReplyDeleteइनके जीवन की लगे,नैय्या कैसे पार ?
शुरुआत तो हमारे अपने घरों से होनी चाहिए जहां छोटी उम्र के बच्चे 'छोटू 'और 'बहादुर 'बनके रहने को अभिशप्त हैं .मेम साहब मैं भी स्कूल जा सकता हूँ ?.स्कूल .?अरे हम तुझे दो वक्त की रोटी देतें हैं यह क्या कम है ?.पढ़ लिखकर क्या तुझे बेरिस्टर बनना है ?यही रवैया है हमारा ...
पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
ReplyDeleteमन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
आपकी हमारी यह आस एक दिन इन बच्चों का जीवन सुंदर बनायेगी ।
कटुसत्य को रेखांकित करते मर्मस्पर्शी दोहों के लिए हार्दिक बधाई..
ReplyDeletebal shamriko ki vyatha prabhavi shabdon mein vyakt ki aapne...
ReplyDeletebahut sunder lekhan, evam hridayvidarak satya.....aabhar!!!
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