Wednesday, February 8, 2012

बाल श्रमिक (दोहे)

 

कुँवर कुसुमेश 

बाल श्रमिक बढ़ने लगे,प्रतिदिन कई हज़ार.
इनके जीवन की लगे,नैय्या कैसे पार ?

नन्हे-मुन्नों का उठा,जीवन से विश्वास.
होटल में बच्चे दिखे,धोते हुए गिलास.

कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.

थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
बिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल.

पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
*****

59 comments:

  1. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.

    आस पर ही तो जीवन टिका है !!

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  2. मानवीय सरोकार की सोच लिए दोहे..... सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.

    आशा की यही किरण कुछ आश्वस्त करती है वरना तो हालात बहुत ही दुखदायी हैं ! मानवीय संवेदनाओं से भरपूर बेहतरीन रचना ! आभार !

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  4. निराशा में ही तो छुपी है कहीं आशा...

    पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास...

    बहुत सार्थक रचना..

    सादर.

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  5. देश की गंभीर समस्या पर आपने ये सुंदर दोहे लिखे हैं. ये दोहे एक सकारात्मकता के साथ हैं जो मन को आराम देता है और आशा बँधाता है कि भविष्य में यह ठीक हो जाएगा.

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  6. मधुमास अवश्य आएगा !
    शुभकामनायें कुसुमेश भाई !

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  7. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    bahut sunder rachna .....hamare desh ka yahi haal hai...
    bas rk din madhumas aayega ise hi soch ker jiye ja rahe hai.sunder bhavpurnn sarthal rachna ke liye badhai

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  8. शुक्रवारीय चर्चामंच पर है यह उत्कृष्ट प्रस्तुति |

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  9. आयेगा मधुमास...आयेगा मधुमास...अस है तो सांस है, उत्कृष्ट रचना !

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  10. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.............सही कहा हैं आपने

    उम्मीद हैं तो सब कुछ हैं

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  11. कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
    बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.
    कडवी सच्चाई तो यही है………

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  12. थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
    बिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल.
    ..
    समाज की असल तस्वीर

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  13. थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
    बिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल....

    हर दोहा बाल श्रमिक की व्यथा बयान कर रहा है ... कड़े नियम और समाजोक परिवर्तन से ही इसे निजात पाई जा सकती है ...

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  14. कटु सत्य को कहते सभी दोहे सार्थक लिखे हैं .. संवेदनशील भाव मयी रचना .

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  15. सार्थकता लिए हुए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ।

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  16. निराशाजनक स्थिति
    खूबसूरत दोहे

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  17. आज आपके दोहे ऐसे विषय पर केन्द्रित हैं जो समाज के विकृत रूप को उजागर करता है !
    और इस दोहे ने तो उम्मीद की लौ में जैसे प्राण फूँक दिया है !
    पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    आभार आपका,
    नमन आपकी कलम को !

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  18. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.

    बाल श्रमिकों की व्यथा की ओर ध्यानाकर्षण करते दोहे अंत में आशा की ज्योति भी जगा रहे हैं।

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  19. kash wo madhumaas jaldi aaye..dasha behtar ho...

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  20. कितनी जल्दी आएगा वह दिन?
    क्या हम किसी बच्चे को कहीं काम करते देख, उसकी शिकायत कर सकते हैं?

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  21. एक दिन आएगा मधुमास...एक आशावादी रचना...उनके लिए जिन्हें ये भी नहीं मालूम कि किसी को उनके दर्द से सरोकार भी है...

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  22. संवेदनाओं से भरपूर आपके दोहे, बाल श्रमिकों की व्यथा को उजागर करते हैं.

    सादर नमन..

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  23. आपकी रचना में समाज की सही तस्वीर नज़र आती है....
    सार्थक रचना..

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  24. बहुत सार्थक रचना..

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  25. २००१ की जनगणना के अनुसार भारत में बाल श्रमिकों की संख्या १२६६६३७७ है | .सरकारी आंकड़ो पर यदि गौर करे तो बाल श्रमिको की संख्या लगभग 2 करोड़ हैं परन्तु निजी स्रोतों पर गौर करे तो यह लगभग 11 करोड़ से अधिक हैं .

    आप इन दोहों के द्वारा इन ग्यारह करोड़ बालश्रमिकों की जुबान बने हैं।

    आपकी सोच और लेखनी को नमन!

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  26. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    सही कहा है आपने... एक छोटी से कोशिश हर कोई करे तो जल्दी आ सकता है... सार्थक भाव... सादर

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  27. बदलेगा हिन्दुस्तान एक दिन बदलेगा .इसी आस पे गरीब ज़िंदा है .सब्ज़ बाग़ दिखातें हैं चुनावी वायदे .बालकों को बंधक बनाके रखने वाली इस अर्थ व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष करतें हैं यह दोहे .पूरी एक चित्रमय झांकी ही उकेरदी है आपने .
    नन्हे-मुन्नों का उठा,जीवन से विश्वास.
    होटल में बच्चे दिखे,धोते हुए गिलास.
    कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
    बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.
    थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
    बिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल.

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  28. बहुत सार्थक रचना..आपकी लेखनी को नमन!

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  29. यह बहुत बड़ी समस्या है...दोहे में सार्थक प्रस्तुति|

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  30. इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें.

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  31. आपकी सोच और आपकी लेखनी को नमन!

    आपकी रचना में समाज की सही तस्वीर नज़र आती है|

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  32. बहुत खूबसूरत रचना सच्चाई को बयाँ तो कर रही है पर आस अभी बाकि है ये भी इशारा है कर रही इसे मत छोड़ना | बहुत सुन्दर :)

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  33. बहुत सार्थक और सच को दर्शाती सुन्दर रचना....

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  34. बाल मजदूरी की समस्या को बहुत सुंदर तरीके से पेश किया है कुशुमेश जी. हर बार की तरह एक सार्थक प्रस्तुति.

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  35. समय के साथ संवाद करती हुई आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "भीष्म साहनी" पर आपका बेशब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  36. बहुत अच्छे विषय का चुनाव किया आपने ...सार्थक पोस्ट

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  37. bahut bhavmai rachanaa .badhaai aapko .


    आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली का (३०) मैं शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका स्नेह और आशीर्वाद इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है
    http://hbfint.blogspot.in/2012/02/30-sun-spirit.html

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  38. नन्हे-मुन्नों का उठा,जीवन से विश्वास.
    होटल में बच्चे दिखे,धोते हुए गिलास.

    कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
    बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.

    wah Bhai Kushmesh ji bahut hi sundartam dhang se ap ne likha hai ....Sadar badhai

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  39. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    तमाम विसंगतियों के बावजूद यही आस तो रह जाती है, बहुत बढ़िया दोहे...

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  40. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    बहुत बढ़िया.

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  41. बहुत अच्छी रचना,सुंदर सार्थक प्रस्तुति ,..लाजबाब,....

    MY NEW POST ...कामयाबी...

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  42. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.bahut khoobsurat....

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  43. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    yehi asha karte hai, hamesha ki tarah sundar rachna .
    badhai aapko bhi ....

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  44. सार्थक पोस्ट, आभार.

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  45. बहुत सुन्दर सार्थक दोहे...
    सादर.

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  46. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    ati sundar ,hame bhi hai kuchh aesa hi vishwash ,shukriyaan

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  47. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
    इसी उम्मीद पे दुनिया कायम है .

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  48. बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर सटीक रचना के लिए बधाई,.....

    MY NEW POST...आज के नेता...

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  49. कुंवर जी बेहद सुन्दर बाल श्रम पर गज़ल ... मजबूर हो गयी सोचने को ये काम क्यों कर रहे है... लगता है इनका ही नहीं ये इनके माँ पिता का दुःख और मजबूरी है..

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  50. बाल श्रमिक बढ़ने लगे,प्रतिदिन कई हज़ार.
    इनके जीवन की लगे,नैय्या कैसे पार ?
    शुरुआत तो हमारे अपने घरों से होनी चाहिए जहां छोटी उम्र के बच्चे 'छोटू 'और 'बहादुर 'बनके रहने को अभिशप्त हैं .मेम साहब मैं भी स्कूल जा सकता हूँ ?.स्कूल .?अरे हम तुझे दो वक्त की रोटी देतें हैं यह क्या कम है ?.पढ़ लिखकर क्या तुझे बेरिस्टर बनना है ?यही रवैया है हमारा ...

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  51. पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
    मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.

    आपकी हमारी यह आस एक दिन इन बच्चों का जीवन सुंदर बनायेगी ।

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  52. कटुसत्य को रेखांकित करते मर्मस्पर्शी दोहों के लिए हार्दिक बधाई..

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  53. bal shamriko ki vyatha prabhavi shabdon mein vyakt ki aapne...

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  54. bahut sunder lekhan, evam hridayvidarak satya.....aabhar!!!

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