Sunday, February 27, 2011


गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से

कुँवर कुसुमेश 

अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.

खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.

हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.

सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.

जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.
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Saturday, February 19, 2011


मुसीबत दे रही दस्तक बराबर

 कुँवर कुसुमेश 

करेगी वार क़ुदरत भी पलटकर,
अगर पेड़ों को काटोगे निरंतर.

तुम्हारी ज़िन्दगी जिस पर है निर्भर,
उसी को काटते रहते हो अक्सर.

अभी भी हो रहा पृथ्वी का दोहन,
पचासों ज़लज़ले झेले भयंकर.

ये नासमझी नहीं तो और क्या है,
कि जंगल काटकर बनने लगे घर.

हमीं बहरे हुए सुनते नहीं हैं,
मुसीबत दे रही दस्तक बराबर.

'कुँवर' पानी का लेवल घट रहा है,
हैं खतरे में पड़े दरिया,समन्दर.
  
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Wednesday, February 9, 2011


 वैलेण्टाइन पर्व 
कुँवर कुसुमेश 

लाई चौदह फरवरी,वैलेण्टाइन पर्व.
बूढ़े माथा पीटते , नौजवान को गर्व.

युवक,युवतियां आजकल,दिल में लिए उमंग.
चढ़ा रहे हैं प्रेम पर,पाश्चात्य का रंग.

होठों पर मुस्कान है,हाथों में है फूल.
बैठा जोड़ा पार्क में , कट कर के स्कूल.

जैसे बेहतर दूसरा,नहीं कोई स्थान.
अड्डे प्रेमालाप के, पार्क और उद्यान.

फैशन का जादू चला , यत्र-तत्र-सर्वत्र.
नारी के तन पर दिखे,मित्र ! न्यूनतम वस्त्र.

ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
तो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
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