Thursday, November 25, 2010

पेड़ों पे भरोसा रख

कुँवर कुसुमेश

ख़ुद पर न सही लेकिन पेड़ों पे भरोसा रख,
नायाब ज़मीं पर ये अल्लाह का तोहफा रख.

माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
गमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.

ओज़ोन की छतरी का लिल्लाह दरक जाना,
कहता है नहीं माना तो झेल ये ख़तरा रख..

क्या खाक बनाया है इन्सां को मेरे मौला ,
थोड़ी तो समझ सर के अन्दर मेरे मौला रख.

मत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई ,
दुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख.

मालिक से ' कुँवर ' कोई भी बात नहीं छुपती,
इन्सान से रखना है तो शान से पर्दा रख.


Thursday, November 18, 2010

पैग़म्बरे - इस्लाम से मतलब

कुँवर कुसुमेश

किसी को इब्ने-मरियम से,किसी को राम से मतलब.
किसी को दोस्तों, पैग़म्बरे - इस्लाम से मतलब.

हमारे मुल्क के नेताओं को मतलब है वोटों से,
न बढ़ती क़ीमतों से है, न बढ़ते दाम से मतलब.

उधर बढ़ती हुई आतंकवादी ताक़तों को तो-
निशाना साधना या सुर्खिये-कोहराम से मतलब.

हमारे देश की चलिए नई पीढ़ी को ले लीजे,
इन्हें है बरहना माशूक़,छज्जा,बाम से मतलब. 

कई अच्छे सुख़नवर हैं,क़लम में जिनकी ताक़त है,
उन्हें दारू से मतलब या गुलो-गुलफ़ाम से मतलब.

' कुँवर ' ऐसा हमें लगने लगा है अब कि मौला को,
फ़क़त दैरो - हरम में बैठ के आराम से मतलब.
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इब्नेमरियम-मरियम का बेटा/ईसा मसीह,पैग़म्बरेइस्लाम - इस्लाम का ईशदूत,
सुर्खियेकोहराम-हाहाकार का आलम,बरहना-निर्वस्त्र, बाम-छत,सुखनवर-शायर, गुल-फूल,
गुलफ़ाम-फूल जैसी कोमल शरीर वाली,फ़क़त-केवल, दैरोहरम-मंदिर-मस्जिद  

Sunday, November 14, 2010

समन्दर भी डराना जानता है

कुँवर कुसुमेश

धरातल  डगमगाना  जानता है,
फ़लक ग़ुस्सा दिखाना जानता है.

सुनामी से चला हमको पता ये,
समन्दर भी डराना जानता है.

बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
ख़ुदा भी आज़माना जानता है.

समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
परिंदा फड़फड़ाना जानता है.

मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है. 
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क़फ़स-पिंजरा , खौफे-ख़ुदा -अल्लाह से डर

Sunday, November 7, 2010

                    हाथों में आपके है बनायें या बिगाड़ें / उतरेगा फ़रिश्ता न कोई आसमान से


                                कुँवर कुसुमेश 

आकर चले गए तमाम इस जहान से,
इठला रहा है वक़्त मगर इत्मिनान से.

ग़ैरों के घर की आग बुझाने में जो लगा,
उठने लगा धुवाँ है उसी के मकान से. 

हैरत है देख देख के खंजर की तश्नगी 
अब तो खुदा के वास्ते निकले न म्यान से.

हाथों में आपके है बनायें या बिगाड़ें,
उतरेगा फ़रिश्ता न कोई आसमान से.

ये वक़्त है बेइंतिहा ताक़त है इसके पास,
लड़ना पड़ेगा फिर भी इसी पहलवान से,

माना क़दम क़दम पे हैं दुश्वारियाँ 'कुँवर',
डरना नहीं है फिर भी किसी इम्तहान से.
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