Thursday, March 28, 2013
Friday, March 22, 2013
Monday, March 11, 2013
उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .
कुँवर कुसुमेश
तड़पता आदमी सब्रो-क़रार क्या जाने .
जो नफ़रतों में पला हो वो प्यार क्या जाने .
चमन की बात ही करना है तो चमन से करो,
ख़िज़ाँ , ख़िज़ाँ है महकती बहार क्या जाने .
दिलों के बीच में उठती दिखाई देती है,
उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .
मिले हैं अपने पराये सभी से जिसको फ़रेब,
भरोसा कैसे करे,ऐतबार क्या जाने .
बिखरना,टूटना सीखा है तड़पती शै ने,
ये दिल है ये भला बातें हज़ार क्या जाने .
न जाने दोस्त समझता है या कोई दुश्मन,
करे 'कुँवर' कोई किसमें शुमार क्या जाने .
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