कुँवर कुसुमेश
फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.
दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
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दौरे-हाज़िर=वर्तमान समय, क़ाबिले-कुर्सी=कुर्सी के योग्य.
गर्दिशे-अय्याम=संकट के दिन
सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteवाह!!!!!
ReplyDeleteबहुत खूब ....बेहतरीन गज़ल..
सादर.
दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
एकदम सटीक
पर इसी शे'र में लिल्लाह फँसे हैं अब तक!!
ReplyDeleteफूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
ReplyDeleteऔर हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.
बहुत सुंदर पोस्ट
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
खूबसूरत रचना। कुछ तो ये भी जालिम है कुछ हमे मरने का शौक भी
ReplyDeleteदौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
....बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी प्रस्तुति...
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
.........सुन्दर रचना
कुसुमेश जी आपकी रचना का बहुत दिनों से इंतेज़ार था|
ReplyDelete###########
दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
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उत्तर प्रदेश की मौजूदा हालत पर आपके ये शेर बिल्कुल सटीक हैं|
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फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.
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ये शेर एक तरफ मोहब्बत की बात कहता है, दूसरी ओर समाज के प्रति राजनेताओं की जवाबदेही की उम्मीद|
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क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
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ये शेर अभी भी उम्मीद बँधे होने की बात कहता है.
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चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
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इस शेर पर बस इतना कहना है............
दर्द इतना है की अब सहा नहीं जाता;
बयाँ करें कैसे,ज़ुबाँ से कहा नहीं जाता.
उत्कृष्ट रचना |
ReplyDeleteलाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
Bahut,bahut sundar!
सुन्दर रचना... हर शेर जानदार...
ReplyDeleteदौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
सुभान अल्लाह...इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें
नीरज
दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
इस शेर से राजा भय्या की याद आ गयी .... अखिलेश जी ने अपने मंत्रिमंडल में रखा हुआ है ...
कुछ टिमटिमाते दीपक ही हैं जो रोशनी दिखाते रहते हैं ... बहुत खूबसूरत गजल है ...
क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
ReplyDeleteतेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
बस एक वो हंसी है जिसके सहारे उमर कट जाती है - हंसते-हंसते!
मन को छू गई ये पंक्तियां और यह ग़ज़ल!
खुदा की रहमत है कि आप यूँ ही शेर में फंसा करें और बेहतरीन रचा करें .
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकल 21/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मुझे विश्वास है ...
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
बहुत खूबसूरत गज़ल हर शेर मुकम्मल्।
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
.....बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल ....
वाह वाह and वाह वाह..
ReplyDeletecan never stop saying this :D
two exactly opposite emotions in a single couplet
Fantastic read !!
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
बहुत ही सुंदर शायरी है ....
जबरदस्त ...!
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
हर शेर लाज़वाब... आभार
हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.....
ReplyDeleteवाह! सर.... शानदार ग़ज़ल...
सादर बधाई...
दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
मेरी पसंद का शेर !
आपने अपनी ग़ज़लों में हमेशा सच्चाई को जीया है
आभार !
वाह जी...क्या बात है...बहुत उम्दा गज़ल!!
ReplyDeleteउम्दा गज़ल
ReplyDeleteNice poem .
ReplyDeletehttp://aryabhojan.blogspot.in/2012/03/blog-post_06.html
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
बहुत सुन्दर रचना... आभार.
BAHUT ACHCHHI PRASTUTI .AABHAR
ReplyDeleteदौरे-हाज़िर ने उसे काबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
यही सच्चाई है, इस दौर की।
ग़ज़लगोई में आपका जवाब नहीं।
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक...
सच तो यही है की बुराई जितनी भी आ जाये .... अच्छाई पे कम ही पढ़ती है .. कोई दिया तो रह ही जाता है जलता हुवा रौशनी के लिए ...
लाजवाब गज़ल है ...
दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
बहुत खूब .इस दौर की राजनीति का प्रक्षेपण है यह ग़ज़ल .
इस शैर को -
'लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.'
पढके अन्ना जी की याद आगई .
चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
ReplyDeleteपर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
इस स्तिथि से अक्सर दो चार होना पड़ता है .....रचना उम्दा है !
wah....bahut khoob
ReplyDeleteलाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल .....
हर शेर मुकम्मल....
ReplyDelete"चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक."
बहुत खूब.....
अब इसके बाद क्या कहूँ.....!!
बेहतरीन अशआर हैं सभी!
ReplyDeleteआभार..
"दिये" को सही करके "दीये" कर लें..
दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
बहुत जानलेवा शेर है ये आपकी ग़ज़ल का। उस्तादी झाँक रही है गज़ल के हर एक शेर से .. कभी तशरीफ लाएँ गरीबखाने में
खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteदौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
ReplyDeleteहाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.. इस ग़ज़ल का सबसे सुंदर शेर
waah! bahut khub!
ReplyDeletebahut hi sundar rachna,bdhaai aap ko
ReplyDeletebahut hi umda!
ReplyDeleteलाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
hausle ko buland karne wala sher..umda gazal
इस ग़ज़ल का हर एक शेर नगीना है .... इस मक्ते की जितनी दाद दी जाये उतनी ही कम....
ReplyDeleteचाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
सर जी बहुत ही सुन्दर !
ReplyDeleteलाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.very nice......
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
Khoob Kaha....
हैं आँधियां आईं हर दौर में लाखों
ReplyDeleteहै आस में जीता,शायर अब तक
बहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसुन्दर भाव अभिव्यक्ति :-)
सार्थक पोस्ट ..!
ReplyDeleteनवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
जिजीविषा थकती नहीं है .....हर अश आर अपनी आंच असर लिए है .
कृपया यहाँ भी आयें - ram ram bhai
बुधवार, 21 मार्च 2012
गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteक्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
ReplyDeleteतेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
bahut sundar rachna ....der se aana hua,
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल..और आज की स्तिथि पर भी.. वाह कुश्मेश जी..
ReplyDeleteअपने मन के भावों को प्रकट करने का यह तरीका अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteलाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
लाजवाब...
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteलाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
आपकी गज़लगोई का कोई जबाब नहीं.
बेहतरीन प्रस्तुति.
क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
ReplyDeleteतेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
बेहतरीन
लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब त.....sacchai to phir sacchai hoti hai..agar noor sachha hai to aandhiya use bujha nahi sakti hain..kahin jindagi kee hakeekat...kahin roomaniyat..kahin mashwira....har sher dil ko choone wala hai
कुश्मेश जी.. देर से आने के लिये माफी चाहुँगी....आप की गजल पढ़ी बहुत ही सुन्दर लिखा है..........लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
ReplyDeleteटिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.....बहुत खूब..