कुँवर कुसुमेश
प्रतिदिन होता जा रहा,मौसम तुनक मिज़ाज.
मानो गिरने जा रही, हम पर कोई गाज.
पर्यावरण असंतुलन,सहन न करती सृष्टि.
इसके कारण ही दिखे,अनावृष्टि-अतिवृष्टि.
संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
बिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.
पर्यावरण उपेक्षा,पहुँचाये नुकसान.
असमय अपने काल को,बुला रहा इन्सान.
नित बढ़ता शहरीकरण, और वनों का ह्रास.
धीरे धीरे कर रहा,प्रकृति संतुलन नाश.
प्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
तो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
*****
बिलकुल सही कहा है ... प्रकृति का संतुलन गड़बड़ा रहा है ....कब मौसम पलट जाये कुछ पता नहीं चलता ...
ReplyDeleteप्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
ReplyDeleteतो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
वाह .. बहुत बढिया !!
एक सच्चाई बयां की है आपने...... अभी भी वक्त है सुधरने का ....
ReplyDeleteपर्यावरण पर आपका कलाम शानदार है।
ReplyDeleteकम ब्लॉगर हैं जो हिंदी ब्लॉगिंग को अच्छे विचार दे पा रहे हैं।
वर्ना तो ...
हिंदी ब्लॉगिंग की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार दिल्ली के ब्लॉगर्स
अभी अभी समाचार मिला कि इण्डोनेशिया या बंगाल की खाडी में भूकम्प आया।
ReplyDeleteपर्यावरण पर आपकी रचनाएँ सदैव सार्थक होती है।
पर्यावरण उपेक्षा,पहुँचाये नुकसान.
असमय अपने काल को,बुला रहा इन्सान.
प्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
ReplyDeleteतो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
Badi pate kee baat kahee hai aapne! Kaash ispe amal ho!
बहुत सही कहा है आपने ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteपर्यावरण जागरूकता का संदेश देती....
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक पोस्ट.
सादर.
प्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
ReplyDeleteतो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
सही कहा है आपने अभी भी वक़्त है कुछ करने का वर्ना तबाही के सिवा कुछ हाथ नहीं आने वाला... जागरूक करती रचना... आभार
संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
ReplyDeleteबिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.
sahi kaha aapne .....
संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
ReplyDeleteबिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.
बहुत सुन्दर बात कही है कुसुमेश जी आपने.
kavi aur shayer kee samaj ke uthan ke mahtwapurna bhumika ka nirbahan kar rahi hai aapki yah rachna..sadar badhayee aaur apne blog par amantran ke sath
ReplyDeleteसही बात है |
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
आभार ||
प्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
ReplyDeleteतो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
जागरूकता का संदेश देती सार्थक पोस्ट.....
आपके पर्यावरण के दोहे इतने सार्गर्भित होते हैं कि न सिर्फ़ मैं पढ़ता हूं, बल्कि इसका प्रिंट आउट लेकर अन्य लोगों में बांटता भी हूं। सरकार को इन दोहों को नारों के रूप में रयोग करना चाहिए।
ReplyDeleteभाई
ReplyDeleteबातें एकदम सही....
कलम भी चली सही..
नापसंदगी का सवाल नहीं..
वक्त के अनुरूप विषय का चयन
साधुवाद
सादर
यशोदा
तो फिर पर्यावरण को करिए नहीं तबाह।
ReplyDeleteनाइस पोस्ट बेहतर सीख देती हुई
प्रकृति से खिलवाड होगा तो उसका क्रोध भी सहना होगा …………सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteउपयोगी संदेश देते हुए प्रेरक दोहे।
ReplyDeleteसार्थक रचना .......कल के बदले मौसम पर सही से फिट हैं
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteपर्यावरण उपेक्षा,पहुँचाये नुकसान.
ReplyDeleteअसमय अपने काल को,बुला रहा इन्सान.
sahi kah rahe hai sir....
पर्यावरण असंतुलन,सहन न करती सृष्टि.
ReplyDeleteइसके कारण ही दिखे,अनावृष्टि-अतिवृष्टि.
बेहतरीन भाव पुर्ण दोहे ,बहुत सुंदर कोमल अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
bahut hi saarthak dohe hain. prakriti ka prakop badhne ka yahi to karan hai.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12 -04-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .....चिमनी पर टंगा चाँद .
सार्थक पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा कि आपने नीति के उन्हीं उपदेशों से ऊपर उठकर सामयिक समस्या पर्यावरण को अपने दोहों का विषय बनाया ,और इस पुराने लघु छन्द को नवीनता से रंजित किया !
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDelete.......सच्चाई बयां की है आपने रचना के लिए बधाई स्वीकारें !!!!
हमारे साँसों की नव्ज़ जिस पर्यावरण और पारितंत्रों से जुडी है उसके संरक्षण और पोषण के प्रति एक बे -चैनी आपकी पर्यावरणी रचनाओं में साफ़ उभर कर आती है .सटीक विश्लेषण और इस सर्व नाश की उत्प्रेरक तत्व भी .
ReplyDeleteअतिसुन्दर कुसुमेश जी जागरूक करते दोहे हमे पर्यावरण की सुरक्षा की और सबका ध्यान दिलाना चाहिए वर्ना आने वाली मुसीबतों के लिए तैयार रहें
ReplyDeleteप्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
ReplyDeleteतो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
सार्थक सन्देश देती सुन्दर प्रस्तुति....
पर्यावरण उपेक्षा,पहुँचाये नुकसान.
ReplyDeleteअसमय अपने काल को,बुला रहा इन्सान.ye bat kab samjhega insan...
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
प्रकृति का संतुलन गड़बड़ा रहा है .हमें सावधान रहना चाहिए..सार्थक संदेश देती.बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteकरिए नहीं तबाह अगर हो जीना आगे
ReplyDeleteमानुस जनम अकारथ कर न बनें अभागे
संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
ReplyDeleteबिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.
...और इसकी सबसे बड़ी वजह हम हैं .....पृथ्वी सबकी ज़रुरत पूरी कर सकती है ....सबका लोभ नहीं ...और लोभी मनुष्य ने हर जगह अतिक्रमण किया .....और कर रहा है .....प्रेरित करती रचना
संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
ReplyDeleteबिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.
अनुपम भाव लिए सुंदर दोहे ...बेहतरीन पोस्ट .
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
पर्यावरण पर सुंदर प्रस्तुति ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें ....!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteust perfect..
ReplyDeleteyour concern for climate is fantastically reflected
चंद लोगों की लोलुपता और लालच के कारण करोड़ों बेगुनाह लोगों को इसका मुआवजा अपनी जान दे कर देना पड़ेगा :(
ReplyDeleteप्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
ReplyDeleteतो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.sahi kah rahe hain......
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
ReplyDeleteकृपया इसे भी देखें-
उल्फ़त का असर देखेंगे!
पर्यावरण उपेक्षा,पहुँचाये नुकसान.
ReplyDeleteअसमय अपने काल को,बुला रहा इन्सान.
बहुत सही कहा है...
बहुत बढ़िया..उम्दा!
ReplyDeleteखूबसूरत दोहे...पर्यावरण संरक्षण पर...बधाइयाँ...
ReplyDeleteपर्यावरण असंतुलन,सहन न करती सृष्टि.
ReplyDeleteइसके कारण ही दिखे,अनावृष्टि-अतिवृष्टि.
BEAUTIFUL LINES BASED ON ATOMOSPHERE
AND HUMAN BEING.NICE LINES.
पर्यावरण असंतुलन,सहन न करती सृष्टि.
ReplyDeleteइसके कारण ही दिखे,अनावृष्टि-अतिवृष्टि.
Steek Panktiyan....
सामयिक संदेश लिए बहुत ही सार्थक रचना !
ReplyDeleteपर्यावरण को तबाह करके धरती पर नहीं जीया जा सकता. बहुत सुंदर दोहे.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट को ब्लॉगर्स मीट वीकली 39 में देखा जा रहा है।
ReplyDeleteसूचनार्थ लिंक प्रेषित है-
http://hbfint.blogspot.in/2012/04/39-nirmal-baba-ki-tisri-aankh.html
पर्यावरण की चिंता हमेशा ही आपकी गज़लों और दोनों में नज़र आती है ... ये दोहे भी इस क्रम के अंक हैं ... बहुत लाजवाब ...
ReplyDeleteparyavaran par saarthak sandesh deti sundar rachna....
ReplyDeleteपर्यावरण असंतुलन,सहन न करती सृष्टि.
ReplyDeleteइसके कारण ही दिखे,अनावृष्टि-अतिवृष्टि.
संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
बिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.
Kushmesh ji ap ne to bahut hi sarthak rachana likhi hai bilkul ythrth ki kasuti pr sangrhneey rachana ...sadar badhai.
कृपया मेरी १५० वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें , अपनी राय दें , आभारी होऊंगा .
Deleteप्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
ReplyDeleteतो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
पर्यावरण का संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के सुखद भविष्य के लिये अब अनिवार्य है. कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं.
बहुत बधाई इस सार्थक लेखन के लिये.
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..प्रभावी दोहे ..
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
खूबसूरत दोहे!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
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