कुँवर कुसुमेश
लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
वक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
है नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर.
आज के साइंस दानों का है दावा,
कल बसेगी एक दुनिया आसमाँ पर.
कशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
नाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.
है 'कुँवर' मुश्किल मगर उम्मीद भी है,
कामयाबी पाऊँगा हर इम्तिहाँ पर.
*****
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी !!!
ReplyDeleteचेहरे के पीछे कई चेहरे.....सुन्दर गजल..
ReplyDeleteकशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
ReplyDeleteनाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.
बहुत ही बढिया।
कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
ReplyDeleteहै नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर.
आज के साइंस दानों का है दावा,
कल बसेगी एक दुनिया आसमाँ पर.
सब मुखौटे ओढ़े कथनी और करनी में फर्क कराते नज़र आते हैं .... बहुत खूबसूरत गजल
बहुत सुन्दर गज़ल
ReplyDeleteवाह,,,, बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन गजल ,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
बहुत अच्छी लगी सर आपकी गजल....
ReplyDeleteसभी शेर शानदार हैं...
कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
है नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर... वाह!
सादर।
बहुत उम्दा ग़ज़ल!
ReplyDeleteएक बहुत आवश्यक गज़ल ...
ReplyDeleteआभार आपका भाई जी !
चेहरे पर चेहरा चढ़ा रहने दो ....वर्ना भेद खुल जाएगा
ReplyDeleteकशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
ReplyDeleteनाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.
है 'कुँवर' मुश्किल मगर उम्मीद भी है,
कामयाबी पाऊँगा हर इम्तिहाँ पर.
विश्वास ही विश्वास पराकाष्टा की सीमा तोड़ती अदभूत संग्रहनीय
दादा यदि उचित समझें तो मेल करने की कृपा करें .......
सुंदर गजल
ReplyDeleteकुंवर जी आपको मैं ब्लॉगजगत का ग़ज़ल सम्राट मानता हूं। आपकी ग़ज़लें जहां एक ओर चिंतन का नया आयाम सौंपती हैं वहीं इनमें सामाजिक सरोकार को भी स्वर दिया जाता है। चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा भी ऐसी ही ग़ज़ल है जो दिल के साथ दिमाग में भी जगह बनाती है।
ReplyDeleteवाह............
ReplyDeleteसुन्दर गज़ल..
है 'कुँवर' मुश्किल मगर उम्मीद भी है,
ReplyDeleteकामयाबी पाऊँगा हर इम्तिहाँ पर.
sundar galzal...
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
ReplyDeleteहम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
sahi kaha hai .....
pyare sher
ReplyDeleteBaa-maani sher
आपके समक्ष एक गुजारिश ले कर आया हूँ,
Deleteडॉ अनवर जमाल अपने ब्लॉग पर महिला ब्लोग्गरों के चित्र लगा रखे कुछ ऐसे-वैसे शब्दों के साथ. LIKE कॉलम में. उससे कई बार रेकुएस्ट कर ली पर उसके कान में जूं नहीं रेंग रही. आप विद्वान ब्लोगर है, मैं आपसे ये प्राथना कर रहा हूँ
कि उसके यहाँ कमेंट्स न करें,
न अपने ब्लॉग पर उसे कमेंट्स करेने दें.
न ही उसके किसी ब्लॉग की चर्चा अपने मंच पर करें,
न ही उसको अनुमति दें कि वो आपकी पोस्ट का लिंक अपने ब्लॉग पर लगाये,
उनको समझा कर देख लिया. उसका ब्लॉग्गिंग से बायकाट होना चाहिए. मेरे ख्याल से हम लोगों के पास और कोई रास्ता नहीं है.
कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
ReplyDeleteहै नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर.
खासी इंतजारी के बाद कुंवर कुसुकेश जी की ग़ज़ल पढने को मिलती है लेकिन सबर का फल वो कहतें हैं न होता बड़ा मीठा है .बढ़िया ग़ज़ल आज के ख्याल की अपने वक्त से मुखातिब कहतें हैं आप .
सर जी लगन रहे तो सब कुछ संभव !
ReplyDeleteक्या बात है! वाह! बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteयह भी देखें प्लीज शायद पसन्द आए
छुपा खंजर नही देखा
है 'कुँवर' मुश्किल मगर उम्मीद भी है,
ReplyDeleteकामयाबी पाऊँगा हर इम्तिहाँ पर.
वाह यही उम्मीद बनी रहे ...!!
शुभकामनायें
लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
ReplyDeleteवक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.
बहुत कुछ कहती हैं ये पंक्तियाँ...
सुन्दर अभिव्यक्ति |सशक्त रचना |
ReplyDeleteआशा
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
ReplyDeleteहम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
हर आदमी में होतें हैं दस बीस आदमी ,
जिसको भी देखना ,कई बार देखना .
बहुत बढ़िया अश आर हैं कुसुमेशजी, सारे के सारे .
Read more: http://www.dailymail.co.uk/health/article-2159087/Healthy-people-share-bodies-10-000-species-germs.html#ixzz1y5dKc7O2
हर आदमी में होतें हैं दस बीस आदमी ,
ReplyDeleteजिसको भी देखना ,कई बार देखना .
बहुत बढ़िया अश आर हैं कुसुमेशजी, सारे के सारे .
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
ReplyDeleteहम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
बहुत ही बढ़िया...
कशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
ReplyDeleteनाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.
बहुत सुन्दर...
आज के साइंस दानों का है दावा,
ReplyDeleteकल बसेगी एक दुनिया आसमाँ पर.
कमाल का शे’र है कुंवर साहब! कमाल। ज़मीन पर ही लोग ठीक से रह लें, आसमां पर तो बस उसकी हुक़ूमत चलती है!
bahut aachi ghazal aadarniya kunwar ji
ReplyDeleteकशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
ReplyDeleteनाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.
khoobsurat sher,
achchhi ghazal.
बहुत खूब ...आज हर इंसान नकाब ओढ़े है ...
ReplyDeleteहिन्दोस्ताँ पर नाज़ हम सभ को है और उम्मीद भी की अन्तः सब कुछ ठीक होगा.
ReplyDeleteगज़ल बहुत सुंदर बनी है और भाव तो उसमें चार चाँद लगा रहे हैं.
लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
ReplyDeleteवक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
लाजवाब...
बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने....
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
ReplyDeleteहम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
...लाज़वाब! बेहतरीन गज़ल....
आज के साइंस दानों का है दावा,
ReplyDeleteकल बसेगी एक दुनिया आसमाँ पर....
बहुत खूब ... अप अपने अंदाज़ से इन गज़लों कों भी परंपरा से बाहर ला के आसमां तक ले जा रहे हैं .. लाजवाब गज़ल ...
sach hai ! behtreen prastuti...
ReplyDeleteKaafi achchha hai.. Apne anubhav ke aadhaar par mere hindi blog ko bhi review pls kijiye...
ReplyDeletehttp://mynetarhat.blogspot.in/search/label/Nepura
आपके समक्ष एक गुजारिश ले कर आया हूँ,
ReplyDeleteडॉ अनवर जमाल अपने ब्लॉग पर महिला ब्लोग्गरों के चित्र लगा रखे कुछ ऐसे-वैसे शब्दों के साथ. LIKE कॉलम में. उससे कई बार रेकुएस्ट कर ली पर उसके कान में जूं नहीं रेंग रही. आप विद्वान ब्लोगर है, मैं आपसे ये प्राथना कर रहा हूँ
कि उसके यहाँ कमेंट्स न करें,
न अपने ब्लॉग पर उसे कमेंट्स करेने दें.
न ही उसके किसी ब्लॉग की चर्चा अपने मंच पर करें,
न ही उसको अनुमति दें कि वो आपकी पोस्ट का लिंक अपने ब्लॉग पर लगाये,
उनको समझा कर देख लिया. उसका ब्लॉग्गिंग से बायकाट होना चाहिए. मेरे ख्याल से हम लोगों के पास और कोई रास्ता नहीं है.
कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
ReplyDeleteहै नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर.
काफी कुछ बोलती हुई सुंदर सी रचना !!
लाजवाब प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
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