अरे भाई साहब इस शरीर का क्या मान और क्या अपमान। आत्मा को तो कोई छूता जानता नहीं है। अपने को सेल्फ को लिमिटिड मानता है अवस्था परिवर्तन शरीर का धर्म है आत्मा का नहीं आत्मा न बूढ़ा होता न सीनियर जूनियर होता है। लिमिटलैस होता है। लिमिटलैस ब्लिस लिमिटलेस कांशशसनेस होता है।
waaqi
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteये जो जर जर लोग घर की पहरेदारी करते हैं
ReplyDeleteअसल में मालिकाना हक़ की दावेदारी रखते हैं..............(एक गजल से) "रोहित"
खुबसुरत रचना सर जी
मान जो भी मिल रहा वो नौजवाँ तेवर को है।
ReplyDeleteअब बुजुर्गों का तो बस सम्मान कहने भर को है।
पल रहे वृद्धाश्रम में जाने कितने वृद्ध जन ,
सीनियर सिटीजन दिवस यूँ एक अक्टूबर को है।
अरे भाई साहब इस शरीर का क्या मान और क्या अपमान। आत्मा को तो कोई छूता जानता नहीं है। अपने को सेल्फ को लिमिटिड मानता है अवस्था परिवर्तन शरीर का धर्म है आत्मा का नहीं आत्मा न बूढ़ा होता न सीनियर जूनियर होता है। लिमिटलैस होता है। लिमिटलैस ब्लिस लिमिटलेस कांशशसनेस होता है।
भावुक और सुंदर प्रस्तुति----
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