हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो / कर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ
कुँवर कुसुमेश
थरथराने लगा आशियाँ - आशियाँ,
फिर डराने लगीं बिजलियाँ-बिजलियाँ.
कोई अखबार देखो किसी दिन भी तुम,
दहशतों में सनी सुर्खियाँ-सुर्खियाँ.
फ़ासला दिन-ब-दिन रोज़ बढ़ता गया,
आपके और मेरे दरमियाँ-दरमियाँ.
पास में है समंदर सभी को पता,
फिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ.
हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
कर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.
साफ़गोई है खतरे से ख़ाली नहीं,
कल मिलेंगी 'कुँवर' धमकियाँ-धमकियाँ.
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आजकल के परिवेश में घुलता हुआ भयावह अंधेरा हर संवेदनशील मन को उद्वेलित कर जाता है. ऐसी विषम परिस्थितियों में भी चिरागों की मांनिद जलने का हौसला मन में उम्मीद की किरण जगा जाता है. प्रेरणादायक प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
कोई अखबार देखो किसी दिन भी तुम,
ReplyDeleteदहशतों में सनी सुर्खियाँ-सुर्खियाँ.
वाह...
पास में है समंदर सभी को पता,
फिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ...
बहुत खूब...
दोनों शेर खास तौर पर अच्छे लगे.
हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
ReplyDeleteकर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.
aadarniya kunwar ji ...bahut khoobsurat gazal ... aapki har rachna mein gehrai hoti hai ...
आपकी इस ग़ज़ल में से भावनाऒं का ऐसा सैलाव उठा कि कई पल रुक कर आपको मिल रही उन धमिकियों को निहारने पर विवश कर गया। शिल्प के वैशिष्ट से रचना असाधारण हो गई है। घटना की मार्मिकता, सूक्ष्म, सघन दृष्टि और आपके काव्यात्मक विवरण से इसका वर्णन जीवंत हो उठा है। और तब लगा कि हौसला है चरागों के माफ़िक फिर क्या कर पाएंगी ये आंधियां बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी पर - कविताओं में प्रतीक शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है!
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@कुँवर कुसुमेशजी आपने भी खूब कही .हा हा हा ..कई बार मेरी बेटी ही कहती है बाबा के हाथ के चिकन का जवाब नहीं ... आपके टिप्पणीके लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteपास में है समंदर सभी को पता,
ReplyDeleteफिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ.....
आज कि पृष्टि कुछ ऐसे ही है .... अखबार तो पढ़ा नहीं जाता ...
बहुत सुन्दर रचना !
कोई अखबार देखो किसी दिन भी तुम,
ReplyDeleteदहशतों में सनी सुर्खियाँ-सुर्खियाँ.
फ़ासला दिन-ब-दिन रोज़ बढ़ता गया,
आपके और मेरे दरमियाँ-दरमियाँ.
पास में है समंदर सभी को पता,
फिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ.
vaah bahut sundar gazab kaa likha hai... badhai..
bahut hi ache se rachi gai kavita...badhai...Archana
ReplyDeleteहौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
ReplyDeleteकर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.
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Quite motivating !
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यथार्थपरक सभी शेर बहुत ही सुन्दर बन पड़े हैं...
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल...
अरे वाह !
ReplyDeleteलगता है एक और अच्छा ब्लाग मिला ...शुभकामनायें कुसुमेश जी
हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
ReplyDeleteकर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.
साफ़गोई है खतरे से ख़ाली नहीं,
कल मिलेंगी 'कुँवर' धमकियाँ-धमकियाँ
कुँवर कुसुमेश जी @ बहुत दिनों बाद एक ऐसा ब्लॉग मिला जिसे पूरा पढने का दिल किया. बहुत ही अच्छे ख्यालात हैं.
4.5/10
ReplyDeleteएक सामान्य हल्की ग़ज़ल
कोई शेर ऐसा नहीं जो याद रह जाए
बस पढ़िए...वाह-वाह करिए..और भूल जाईये
अरे, आप भी इसी चर्चा में लगे हैं। बहुत सुंदर गज़ल। आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteकुँवर कुसुमेश जी ....
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ग़ज़ल है .
मुझे तो हर शेर अच्छा लगा और याद भी रहेगें.
आप के ब्लॉग पर आकर ख़ुशी हुई
Bahut sundar kushumeshji badhai
ReplyDeleteपास में है समंदर सभी को पता,
ReplyDeleteफिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ.
हर शेर हकीकत कह रहा है ... गज़ब के बन आये हैं सब शेर ... बहुत बहुत बढ़ी इस ग़ज़ल पर ....
कर ना पाएंगी कुछ आंधियां धमकियाँ !आपकी रचना बहुत सुन्दर है
ReplyDeleteआफरीन...लाज़वाब....निहायत उम्दा कहा है आपने! अश्विनी कुमार रॉय
ReplyDeleteपास में है समंदर सभी को पता,
ReplyDeleteफिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ.
सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
ReplyDeleteकर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.
वाह! भईया...
बहुत ही शानदार, ग़ज़ल....
सादर बधाई...
हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
ReplyDeleteकर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.
साफ़गोई है खतरे से ख़ाली नहीं,
कल मिलेंगी 'कुँवर' धमकियाँ-धमकियाँ.
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बहुत खूब वर्तमान समय में आम आदमी की मनोदशा को अभिव्यक्त करती रचना...सादर!!