Thursday, October 7, 2010

विरासत को बचाना चाहते हो
कुँवर कुसुमेश

विरासत को बचाना चाहते हो ,
कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.

तुम्हारी सोंच पे सब कुछ टिका है,
कि आख़िर क्या कराना चाहते हो.

रियलिटी शो के ज़रिये चैनलों में,
बदन नंगा दिखाना चाहते हो.

अरे ओ पश्चिमी तहज़ीब वालों ,
ये कैसा गुल खिलाना चाहते हो.

हमें पहचान दी शाइस्तगी ने ,
इसी को तुम गँवाना चाहते हो.

'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
अगर अच्छा बनाना चाहते हो.

33 comments:

  1. प्रेरक रचना के लिए साधुवाद!
    सद्भावी--डॉ० डंडा लखनवी

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  2. बहुत सीधी और सही बात.. समाज के लिए अच्छी प्रेरक रचना के लिए धन्यवाद

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  3. हमें पहचान दी शाइस्तगी ने ,
    इसी को तुम गँवाना चाहते हो.

    'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
    अगर अच्छा बनाना चाहते हो.
    बहुत ही शानदार रचना---एक अच्छा संदेश देती हुयी----नवरात्रि पर्व की हार्दिक मंगलकामनायें स्वीकारें।

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  4. विरासत को बचाना चाहते हो ,
    कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.

    वाह क्या बात है , एक दम सही विषय और एक बेहतरीन रचना :)
    मान गए आपको

    [आपके प्रश्नों के उत्तर ब्लॉग पर दे दिए हैं ]

    इस रचना के लिए ह्रदय से धन्यवाद

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  5. अरे ओ पश्चिमी तहज़ीब वालों ,
    ये कैसा गुल खिलाना चाहते हो.
    और
    'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
    अगर अच्छा बनाना चाहते हो
    ....बहुत सार्थक चिंतन ... पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण जिस तेजी से हो रहा हैं उससे बच्चों के बचाने की सख्त जरुरत है...
    नवरात्र की सभी को बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ

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  6. कुँवर जी इस गज़ल में बेहतरीन विचार हैं । आपकी प्रकाशित पुस्तकों के बारे में जानकर अच्छा लगा ।

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  7. समाज को जागरूक करती अच्छी रचना ....आभार



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  8. 'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
    अगर अच्छा बनाना चाहते हो.

    ....बड़ी खूबसूरत बात कही....बधाई. कभी 'शब्द सृजन की ओर' भी आयें.

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  9. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  10. .

    बहुत सही मुद्दा उठाया है। हमारे संस्कार हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि हैं। भारतीय चाहे विदेश में भी रहे, अपने संस्कार नहीं भूलते । लेकिन कल हम लोग 'पटाया' गए थे, एक नव विवाहित जोड़े से मुलाकात हुई। शर्मसार करता हुआ पहनावा , उनकी आधुनिकता की अंधी दौड़ को दर्शा रहा था।

    .

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  11. आदरणीय कुंवर कुसुमेश जी
    नमस्कार !

    बहुत शानदार मतला है…
    विरासत को बचाना चाहते हो
    कि अस्मत को लुटाना चाहते हो


    … और यह शे'र भी
    हमें पहचान दी शाइस्तगी ने
    इसी को तुम गंवाना चाहते हो

    हमारी तहज़ीब और विरासत को तमाम अश्'आर में अच्छा उकेरा है ।

    रियलिटी शो के ज़रिये चैनलों में
    बदन नंगा दिखाना चाहते हो

    कहन में ज़दीदियत प्रभवित करती है ।

    पूरी ग़ज़ल रवां-दवां है , हर शे'र ख़ूबसूरत है ,
    … और हर शे'र में शामिल जज़बात ज़िम्मेवारी से लबरेज़ है, जिसकी ज़रूरत है हम सब के लिए …
    शुक्रिया और मुबारकबाद !

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. 'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
    अगर अच्छा बनाना चाहते हो.

    बहुत संवेदनशील और जिम्मेदारियों का एहसास करने वाली रचना कुंवर जी ... बहुत बहुत धन्यवाद इस रचना को पढने का अवसर प्रदान करने के लिए ...शुभकामनाएं

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  13. अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
    तीन गो बुरबक! (थ्री इडियट्स!)-2 पर टिप्पणी के लिए आभार!

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  14. har ek sher aaj ke daur kee dastaan bayan kar raha hai ...rajendra jee ne pahle hi itni baaten kah deen mere liye kuch bacha nahi ..umda ghazal kahi aapne..

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  15. विरासत को बचाना चाहते हो ,
    कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.
    वाह...बहुत उम्दा.
    तुम्हारी सोंच पे सब कुछ टिका है,
    कि आख़िर क्या कराना चाहते हो.
    सही कहा, विचारधारा जीवन का आधार है...
    सुन्दर लेखन के लिए बधाई.

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  16. बहुत उम्दा गज़ल! बधाई.

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  17. हमें पहचान दी शाइस्तगी ने ,
    इसी को तुम गँवाना चाहते हो

    बहुत सच्ची बात है ,कहीं खोती जा रही है हमारी शाइस्तगी
    उम्दा ग़ज़ल,मुबारक हो

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  18. बहुत ही उम्दा सोच
    और मेआरी ख़यालात को
    उजागर करती हुई शानदार ग़ज़ल ...

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  19. विरासत को बचाना चाहते हो ,
    कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.

    वाह क्या बात है बहुत ही सुंदर रचना है आपकी कृपया निरंतरता बनाये रखे धन्यवाद.
    अगर समय का आभाव न हो तो कृपया मेरा ब्लॉग http://deepakpaneruyaden.blogspot.com/ देखने का कष्ट करें

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  20. "हमें पहचान दी शाइस्तगी ने ,
    इसी को तुम गँवाना चाहते हो.
    'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
    अगर अच्छा बनाना चाहते हो."

    प्रासंगिक और सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  21. कुँवर जी,
    नमस्कारम्‌!
    क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने! हर शे’र उम्दा है...बधाई!
    आपको ख़ूब पढ़ता रहा हूँ,पत्रिकाओं में। ब्लॉग पर पहली बार देखा,ख़ुशी हुई। अब यहाँ भी जुड़ा रहूँगा आपसे। और हाँ... आप भी घूम जाया कीजिएगा इधर- http://jitendrajauhar.blogspot.com/

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  22. रियलिटी शो के ज़रिये चैनलों में,
    बदन नंगा दिखाना चाहते हो.

    अरे ओ पश्चिमी तहज़ीब वालों ,
    ये कैसा गुल खिलाना चाहते हो
    कुँवर कुसुमेश जी @ बहुत खूब कहा है.
    आपकी किताबें देख मुझे लगा शायद आप से मिल चुका हूँ. क्या आप हज़रत गंज लखनऊ के किसी दफ्तर मैं रहे हैं?

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  23. बहुत खूब कहा आपने
    अगर अब भी नही सोचा तो शायद हमे कभी वक्त भी ना मिले कि हम क्या करना चाहते है ।

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  24. अपने दायित्वों एवं भूलों के प्रति चेतना जगाती बहुत प्रभावी रचना ! काश लोग इससे कुछ सबक ले सकें !

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  25. तुम्हारी सोंच पे सब कुछ टिका है,
    कि आख़िर क्या कराना चाहते हो.

    sateek sarthak rachna ...
    bahut sunder.

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  26. बहुत सीधी सच्ची बात कही है इस रचना के माध्यम से |बधाई |
    आशा

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  27. बधाई....बधाई...
    बहुत सुन्दर...

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  28. बेहद उम्दा प्रस्तुति।

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  29. विरासत को बचाना चाहते हो ,
    कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.

    वाह! वाह! क्या अलग ही अंदाज की गजल है सर..
    बहुत उम्दा...
    सादर बधाई...

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  30. सटीक बात कहती प्रभावशाली रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
    http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_21.html
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  31. वाह ...बहुत खूब ।

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  32. काश कि आप की बात सब की समझ आ जाये !

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