गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से
कुँवर कुसुमेश
अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.
हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.
*********
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से
बहुत खूब ...शुभकामनायें आपको !!
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
आश है तो साँस है | अच्छा लगा
.
ReplyDeleteKunwar ji ,
It's a beautiful ghazal , reminding me of another lovely ghazal which goes thus - " Gulon mein rang bhare , baadlon bahar chale ".
Thanks and regards ,
.
bahut hi sunder gajal likhi hai apne
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत और आशावादी रचना
ReplyDeleteआपकी रचना मे कुछ जोडने की छोटी सी कोशिश
अश्कों को सहेज के रख ले तू आज आँखों मे
कभी तो खुशी बन के मोती बन जायेगे फिर से
अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
क्या कहूं ग़ज़ल तो बेहद खूबसूरत है और हर शेर पर वाह निकल रही है
पर जो आत्म विश्वास आपने दिखाया है वह गजब है....यही विश्वास होना चाहिए....बहुत खूबसूरत
उम्मीदों की रौशनी लिए एक बेहतरीन ग़ज़ल. आभार.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete"ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
ReplyDeleteकि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से."
बहुत खूब....
बढ़िया ग़ज़ल है जनाब
मुबारक हो
कुंवर जी ,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है.
ReplyDeleteवीणा जी ने सच लिखा है हर शेर पर वाह वाह निकल रही है.
ब्लॉग के कुछ मुक्कमिल शायरों में आप का नाम भी है.
हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.
बहुत खूब.
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
बहुत खूब लिखा है आपने.और मक्ता तो बहुत ही बढ़िया है.
जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.
आपकी शायरी को ढेरों सलाम.
asha se bharpoor gazal likhi hai aapne..
ReplyDeletebahut acchi lagi..
abhaar..!
"खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से."....
बहुत खूब....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है.....
bahut khub...
ReplyDelete"हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
ReplyDeleteकिसी की याद ही आये कभी कभी फिर से."
कुश्मेश्जी...
पूरी ही ग़ज़ल खूबसूरती के साथ कुछ सन्देश देती है....
किस पर दाद दूँ.....समझ नहीं पा रही हूँ !!
बस "इरशाद" ही कह सकती हूँ ........!!
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
बहुत सुंदर रचना .....
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
ReplyDeleteअँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.
इसे याद रखूंगी, अच्छा लगा |
सच में आपकी शायरी जगाने वाली ही है....
ReplyDeleteआशाओं से भरी ताजगी वाली शायरी....
प्रणाम.
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
puri ho jaye ye soch ... dua ki hai her roj
sir ji namaskar ji
ReplyDeletebahut hi sunder parastuti
badhai
वाह कुवँर साहब वाह
ReplyDeleteक्या शेर कहा
जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.
बधाई
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
कुंवर जी वाह...वा...आपकी एक और शसक्त ग़ज़ल...बेहतरीन...हर शेर हीरे की तारक तराशा हुआ और चमदार...मेरी दाद कबूल करें...
नीरज
आशावादी एवं प्रेरणादायक रचना है.
ReplyDeleteसुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
वाह। एक मुकम्मल गजल। आप ऐसे ही लिखते रहें और हम आपका अनुसरण करते रहे।
माना आजकल इतना बदल गया गोया,
ReplyDeleteकि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
ReplyDeleteउसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से..
जरूर आपकी ग़ज़ल में है वो ताकत, खूबसूरत आशावादी रचना..
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से
इस शेर के आगे तो कुछ भी नहीं है कुंवर जी ... उम्दा ग़ज़ल
बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteसुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
शानदार गज़ल!!!!!
आद. कुंवर जी,
ReplyDeleteज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.
ग़ज़ल का हर शेर इतना उम्दा है कि जी करता है दाद देता ही रहूँ !
अच्छे को बस अच्छा कह देने से मन भी तो नहीं भरता !
आपकी लेखनी को नमन !
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.......
बेहतरीन ग़ज़ल...
हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है....
हार्दिक बधाई।
अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से।
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से।
वाह, कुसुमेश जी , वाह।
क्या खूब ग़ज़ल लिखी है आपने।
आपकी ग़ज़लों की बात ही कुछ और है।
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
kya khoob kha hai
baki ashaar bhi sunder
----- sahityasurbhi.blogspot.com
बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़.
ReplyDeleteसादर
एक-एक शे’र लाजवाब। देर तक मन में गूंजती है यह ग़ज़ल।
ReplyDeleteआपकी लेखनी को सलाम!!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01-03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से
बहुत खुबसूरत रचना |
शब्दों का खुबसूरत ताना - बाना |
भाई कुशमेश जी कंटेंट की ताजगी लिए एक खूबसूरत गज़ल पढ़ने को मिली आपको बहुत बहुत बधाई |सादर
ReplyDeletebahut khubsurat gajal hai.
ReplyDeletehamare dil ka daricha khula hi rahata hai
kisi ki yaad hi aye kabhi kabhi phir se....
bahut sunder....
अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
बेहद शानदार अशआर.....
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।
@ सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
आमीन !
बहुत बढ़िया रचना सुन्दर भावों से परीपूर्ण
बात भी खूब कही...
ReplyDeleteजो सुकून आप को पढ़कर मिला
ऐसी नज्म के लिए शुक्रिया...
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
hum sabhi yahi chahte hai .ati sundar .
बेहतरीन !
ReplyDeletekamlesh ji ,
ReplyDeletepahli bar aapki rachana ko padha , shayad der ho gayi . bahut achhi rachana ,kavya dharm ke sakaratmak paksha ko bakhubi varnit kiya hai .
sundar shilp dhanyavad .
जरूर जगाएगी आपकी शायरी ! बहुत ही अच्छी गज़ल ! धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteआदरणीय कुशमेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत खूब....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,
ReplyDeleteअँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
bahut khoobsoorat aur vishvaspoorn matla
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
waah !behad optimistic sher jo dilon men hausala aur himmat bedar kar de
badhai
अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
--
गजल बहुत खूबसूरत है!
वाकई आदमी कोशिशें तो पूरी करता है जिन्दगी को जिन्दगी की तरह जीने की, पर अक्सर मौत को जीता है.. और आखिरकार
ReplyDeleteखिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.
आदमी के हालात का और दर्द का बेहतरीन चित्रण किया है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteएक जीवन्त संदेश देती रचना...
ReplyDeleteहमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
ReplyDeleteकिसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.
Bahut khoob ...is lajawaab gazal par dheron badhaai ... kamaal ka likhte hain aap Kunvar ji ..
सुन्दर और भावुक ..धन्यवाद..
ReplyDeleteखिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
बहु खूबसूरत गज़ल..सार्थक और लाज़वाब शेर..
बेहद खूबसूरत..उम्दा ग़ज़ल...लाज़वाब..दाद कबूल करें.
ReplyDeleteझकझोर कर जगाने वाली गजल.
ReplyDeleteसुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
पर ऐसा सोचना अब सार्थक प्रतीत नहीं होता ...आदमी के आदमी होने के चांस कम ही लगते हैं
वाह !........अँधेरे मेँ रोशनी दिखाने वाली गजल । बहतरीन विचारोँ को प्रस्तुत किया है बावू जी आपने । आभार।
ReplyDelete" इक दिल के उसने हजार टुकड़े किये "
वाह !........अँधेरे मेँ रोशनी दिखाने वाली गजल । बहतरीन विचारोँ को प्रस्तुत किया है बावू जी आपने । आभार।
ReplyDelete" इक दिल के उसने हजार टुकड़े किये.........रचना "
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
ReplyDeleteअति उतम आनंदित करने वाले अंदाज है आपके बड़े दिनों के बाद कुछ अच्छा पढने को मिला
धन्यवाद
कोई पूछता क्यों नहीं इन्सान से कि तू इन्सान क्यों नहीं !
http://sagarmal.blogspot.com/2010/12/blog-post_4660.html
अच्छी गजल
ReplyDeleteकुसुमेश जी । दो बार जुङ गये ब्लाग्स की एडीटिंग में आपका
ReplyDeleteब्लाग असावधानी से रिमूव हो गया था । जिसका मुझे खेद है ।
अब आपका ब्लाग मध्य पंक्ति में जुङ गया है । मुझे सचेत
करने के लिये आपका बेहद धन्यवाद ।
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
दोनो शेर दिल को छू गये। बहुत ही खूबसूरत गज़ल है। बधाई।
आदरणीय कुसुमेश जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
पूरी ग़ज़ल काबिले-ता'रीफ़ है…
और यह शे'र हासिले-ग़ज़ल …
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाए आदमी फिर से
इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद और भरपूर दाद है…
♥ महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! ♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत बढ़िया रचना सुन्दर भावों से परीपूर्ण|
ReplyDeleteआप को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|
amen...
ReplyDeleteज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
ReplyDeleteकि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
बहुत बढ़िया रचना ..........
आप को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|
बहुत उम्दा ग़ज़ल ,,,,,,हर शेर बेहतरीन
ReplyDeleteदेर से आने कल इए माफी की गुहार...
ReplyDeleteबाकी आपको पता ही है की क्या हुआ था???
ग़ज़ल के लिए... हमेशा की तरह बहुत अच्छी...
मुझे भी सीखनी है...
अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से...
रोशन सवेरे हों सबके लिए ...
सकारात्मक विचार हर लिहाज़ से मेरी पहली पसंद हैं और यह कविता भी ऐसी ही है ...
बहुत से ब्लॉग की फीड नहीं मिल पाने के कारण पढना देर से हुआ..
मेरे लिए तो "वाह" हर एक शे'र शानदार!
ReplyDeleteलिखते रहें, पढने की इच्छा बनी रहेगी!
--
व्यस्त हूँ इन दिनों-विजिट करें
बहुत सुन्दर सर ताजगी भर दिया आप ने
ReplyDeleteसुन्दर गजल
बहुर सुन्दर
अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ReplyDeleteये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
wah.....bahut sundar....
बहुत सुन्दर गजल ..बधाई.
ReplyDelete_______________
पाखी बनी परी...आसमां की सैर करने चलेंगें क्या !!
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
pehli baar aya hu. accha laga apko parhna
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
ReplyDeleteअन्तरार्ष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteहमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
ReplyDeleteकिसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.
आती ही होगी .....
इन्तजार जारी रखें ....
बहुत सुंदर सारे शे'र .....
क्या ग़ज़ल लिखी है आपने? सर जी .....बेहद ही उम्दा ग़ज़ल लिखी है। मुझे तो इसका हर शेर पसंद आया। आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteखिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
ReplyDeleteगुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
वाह क्या बात है .... बेहतरीन बात कही है आपने !
आपके ब्लाग पर पहले भी आता रहा हूं। यह अलग बात है कि टिप्पणी नहीं की। जीवन में अगर सकारात्मक सोच हो तो सब कुछ संभव है।
ReplyDeleteआपसे एक ही अनुरोध है नकारात्मक विचारों और ब्लागों से दूर रहें।
सकारात्मक और प्रेरित करने वाली पंक्तियां
ReplyDeleteHamesha ki tarah shandar.
ReplyDelete---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने ! बेहतरीन प्रस्तुती! बधाई!
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
ReplyDeleteकभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
बहुत खूबसूरत गज़ल है ! हर एक शेर लाजवाब है और कमाल का अंदाज़े बयाँ है ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
बेहद शानदार गज़ल ।
ReplyDeletetareef ke liye shavd kam padenge .
ReplyDeletesakaratmak ravaiya bada pyara sandesh de gaya .....