वैलेण्टाइन पर्व
कुँवर कुसुमेश
लाई चौदह फरवरी,वैलेण्टाइन पर्व.
बूढ़े माथा पीटते , नौजवान को गर्व.
युवक,युवतियां आजकल,दिल में लिए उमंग.
चढ़ा रहे हैं प्रेम पर,पाश्चात्य का रंग.
होठों पर मुस्कान है,हाथों में है फूल.
बैठा जोड़ा पार्क में , कट कर के स्कूल.
जैसे बेहतर दूसरा,नहीं कोई स्थान.
अड्डे प्रेमालाप के, पार्क और उद्यान.
फैशन का जादू चला , यत्र-तत्र-सर्वत्र.
नारी के तन पर दिखे,मित्र ! न्यूनतम वस्त्र.
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
तो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
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आपकी प्रस्तुति बेहतरीन और सम्यक है ....शुक्रिया
ReplyDeleteआद . कुसुमेश जी ,
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
तो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
आज के युवा जिस तेज़ी से पाश्चात्य संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे हैं वह बड़ी चिंता का विषय है ! नई पीढ़ी अपनी जड़ों से लगातार कटती जा रही है ! जिस संस्कृति पर उसे गर्व होना चाहिए उसे ही भूलती जा रही है, ऐसे में आपके दोहे सोचने पर विवश करते हैं !
सारे दोहे संग्रहणीय हैं !
साधुवाद !
कुसुमेश जी ,
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
तो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
मुझे शुरू से ही इस पर्व पर एतराज हे --अंग्रेजी सभ्यता हमारी युवा- पीढ़ी की पहचान बनती जा रही हे जो मुझे स्वीकार नही ! यह सिख युवा पीढ़ी को समझनी चाहिए |
सभी दोहे दिल को छू लेने वाले हैँ । इनकी मौजूदा माहौल पर धार और सटीकता प्रभावी है ।
ReplyDeleteआभार बावू जी !
" देखे थे जो मैँने ख्याब............कविता "
sahi hai... per ab yahi aalam hai aur jane kab tak rahega !
ReplyDeleteहोठों पर मुस्कान है,हाथों में है फूल.
ReplyDeleteबैठा जोड़ा पार्क में , कट कर के स्कूल.
आज का माहौल है
ज्ञानचंद्र जी से पूरी तरह सहमत हूँ मै
बहुत सुन्दर कुसुमेश जी
कुवँर साहब पहचान तो खोती ही जा रही है
ReplyDeleteसामयिक एवं बेहतरीन गजल के लिए शुभकामनाये
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान
कुसुमेशजी... बहुत ही सटीक और प्रासंगिक रचना है.....
आप के विचार उत्कृष्ट हैं और सही बयान भी किया है इस कविता में.
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
सुन्दर ...सार्थक ..... आज पर करार प्रहार ..शुभकामनाये
ReplyDeleteहोठों पर मुस्कान है,हाथों में है फूल.
ReplyDeleteबैठा जोड़ा पार्क में , कट कर के स्कूल.
sir ji bahut bahut sunder likha he aapne
बूढ़े माथा पीटते , नौजवान को गर्व.
ReplyDeleteहा...हा...हा......
कुसुमेश जी आपने तो वैलेण्टाइन पर्व.धज्जियां उड़ा दीं ...
बहुत खूब .....!!
आज के हालात पर व्यंग्यात्मक रचना...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
बदलते समय के नब्ज़ टटोलती कविता... इसमें मूल्यों के गिरने पर सशक्त व्यंग्य किया गया है.. सुन्दर.. प्रभावशाली.. समसामयिक..
ReplyDeleteआज के परिप्रेक्ष्य में आपकी रचना बहुत सटीक बैठती है।
ReplyDeleteप्रियवर कुसुमेश जी
ReplyDeleteवैलेण्टाइन पर्व के संदर्भ में युवा पीढ़ी से बात करते आपके दोहों के लिए आभार !
हमारी गौरवशाली संस्कृति को आपके दोहों के माध्यम से युवजन पुनः याद करें … अस्तु !
बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
• आपके दोहे पढने से ऐसा लगता है कि आप यह मानते हैं कि काव्य का मतलब कुछ कह देना नहीं होता है। आप ख़ामोशी के कायल हैं। आपके दोहों में खामोशी जो है वह कई अर्थ और रंग लिए हुए है। अपनी धारणाओं और मान्यता के बल पर ही आपने अपने दोहों को इन रंग में ढाला है।
ReplyDeleteahaahah.......sahi kaha......
ReplyDeletelekin wakt ki nazaat ji dekhiye ki, dhindora peet peet ke kehna pad rha hai....love hua love hua love hua................
nazaat ji ko nazaakat padhen......
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान
सही कहा है आपने जिस संस्कृति पर गर्व होना चाहिए उसे ही भूलते जा रहे है, और दिखावे से ज्यादा इसे महसूस करने की जरूरत होती है..
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान
संस्कृति भूलते जा रहे है .........
कम शब्दों में बडी गहरी बातें कह दी आपने, बधाई।
ReplyDelete---------
पुत्र प्राप्ति के उपय।
क्या आप मॉं बनने वाली हैं ?
हर पंक्ति अपने आप में बहुत कुछ कहते हुई ...।
ReplyDeleteसामयिक और प्रासंगिक कविता सच को उदघाटित करती हुई।
ReplyDelete"लाई चौदह फरवरी,वैलेण्टाइन पर्व.
ReplyDeleteबूढ़े माथा पीटते , नौजवान को गर्व."
सही पहचाना,सर. एक पर्व जो पीढ़ियों की सोच के अंतर को उजागर करती है.प्यार के पर्व पर भी बंदिशों का दौर जारी है,लेकिन ये प्यार का खुमार है जो हर नौजवानों पर तारी है.सुन्दर और सामयिक गजल.
'ओढ़ विदेशी सभ्यता करते रहे गुमान
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे तुम अपनी पहचान '
कुसुमेश जी ,
सभी दोहे बहुत अच्छे |
your post truly describes the present scenario and gives a message to the youngster .
ReplyDeletevery shortly and beautifully you wrote , which is appreciable .
har nazm bilkul sachchai bayan karti hui. ...... sunder prastuti.
ReplyDeleteभाई कुशमेश जी बहुत सुन्दर दोहे आपने कहे हैं बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |
ReplyDeleteसुन्दर कविता.. सामाजिक सरोकारों और कुरीतियों पर जिस तरह आप लिख रहे है वह सत्तर के दशक के स्वर सा है.. वरना अब तो निजी दुनिया से बहार लोग लिख ही नहीं रहे..
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
saarthak baat
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
क्या बात है सर जी..बहुत बढ़िया...लिखा है।
आदरणीय कुसुमेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बडी गहरी बातें कह दी आपने
... बहुत ही सटीक और प्रासंगिक रचना है
बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)
ReplyDelete.
ReplyDeleteमुझे तो इन अंग्रेजी दिवसों का कोई औचित्य ही नज़र नज़र नहीं आता । mother's day , father's day , valentine's day आदि । अंग्रेजों कों तो खदेड़ दिया , लेकिन पाश्चात्य का भूत सर चढ़कर बोल रहा है ।
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बहुत ही बढ़िया सन्देश.
ReplyDeleteसलाम.
आप भी बाऊजी...
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
सही कहा आपने। सुंदर रचना के लिए साधुवाद!
मै तो भागने लगा था..वैलेण्टाइन शव्द पढ कर... लेकिन अचानक नजर पड गई इन लाईनो पर....
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
तो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
ओर जाते जाते रुक गया तो फ़िर ध्यान से आप की इस सुंदर रचना को पढा, मेरे मन की बात कह दी, मै युरोप मे रह कर भी इन के त्योहारो को घर के अंदर नही लाया, बाहर सिर्फ़ इन गोरो को बधाई वगेरा दे दी, लेकिन जब देखता हुं आज हमारे भारत मे ही लोग इन के इन त्योहारो को बिना सोचे समझे मना रहे हे तो बहुत अजीब लगता हे, धन्यवाद इस अति सुंदर रचना के लिये
बहुत ही सटीक और प्रासंगिक रचना है| धन्यवाद|
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
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शिक्षाप्रद रहे सभी दोहे!
व्यंग्य भी है और एक संदेश भी कि हम अपनी स्वदेशी सभ्यता और संस्कृति को न भूलें. अच्छी रचना . आभार .
ReplyDeleteवीर रस का कवि अगर valentine day पे कुछ लिखे तो क्या लिखेगा....
ReplyDeleteकुछ हल्का फुल्का सा...
युद्ध का बिगुल क्यों बजवाते हो
मरने मारने को क्यों ललकारते हो.
काम चल जाए अगर बस नज़र से ही.
ये तोप औ बन्दूक क्यों चलवाते हो??
kya baat hai sir, bikul sahi bayan kiya hai aapne
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeleteaapka e-mailila tha par in dino mai kaffi aswasth chal rahi thi isi liye aapko jawab nahi de paai .xhma chahti hun.
abhi bhi puri tarah theek nahi hun par thoda-thoda
net par baithne lagi hun .isliye tippni der se dal
dheere -dheere blogon tak pahunch pa rahi hun.
aapki yah post bilkul haqikat bayan karti hai .har ek panktiyan behad sarthakta liye hue hain.
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
तो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान
bahut hi sateek prastuti
dhanyvaad
poonam
ओढ़ विदेशी सभ्यता,करते रहे गुमान,
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान।
आज की युवा पीढ़ी को आगाह करते हुए ये दोहे कटाक्ष भी कर रहे हैं।
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान
कुसुमेशजी... बहुत ही सटीक रचना है.....
ati sunder, prasngik aur steek dohe
ReplyDeletebdhai ho
------sahityasurbhi.blogspot.com
आदरणीय कुसुमेश जी
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ! और बहुत अफ़सोस हुआ की मैं अब तक यहाँ आने से वंचित कैसे रहा ! आपकी लेखनी का मैं कायल हो गया !
आपको शत शत नमन !!
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
कितनी सही बात लिखी है आपने -
बहुत बढ़िया रचना
आजकल के युवावर्ग की कहानी को खूबसूरती से दर्शाती रचना !
ReplyDeleteआदरणीय कुसुमेश जी नमस्कार| बरास्ते चर्चा मंच इस बार पहुँचा आपके ब्लॉग पर|
ReplyDelete"बूढ़े माथा पीटते" पहले दोहे से ही आपने ग़ज़ब का रंग जमाया है सर जी|
कट कर के स्कूल..............यक़ीनन कई सारे लोगों को अपने वो दिन याद दिला दिये आपने|
फेशन का जादू............करारी चोट, व्यंग्य बाणों के साथ|
ओढ़ विदेशी सभ्यता.............बहुत ही सही संदेश मान्यवर|
करारा प्रहार ..शुभकामनाये
ReplyDeleteसांस्कृतिक संक्रमण पर दोहे अच्छे लगे। आभार।
ReplyDeleteआदरणीय कुसुमेश जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete"हट जाओ वेलेण्टाइन डेे आ रहा है!".
बहुत अच्छा लिखा है, संदेश अच्छा है पर समझने को कोई तैयार नही ।
ReplyDeletebahut achha likha hai aapne
ReplyDeleteder se aane ko maafi chahti hu
..
बहुत खूब ...!शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान. yahi hai vailentine day ....bahut khub sir.....
ReplyDeleteपहचान और निगरानी में भी जुटे हैं काफी लोग.
ReplyDeleteबहुत सार्थक, समसामयिक और सटीक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवेलेंटाइन के बहाने अच्छी सीख मिली।
ReplyDelete---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
frank description....
ReplyDeleteजरूरी कटाक्ष। आनंद आ गया पढ़कर।
ReplyDeletebahut sahi chitran aaj ki yuva peedhi ka....shabdon ke madhyam se sandesh....
ReplyDeleteati sundar..!!
badlte vakt ke saath sab kuch badal gaya hai.
ReplyDeletebahut sunder lagi rachna.apke blog par pahali baar aai hun achha laga......
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
सही है.
bilkul sahi likha hai aapne .badhai .
ReplyDeleteवाह आपने न केवल कोरा सच लिखा है पर इतनी खूबसूरती के साथ लिखा है कि क्या कहूँ ...
ReplyDeleteओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान.
बहुत ही अच्छी रचना...अब तो वेलेंटाइन का बुखार चढ़ता है...
लड़कियों के वस्त्र देखकर वाकई शर्म आती है पर न उन्हें आती न उनके माता-पिता को...
ब्लॉग भी फॉलो कर रही हूं...
ओढ़ विदेशी सभ्यता ,करते रहे गुमान.
ReplyDeleteतो खोते ही जाओगे,तुम अपनी पहचान
bahut pasand aai is avasar par likhi gayi ki rachna .
वेलेन्टाईन के सच काफी करीब से जानते हैं आप। और जिन्दगी के सच हम http://rajey.blogspot.com/
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