कश्तियाँ मुब्तला किस सफ़र में
कुँवर कुसुमेश
डगमगाने लगी है भंवर में.
कश्तियाँ मुब्तला किस सफ़र में.
आँख से निभ रही आंसुओं की,
कुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में.
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
डूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में.
वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
कुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
***********
मुब्तला-फंसी हुई,निहाँ-छिपा हुआ,
चश्मेतर-डबडबाई आँख,वक्तेरुख्सत-अंतिम समय
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में.
भाई कुशमेश जी बहुत सुंदर गज़ल बधाई
kuch hashil na hua umar bhar mai bahut khub
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल
ReplyDeleteहर शेर पर मुहँ से वाह निकली है
बधाई एवं शुभकामनाये
आदरणीय कुशमेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
कुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
.............बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत सुंदर गज़ल बधाई .......
सुन्दर भावो के साथ सुन्दर गज़ल्।
ReplyDeleteआप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
ReplyDeleteआज के समय को परिभाषित करती पूरी ग़ज़ल...
ReplyDeleteफ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में.
यह शेर दिल के सबसे करीब लगी...
वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
ReplyDeleteकुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
--
छोटी बहर की बहुत बढ़िया गजल लिखी है आपने।
गुनगुनाने में अच्छा लग रहा है।
kamaal kee rachna hai ...
ReplyDeleteज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है ! शुक्रिया !
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
खूबसूरत गज़ल ...सटीक बात कहती हुई ..
खूबसूरत कृति की सबसे बेहतरीन पंक्तियाँ.. बहुत खूब!
ReplyDeleteज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
पढ़े-लिखे अशिक्षित पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ReplyDeleteऐब में और यारो ! हुनर में.
इसीका तो गम है ... सुन्दर ग़ज़ल !
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में....
बहुत सुन्दर ग़ज़ल....सच्चाई को बयां करती हुई ...
इतनी खुबसूरत रचना है की ब्यान करने को शब्द नहीं मिल रहे एक - एक शब्द खुद बोलते हुए |
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत |
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
अहा -हा-हा!
क्या बात कही है। ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में! अद्भुत! एक दम कुंवर साहब दिल को छू लेने वाला शे’र। कभी-कभी आगे बढ़ने के लिए तकलीफ उठाना बहुत जरूरी है। हम में अपनी सीमाओं से पार जाने की काबलियत होती है लेकिन जब जिंदगी में सब ठीक ठाक चल रहा होता है, तो हम कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते। यानी ज़हर पीना ही नहीं चाहते।
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल..हरेक शेर यथार्थ का आइना दिखाते हुए..दिल को छू गयी
छू गयी दिल को...
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में...
बहुत खुबसूरत......
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ReplyDeleteवक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
ReplyDeleteकुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
लेकिन ---
लेकर देखिये मालिक का नाम
सुकूं मिल जायेगा पल भर में
कविता गुरु कुंवर कुसुमेश जी
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
sahi bole.....
आँख से निभ रही आंसुओं की,
ReplyDeleteकुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में.
बहुत ही खुबसूरत शेर, बहुत खूब .......
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में.
बहुत खूबसूरत शेर एक से बढ़कर एक. सीधे दिल उतरते, बहुत खूब, आभार.
khyaal achha hai bahut khub.
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
बहुत ही खूबसूरत ग़़ज़ल
बधाई और शुभकामनाएं
खूबसूरत ग़ज़ल . हर शेर बेहतरीन बने है .
ReplyDeleteबहुत अच्छी गज़ल ।
ReplyDeleteआँख से निभ रही आंसुओं की,
कुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में.
बेहतरीन ।
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
बहुत ही बढ़िया .... सुंदर ग़ज़ल .....
"aankh se nibh rahi aansuon kee ,
ReplyDeletekuchh sukoo hai nihaan chasme -tar main "-kyaa baat hai huzoor ,chhaa gaye .andaaze byaan me -
veerubhai
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ReplyDeleteऐब में और यारो ! हुनर में.
वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
कुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
हर शेर में बहुत गहरे भाव हैं .......
ज़िन्दगी की सच्चाई से पहचान कराती हुई ग़ज़ल ...
बहुत खूब ..!.
सर आप के अल्फाजों कि जीतनी तारीफ़ कि जाय कम है,
ReplyDeleteआप का शब्द चुनाव एकदम सटीक होता है ,
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत शुभकामना
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ReplyDeleteऐब में और यारो ! हुनर में... bhut acchi kavita hai...
अच्छी ग़ज़ल. आभार . रामनवमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .
ReplyDeleteआदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.....
बहुत सुन्दर
वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
ReplyDeleteकुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
पूरी ज़िन्दगी का निचोड़ इस एक शेर में मौजूद है !
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
डूबता जा रहा मालो-ज़र में.
इससे बड़ी सच्चाई कुछ भी नहीं है !
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
ज़हर पी कर जीना आज के इंसान की मज़बूरी है ! इतनी कड़वी सच्चाई को भी आपने बड़ी ही खूबसूरती से पेश किया है !
मेरे ढेर सारे दाद कबूल करें !
शुक्रिया !
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
हर शेर में बहुत गहरे भाव हैं ......सुंदर ग़ज़ल ......
लाजवाब गज़ल है मुझे तो समझ नही आ रहा किस किस शेर की तारीफ करूँ
ReplyDeleteज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
कुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
हर शेर मे एक मुकम्मल जिन्दगी के भाव हैं। बहुत दिनों बाद लौटी हूँ बहुत कुछ रह गया पढने से\ समय मिलते ही पीछे भी देखती हूँ। शुभकामनायें।
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में
बहुत खूब कुसुमेश जी ! प्यारी रचना के लिए बधाई !
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ReplyDeleteफ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ReplyDeleteऐब में और यारो ! हुनर में
कुशमेस सर,
एक और बेहतरीन सोच और उसको सामने लाने का अंदाज सदा की भांति प्रभावशाली और सन्देशपरक है.
गजल में बयां करने का आपका अंदाज अनूठा है.आपको और आपके फन को मेरा नमन है.
bahut umda gazal.
ReplyDeleteज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
गहरी बात कहती गजल प्रस्तुति । आभार...
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में
आँख से निभ रही आंसुओं की,
कुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में.
ऐसे ऐसे नायब अशार बता रहे हैं क ग़ज़ल
जनाब कुसुमेश साहब के क़लम का कमल है
आपका तज्रबा खुद बोल रहा है ...
मुबारकबाद .
आँख से निभ रही आंसुओं की,
ReplyDeleteकुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में।
कितनी बारीक बात कह दी आपने, वाह।
बल्किुल सही है, आंसुओं की बारिश के बाद एक अजीब सा सुकून मिलता है।
बहुत ही भावप्रवण ग़ज़ल।
ज़िन्दगी की सच्चाई से पहचान कराती हुई ग़ज़ल| धन्यवाद|
ReplyDeleteआज की सटीक सच्चाई!!
ReplyDeleteफ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में.
.
ReplyDeleteफ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में...
थोडा सा तराशने की ज़रुरत है , फिर ऐब को हुनर बनते देर नहीं लगती । बेहतरीन रचना।
.
हासिल क्या रहा क्या पता..
ReplyDeleteरास्तो पे चलना एक रवायत थी
सो चलता रहा...
कुछ ऐसे ही खालीपन महसूस किया पढ़कर.....
ग़ज़ल उदास कर गई.. आपकी ग़ज़ल एक आइना है..
आपकी कलम से निकला एक और बहतरीन शाहकार...एक एक शेर को बार बार पढने को जी करता है...वाह वाह वाह करते ज़बान नहीं थकती...इस बेहद कमाल की ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें.
ReplyDeleteनीरज
todi muskil aayi urdu samjhne maen magar aap ke sabdarth sae saral ho gaya..
ReplyDeletekhubsurat bhaw
बेहतरीन!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने …
ReplyDeleteरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं !
aapki gajal hamesha umda hi rahti hai....
ReplyDeleteis baar bhi sunder hai.........
बहुत बढ़िया लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
Umda...
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में
बहुत सुंदर नज्म लिखी है --१० बार पड़ी होगी .....
आपके ब्लोक पर आने की आदत -सी पड़ गई है देर -सवेर आ ह़ी जाती हूँ ....
ReplyDeletegazab kee rachana....ek ek sher daad ke kabil........
ReplyDeleteaabhar
Vaah......really very meaningful gazal.
ReplyDeletekunwar kushumesh ji ..I liked your gazal very much.
Congrats.
I wish you with your family a very happy and prosperous RAMNAVMI.
ReplyDeleteडगमगाने लगी है भंवर में.
ReplyDeleteकश्तियाँ मुब्तला किस सफ़र में.
आँख से निभ रही आंसुओं की,
कुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में.
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
डूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में.
वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
कुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.
बहुत खूब .....
मुझे तो हर शेर बेहद पसंद आया इसीलिए सभी को कॉपी कर दिया!
इस बेहद उम्दा ग़ज़ल के लिए आपको बधाई
आपको भारतीय नए वर्ष के साथ-२ राम नवमी की भी हार्दिक शुभकामनाएँ!
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
bahut khoob
सुकूं है निहां चश्मे तर में...
ReplyDeleteवाह बहुत खुबसूरत ग़ज़ल है.... हर शेर लाजवाब...
सादर...
डगमगाने लगी है भंवर में.
ReplyDeleteकश्तियाँ मुब्तला किस सफ़र में.
आँख से निभ रही आंसुओं की,
कुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में.
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
डूबता जा रहा मालो-ज़र में.
bahut khoob aur sach bhi
जिन्दगी की हकीकत बयाँ करती हुई खूबसूरत सी ग़ज़ल..
ReplyDeleteआदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
सच्चाई को बखूबी शब्द दिए हैं ....आज के हालात हैं ही इस कदर की इंसान इंसानियत को भूलता जा रहा है और हैवानियत को अपनाता जा रहा है ...आपका आभार इस सार्थक पोस्ट के लिए
zindgi ki sacchayi,
ReplyDeleteaapne khubsurti se dikhlayi...
is gazal ka ek ek harf bayan karta,
ki zindgi se kijiye aashnaayi.
bahut khoob...bahut badhiya.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ऐब में और यारो ! हुनर में.kadavi haqeekat....sunder shabdon me...
गजल मनभावन है.आप सब को राम नवमी एवं वैशाखी की हार्दिक मंगलकामनाएं.
ReplyDeleteबैसाखी की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteबैसाखी की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteअम्बेदकर जयन्ती की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletebahut hi sateek avam sarthak tatha is shandaar gazal ke liye hardik badhai jiski har panktiyan dil ko bha gai.
sadar pranaam avam dhanyvaad
poonam
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ReplyDeleteऐब में और यारो ! हुनर में.
बहुत सुन्दर ... का कहीं देशवा के हाल भईया कह
आप जो भी लिखते हैं, लाजवाब लिखत हैं।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
बेहद प्रभावी यथार्थपरक गज़ल .....आभार !
ReplyDeleteवाह... आपकी हर ग़ज़ल बेमिसाल रहती है...
ReplyDeleteसही है कुंवर जी..........रुखसत में तो साथ कुछ नहीं जाता
ReplyDeleteज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
वाकई और ज़िन्दगी में समझोता हमेश करना पड़ता है जीने के लिए............................
जाट देवता की भी राम-राम।
ReplyDeleteअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteसही कहा आपने इंसान मालो-ज़र की फिक्र में ही मुब्तला होकर रह गया है. इन आँखों में तरलता तो आती है पर उन्हें भी छिपा जाना पड़ता है .............................. बहुत खूब व्यक्त किया है आपने जिन्दगी के खालीपन को .........
ReplyDeleteआदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में....
..
..
आदाब कुंवर साहब !!
हर शेर बेहतरीन एक से बढ़कर एक .... किसको कोट करें किसको छोड़े ...
खुशकिस्मती कि आपको पढ़ पाया !
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में....
हर पंक्ति ... लाजवाब ।
जिंदगी के लिए है जरूरी
ReplyDeleteलज्ज्तें ढूँढ़ लेना ज़हर में
******************
फर्क कुछ भी नहीं रह गया है
ऐब में और यारों ! हुनर में
............................................
क्या कहना कुसुमेश जी ! ,,,,,,,,,,बहुत सुन्दर शेर
दिल और दिमाग दोनों को झकझोरने में सक्षम ग़ज़ल |
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
बिलकुल ठीक कहा आपने...वेहतरीन ग़ज़ल!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआज के संदर्भ में सौ फीसदी सच। बहुत सुंदर
ReplyDeleteMy God! Sir apki Urdu main lipte baavon ne kamal kar diya...
ReplyDeleteMaza aa gaya :]
फ़र्क कुछ भी नहीं रह गया है,
ReplyDeleteऐब में और यारो ! हुनर में...
यूँ तो सारी ग़ज़ल कमाल है .. पर ये शेर ... अब क्या बयान करूँ ... बहुत ही लाजवाब है ... बेहतरीन शेरों में से एक है ...
"Har baar nai lagti hai ,
ReplyDeleteapthhit gazal lagti hai ."
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति। धन्यवाद।
ReplyDeleteआदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में
आँख से निभ रही आंसुओं की,
कुछ सुकूं है निहाँ चश्मे-तर में
waah !kya bat hai !
आदमी छोड़ कर आदमीयत,
ReplyDeleteडूबता जा रहा मालो-ज़र में.
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
लज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
waah sunder rachna .bahut gehrai hai ......nice thought
बहुत सुन्दर शेर लाजवाब है
ReplyDeleteमैं ब्लॉग में नया हूँ मेरा मार्ग दर्शन करे
आदरणीय कुशमेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
.....खूबसूरत शेर एक से बढ़कर एक
इसी के साथ सेंचुरी की बहुत बहुत बधाई......
वाह!
ReplyDeleteआज, कई दिनों से आपकी नई पोस्ट नहीं आई थी तो चला आया हाल-चाल लेने।
यहां प्रशंसकों की सेन्चुरी लगी देख कर दिल ख़ुश हो गया।
अब तो मैं यक़ीनन कह सकता हूं कि ..
“कुंवर साहब आप ब्लॉगजगत के ग़ज़लों के बादशाह हो!”
कल 17/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
सभी शे'र बेहतरीन लगे!
ज़िन्दगी के लिए है ज़रूरी,
ReplyDeleteलज़्ज़तें ढूंढ लेना ज़हर में.
बहुत सुन्दर ...और सच !!!