Saturday, April 25, 2015

ज़लज़ला


मतलबी इंसान है मतलब में अपनी मुब्तला। 
बारहा पर्यावरण को चोट पहुँचता चला।। 
इसमें क़ुदरत का ज़रा भी दोष हो ऐसा नहीं,
आदमी की भूल का परिणाम है ये ज़लज़ला।। 
-कुँवर कुसुमेश 

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2015) को 'तिलिस्म छुअन का..' (चर्चा अंक-1958) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. आदमी की भूल तो है ही ... तभी आदमी भुगतता भी है ...

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  3. कुदरत भी कितना सहन करे मानव का अत्याचार!!

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  4. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  5. त्रासदी पर सार्थक रचना

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  6. बिल्कुल सही कहा है

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  7. बिल्कुल सही कहा है

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