समन्दर भी डराना जानता है
कुँवर कुसुमेश
धरातल डगमगाना जानता है,
फ़लक ग़ुस्सा दिखाना जानता है.
सुनामी से चला हमको पता ये,
समन्दर भी डराना जानता है.
बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
ख़ुदा भी आज़माना जानता है.
समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
परिंदा फड़फड़ाना जानता है.
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.
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क़फ़स-पिंजरा , खौफे-ख़ुदा -अल्लाह से डर
समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ReplyDeleteये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
बहुत खूब कुंवर साहब . आप का अंदाज़ ए बयान और आप के ख्यालात दोनों आला दर्जे के हैं..
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.
और यह तो वोह चाभी है जिसे कोई जान जाए तो एक नेक इंसान बन जाए.
आपकी ग़ज़ल की जितने तारीफ की जाए कम है...
बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
ReplyDeleteख़ुदा भी आज़माना जानता है......वाह !! बहुत खूब ...
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है. .... उम्दा ....
हर शेर बहुत खूबसूरत है कुंवर जी ... बहुत अच्छी लिखी है ग़ज़ल .... शुभकामनाएं ...
बेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteसमझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ReplyDeleteये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
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जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराती खूबसूरत पंक्तियाँ।
.
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा...
ReplyDeletesateek aur jeevan ke goodh ki paribhaashaa...
कुंवर जी..बेहद सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteसमझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
परिंदा फड़फाड़ाना जानता है.
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.
बहुत खूबसूरत और ज़िंदगी के करीब गज़ल है ..
ReplyDeleteहर शेर उम्दा।
ReplyDeleteयह ग़ज़ल दिल के साथ दिमाग में भी जगह बनाती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार-परिवार
कुंवर भाई, छोटे बहर में कमाल के शेर कहे हैं।
ReplyDelete---------
जानिए गायब होने का सूत्र।
….ये है तस्लीम की 100वीं पहेली।
धरातल डगमगाना जानता है,
ReplyDeleteफ़लक ग़ुस्सा दिखाना जानता है.
मतले से...
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.
मक़ते तक....
बहुत उम्दा अश’आर...खूबसूरत ग़ज़ल.
5.5/10
ReplyDeleteछोटे बहर की सुन्दर ग़ज़ल
कई शेर ताजगी से भरे हैं .. जो ध्यान खींचते हैं
समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ReplyDeleteये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
परिंदा फड़फड़ाना जानता है.
bahoot hi sunder evam hakiqat se bhari hui nazm... bahhot khoob
क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
ReplyDeleteपरिंदा फड़फड़ाना जानता है.
bahut hee sundar...
... bahut sundar ... behatreen ... badhaai !
ReplyDeleteसुनामी से चला हमको पता ये,
ReplyDeleteसमन्दर भी डराना जानता है.
बहुत खूब ....!!
बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
ख़ुदा भी आज़माना जानता है.
जी खुदा की मर्ज़ी के आगे ये साइंस दां क्या करें .....
समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
वाह ......सारे के सारे शे'र प्रकृति का गुणगान करते ..से ....
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.
जी खुदा के घर अजाब और सबाब सभी होता .....
सभी शे'र ज़िन्दगी को सीख देते से ......!!
ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है !
ReplyDeleteआदमी के गुरुर पर करारा प्रहार है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
www.marmagya.blogspot.com
समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ReplyDeleteये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
प्रकृति का गुणगान करते बहुत उम्दा शेर...... बहुत खूब
Lajawaab ... bahut hi khoobsoorat aur naye andaaj ke sher .. soonaami ka bimb lakaam ka raha ...
ReplyDeleteएक बार पुन: बधाई।
ReplyDelete---------
गायब होने का सूत्र।
क्या आप सच्चे देशभक्त हैं?
वैसे तो सभी ने बहुत कुछ लिख दिया.
ReplyDeleteइस ग़ज़ल में आपने सत्यता को रेखांकित किया है .
बहुत अच्छी ग़ज़ल है .
आपको इसके लिए आभार !
आदरणीय कुंवर कुसुमेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अनेक कारणों से आपके यहां उपस्थिति विलम्ब से दर्ज़ करवा पा रहा हूं , यद्यपि आपकी शानदार रचनाएं पढ़ता रहा हूं ।
प्रस्तुत ग़ज़ल का एक-एक शे'र क़ाबिले-ता'रीफ़ है ।
समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
वाह कुंवरजी !
…और मासूमजी, क्षितिजाजी, राजेशजी, नूतनजी, शाहिदजी, और हीरजी सहित मेरे जैसे कितने पाठकों की नज़र में चढ़े इस शे'र के लिए तो आपको जितनी बधाई दी जाए कम है …
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुंवर' अंतिम ठिकाना जानता है.
पूरी ग़ज़ल के लिए नमन !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
lajawab soch aur lekhan.......
ReplyDeleteसमझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ReplyDeleteये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
बहुत उम्दा अश’आर...खूबसूरत ग़ज़ल.
................दिल से मुबारकबाद|
poori nazm ka sar antim do laino main....
ReplyDeletekhuda ka khauf ho to shayad insaan itni kood-faand hi na kare...shkriya
प्रकृति से छेड़छाड़ के डर को गजल में बहुत खूब व्यक्त किया है आपने
ReplyDeleteबेहतरीन गजल ...शुभकामनायें !!!
ReplyDeleteवाह कुँवर अब तो खुदा भी
ReplyDeleteबात अपनी मनवाना जानता है
मज़ा आ गया पढ़ कर। बहुत खूबसूरत लिखा है आपने।
मुझे गज़ल या फ़ज़ल लिखनी नही आती है बस जरा तुकबंदी...क्षमा करें...
ReplyDeletejabardast gazel. sari baate ek dam sach hain.
ReplyDelete"समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ReplyDeleteये गूंगा गुनगुनाना जानता है."
ऐसे तो हर शेर लाजवाब है पर मेरा पसंदीदा शेर तो ये ही है
लाजवाब प्रस्तुति