पेड़ों पे भरोसा रख
कुँवर कुसुमेश
ख़ुद पर न सही लेकिन पेड़ों पे भरोसा रख,
नायाब ज़मीं पर ये अल्लाह का तोहफा रख.
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
गमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
ओज़ोन की छतरी का लिल्लाह दरक जाना,
कहता है नहीं माना तो झेल ये ख़तरा रख..
क्या खाक बनाया है इन्सां को मेरे मौला ,
थोड़ी तो समझ सर के अन्दर मेरे मौला रख.
मत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई ,
दुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख.
मालिक से ' कुँवर ' कोई भी बात नहीं छुपती,
इन्सान से रखना है तो शान से पर्दा रख.
कुंवर साहब आपने एक बेहतरीन मुद्दे पे अपने कलाम पेश किये, आप का बहुत बहुत शुक्रिया . आप के कलाम की क्या तारीफ करूं,अल्फाजों की कमी हो जाती हैं. आपके यह अलफ़ाज़ दिल को छु गए.
ReplyDeleteमाना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
गमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
क्या बात कहीं कुंवर साहब दिल खुश हो गया
मालिक से ' कुँवर ' कोई भी बात नहीं छुपती,
इन्सान से रखना है तो शान से पर्दा रख
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख
वाह बहुत खूबसूरत गज़ल कही है ....सीख देती हुई ..
मत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई ,
ReplyDeleteदुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख.
आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं। हमारी जीवन से जुड़ी समस्यायों पर विचार केन्द्रीत कर लिखी गई अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
आम आदमी की चिंता का एक खूबसूरत चित्रण .....बहुत बढिया
ReplyDeleteमाना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
गमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
.... लाजवाब पन्तियाँ
बहुत जरूरी विषय पर लिखा है आपने बधाई
ReplyDeleteकिसी एक शेर की तारीफ कैसे करू जबकि
एक एक शब्द बेहतरीन है
आदरणीय कुंवर जी
ReplyDeleteनमस्कार !
सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
बहुत अच्छी लिखी है ग़ज़ल .... शुभकामनाएं ...
शब्दों में छुपे आज के ज्वलंत मुद्दे का गहन चिंतन दीख रहा है.
ReplyDeletebeing an environmental engineer, i could feel the dire need of awareness towards our environment.
क्या खाक बनाया है इन्सां को मेरे मौला ,
ReplyDeleteथोड़ी तो समझ सर के अन्दर मेरे मौला रख.
मत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई ,
दुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख.
महत्वपूर्ण मुद्दे को इस शायरी के माध्यम से खूबसूरती से उठाया है। बधाई।
बेहतरीन रचना ! इंसान को थोडा अकल भी दिया होता जो इतना रूप रंग दिए ... सच है ...
ReplyDeleteबिल्कुल अलग अन्दाज़ की बेजोड रचना दिल को छू गयी हर शेर बेहतरीन्।
ReplyDeleteकुसुमेश जी ,
ReplyDeleteवैसे तो हर शेर लाजवाब है मगर जिसने मेरे दिल को बड़ी गहराई से छुआ ,वो है -
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
गमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
बहुत खूब !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
... behatreen gajal ... badhaai !!!
ReplyDeleteमालिक से ' कुँवर ' कोई भी बात नहीं छुपती,
ReplyDeleteइन्सान से रखना है तो शान से पर्दा रख.
क्या बात कही है ... बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है ... सच है ऊपर वाले से कोई क्या पर्दा रख सकता है ...
बहुत मासूमियत से अपने बात को रक्खा है ....
kya kahu aapke andaz-e-bayan ke baare me
ReplyDeletehote to sile hai magar shabd bol rahe hai.
मत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई ,
ReplyDeleteदुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख.
गहन चिंतन और अनूठे भावों से सजी, दिेल को गहराई से छूने वाली, गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
bhagwaan ki kripa to saath hogi
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
हमारी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत कराती सुन्दर कविता.
प्रत्येक पंक्ति सारगर्भित,
आपका हार्दिक धन्यवाद.
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ बहुत अच्छा लगा हर शेर लाजवाब
जड़ पादपो के प्रति आस्था को दर्शाता भाव...
ReplyDeleteये तो किसी और कि भली कि भी बात नहीं है...ये तो अपने जीवन कि रक्षा के लिए जरूरी है...वृक्षारोपण .....
किसी ने कहा है:
"हरे सजर नहीं तो घास रहने दे, जमीं के जिस्म पर कोई लिबास रहने दे.."
बहुत सुन्दर बात.
http://www.swarnakshar.blogspot.com/
.
ReplyDeleteमत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई ,
दुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख.
प्रेरणादायी ग़ज़ल
.
कुँवर जी की बातों का मकसद समझ
ReplyDeleteया तो इसे रख ले या फिर बस रख
पहली बार आई हूँ और इन्तेहाई ख़ुशी हुई है आपको पढ़ कर..
आपका शुक्रिया...
"mana ki gareebi me mushkil hai bagvani
ReplyDeletegamle me magar chhota tulsi ka hi paudha rakh"
bahut umda sher..
sunder gazal...
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
बहुत प्रेरणादायी ग़ज़ल कुंवर जी .. धन्यवाद आपका
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल !!!
bahut hi shandar rachana rachi h aapne kusumesh ji...bahut bahut bhadhai..
ReplyDeleteपर्यावरण की रक्षा के लिए प्रेरित करती सुंदर रचना . बधाई .
ReplyDeleteक्या खाक बनाया है इन्सां को मेरे मौला ,
ReplyDeleteथोड़ी तो समझ सर के अन्दर मेरे मौला रख.
बहुत प्रेरणादायक काश हम समझ पाते प्रकृति को ...बहुत खूब
चलते- चलते पर आपका स्वागत है
बढ़िया सन्देश दिया आपने काश लोग समझ सकें !
ReplyDeleteमाना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
वाह!
माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
... KUWAR SAHEB GAMLE ME TULSI KA PAUDHA RAKHNA.. KYA KHOOBSURAT EHSAAS HAI.. SUNDAR GAZAL..
wah wah kya kahane...ati sumdar
ReplyDeleteमत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई
ReplyDeleteदुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख
सार्थक संदेश देती सुंदर ग़ज़ल।
इस उत्तम ग़ज़ल के लिए बधाई, कुसुमेश जी।
वाह सर जी वाह... क्या खूब लिखा है... काश ऐसे पोस्ट वो गधे लोग पढ़ते जो हमारी धरती को विनाश की ओर धकलते हुए ले जा रहे हैं...
ReplyDeleteमाना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
ReplyDeleteगमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.
समसामयिक विषय पर बहुत उत्कृष्ट गज़ल..आभार
ख़ुद पर न सही लेकिन पेड़ों पे भरोसा रख,
ReplyDeleteनायाब ज़मीं पर ये अल्लाह का तोहफा रख.
Bahut khoob....sher ek saarthak apeel ban pada hai....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! बधाई!
ReplyDeletebahut sundar gazal kahi aapne bhai shahab badhai
ReplyDeleteसही है सर किसी बात को आदमी से छुपाया जासकता है किन्तु मालिक से नहीं वह तो अन्तर्यामी है । इन्सान में थेाडी समझ ही रखदी होती तो क्या बात थी ।जमीन पर पेडों का तोहफा नहीं रखने का ही कुफल ओजोन । तुलसी का गमला रख इसमें कोई ज्यादा खर्च नहीं होने वाला हो सके तो शाम को दीपक भी
ReplyDeletejitnee bhee tareef kare kum hee hogee.........
ReplyDeletelajawab......nazm
aabhar
पहली बार आपके ब्लॉग से परिचय हुआ, दिल सुकून से भर गया, आपकी रचनाएँ कितनी साफगोई से कोई न कोई मशवरा दे जाती हैं पर पता भी नहीं चलने देतीं, बहुत अच्छी लगी ये पेड़ों पर भरोसा करने वाली बात, पेडों का वजूद इंसान से पुराना है, वे हैं तो हम हैं !
ReplyDeleteइन्सान से रखना है तो.........................nice
ReplyDeleteविषय और विधा का अनूठा संगम.
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