पेड़ - पौधे
( दोहे )
कुँवर कुसुमेश
पौधे अवशोषित करें,हर ज़हरीली गैस.
मानव करता फिर रहा,उनके दम पर ऐश.
चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
दिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.
अरे ! कुल्हाड़ी पेड़ पर,क्यों कर रही प्रहार.
ये भी मानव की तरह,जीने के हक़दार.
ग्रहण विषैली गैस कर,प्राणवायु का त्याग.
पेड़ प्रदर्शित कर रहे,जग के प्रति अनुराग.
जिसके घर के सामने,खड़ा हुआ है नीम.
उसके घर मौजूद है,सबसे बड़ा हकीम.
चेतनता भरता रहा,पर्यावरण विभाग.
कुम्भकर्ण-सा आदमी,अब तक सका न जाग.
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isi ki saza to hum bhugat rahe hai. shandar rachna.
ReplyDeleteपेड़ नही हम अपना भविष्य काट रहे है।
ReplyDeleteसुन्दर एवं भावपूर्ण रचना
आभार
बहुत सुन्दर दोहे है खासकर शब्द रचना लाजबाव है और भाव अद्भुत हैँ ।
ReplyDeleteविशिष्ट अर्थोँ मेँ रचे गये दोहे ।
आभार बावू जी !
"है जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्ब्त..............गजल"
पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रही है आपके दोहे... बहुत सुन्दर... पहले भी कहा था कि आपके प्रयासों से दोहा हिंदी साहित्य में फिर से स्थान बनाएगा...
ReplyDeleteविविधता लिए हुए बहुत उम्दा दोहे हैं!
ReplyDeleteसार्थक दोहे..
ReplyDeleteपेड़ लगाएं, जीवन बचाएँ..
आभार
वाह जी!! पर्यावरण को समर्पित श्रेष्ठ काव्य!! खूब खूब अभिनन्दन!!
ReplyDeleteएक पेड बोला, मुझे एक लोहे से कटने का इतना दुख नहीं, पर मेरे ही परिवार का साथी कुलहाडी के लोहे का हत्था बना, बडा दुख तो इस बात का है।
save trees ,save enviournmet
ReplyDeleteजगाने का प्रयास होता रहे और खुद भी जागे रहें.
ReplyDeleteअरे कुंवर जी ...आपकी ये रचना तो मुझे आपसे मांगनी पड़ेगी ..actually मैं environmentlist hun...wild life conservation पे काम भी करती हूं..और मेरा research area एरिया भी environment he .और आपकी ये रचना....ye .तो environment प्रेमियों के लिए superhit song होगी..बहुत अच्छी रचना .....काश पर ये बात वो समझे जिन्हें समझनी chahiye ..but हमे अपने level पर हर सम्भव प्रयास करना ही चाहिए...बहुत बहुत बधाई aapko.......
ReplyDeleteक्या बात है कुंवर जी। एक से एक प्रेरक और उपयोगी दोहे। साथ ही जागरूकता का संदेश भी स्पष्ट है इन दोहों में।
ReplyDeleteजिसके घर के सामने,खड़ा हुआ है नीम.
उसके घर मौजूद है,सबसे बड़ा हकीम.
"चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
ReplyDeleteदिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात."
एकदम यथार्थ......
पूरी कविता ही सन्देश-वाहिनी है....
पर्यावरण नहीं वन विभाग... :)
ReplyDeleteमैं ऐसे ही दोहे पढ़ते-सुनते-बनाते बड़ी हुई हूँ...
बहुत अच्छे हैं...
बहुत सुंदर जी आप की रचना से सहमत हे, धन्यवाद
ReplyDeleteकुम्भकर्ण-सा आदनी,अब तक सका न जाग
ReplyDeletesunder rachna
...
mere blog par
jharna
..
बहुत सुन्दर.....एक पंक्ति मेरी और से भी.
ReplyDeleteपेड़ खड़ा सब देखता सच्ची-झूठी बात.
अभिभावक यह वृक्ष है देता पहरा रात.
जिसके घर के सामने,खड़ा हुआ है नीम.
ReplyDeleteउसके घर मौजूद है,सबसे बड़ा हकीम.
चेतनता भरता रहा,पर्यावरण विभाग.
कुम्भकर्ण-सा आदनी,अब तक सका न जाग.
प्रकृति को समर्पित एक सशक्त रचना......
आपने सुन्दर दोहों के ज़रिये एक महत्वपूर्ण बात कह दी ...
ReplyDeleteपर्यावरण को सबसे ज्यादा खतरा इंसान से है ... इसलिए उसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी भी इंसान पर ही है ...
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ReplyDeleteकुसुमेश जी ,
पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाती इस सशक्त कविता के लिए आभार।
जो लोग पर्यावरण का महत्त्व आज नहीं समझ रहे , वो कभी तो समझेंगे। आज ब्राज़ील , कानाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में जिस तरह से बाढ़ आई है , लोग विनाश सामना कर रहे हैं। कहीं बारिश ज्यादा , तो कहीं सूखा पडा है। कहीं ग्लोबल वार्मिंग हो रही है । बहुत ज़रूरी है पेड़ों की महत्ता को समझना।
oxygen ही जीवन है और हमारे पर्यावरण में उपस्थित ७९ % oxygen पेड़ों की photosynthesis प्रक्रिया द्वारा ही आती है । यदि पेड़ ही नहीं रहेंगे , तो ऑक्सीजन , पानी , खाद्य पदार्थ कहाँ से मिलेंगे।
बहुत अनिवार्य हो गया है इन मूल-भूत बातों को समझना।
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kathni aur karni ke fark ko spasht likha hai, waah
ReplyDeleteआदरणीय कुंवर जी,
ReplyDeleteआपने इतने अच्छे ,भावपूर्ण और सारगर्भित दोहे लिखे हैं कि समझ में नहीं आ रहा क्या लिखूँ !
सच तो यह है कि दोहे पढ़ते ही सारी साँसें वाह वाह में ढल गईं !
चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
दिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.
शब्दों कि सादगी और चिंतन की गहराई आपकी लेखनी की विशेषता है !
मेरी अनंत शुभकामनाएं स्वीकार करें !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
ReplyDeleteदिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.
कटाक्ष बहुत अच्छा लगा.नीम हकीम भी.
चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
ReplyDeleteदिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.
कितनी सच्ची बात आपने अरलता से व्यक्त की है...ये हरियाली की बातें करने वाले ही पर्यावरण के दुश्मन हैं...जिन्हें प्रयावरण की चिंता है वो बातें नहीं करते काम करते हैं...बहुत प्रेरक रचना है आपकी...बधाई
नीरज
बहुत सुन्दर कुंवर जी दोहात्मक प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
बहुत ही सुंदर दोहे हैं पर्यावरण पर.बधाई
ReplyDelete"चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
ReplyDeleteदिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात."
मनुष्य से बड़ा पाखंडी और कौन हो सकता है? आज की सामाजिक स्थिति पार करारा व्यंग्य करती गजल.
बहुत सुन्दर दोहे है
ReplyDeleteचुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
ReplyDeleteदिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.
वाह ...बहुत ही सुन्दर बात कह दी है आपने इन पंक्तियों में
जिसके घर के सामने खड़ा हुआ है नीम |
ReplyDeleteउसके घर मौजूद है सबसे बड़ा हकीम |
हर दोहा सुन्दर , सार्थक और पर्यावरण को समर्पित |
कुसुमेशजी ,
बहुत अच्छा लगा |
great cause taken up as theme of your poe.
ReplyDeleteपर्यावरण पर इतने सार्थक दोहे मैंने पहली बार पढे। हार्दिक बधाई।
ReplyDelete---------
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
अरे ! कुल्हाड़ी पेड़ पर,क्यों कर रही प्रहार.
ReplyDeleteये भी मानव की तरह,जीने के हक़दार.
पेड़ काट कर हम अपने भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं..बहुत सार्थक और समसामायिक प्रस्तुति..
कुसुमेश जी ,
ReplyDeleteपर्यावरण के प्रति जागरूकता लाती इस सशक्त कविता के लिए बहुत - बहुत आभार।
अरे ! कुल्हाड़ी पेड़ पर,क्यों कर रही प्रहार,
ReplyDeleteये भी मानव की तरह,जीने के हक़दार।
वाह, कितने अच्छे दोहे हैं।
कुसुमेश जी,
पर्यावरण के प्रति जागरूकता प्रसारित करते ये दोहे बहुत अच्छे लगे।
शुभकामनाएं।
वाह कुसुमेश जी,
ReplyDeleteपर्यावरण के प्रति जागरूकता लाती इस सशक्त कविता
..........पर्यावरण को समर्पित |
@ deepak ji ne bilkul sahi kaha
ReplyDeleteपेड़ नही हम अपना भविष्य काट रहे है।
सच्ची बात कहते बेहद शानदार दोहे दिल को छू गये…………काश मानव इतनी सी बात समझ जाये।
ReplyDeleteदोहों के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूकता का बेहतरीन संदेश.
ReplyDeletebahut prerak dohe.......bahut umda prastuti...!!
ReplyDeleteशब्दों के सौन्दर्य से, दे दी अपनी राय
ReplyDeleteबात कुँवर ने जो कही , है वो अंत उपाय
संभलेगा पर्यावरण, बच पाएगा देश
इन दोहों में कह गया बात सबल कुसुमेश
पौधे अवशोषित करें,हर ज़हरीली गैस.
ReplyDeleteमानव करता फिर रहा,उनके दम पर ऐश.
कुसुमेश जी गज़ब लिखते हैं आप .....
पर्यावरण इतनी खूबसूरत रचना ....
इस रचना की जितनी तारीफ की जाये कम है .....
जिसके घर के सामने,खड़ा हुआ है नीम.
ReplyDeleteउसके घर मौजूद है,सबसे बड़ा हकीम ...
वाह कुंवर जी ... ग़ज़ल में तो आपको महारत है ही ... दोहों में भी कमाल किया है आपने ... मज़ा आ गया पढ़ कर ... सभी दोने गहरी बात कह रहे हैं ....
sach kaha hai aaapne aur sarthak bhi.....
ReplyDeletewant to say "impressed"...
request karti hoon ki fursat me hamare blog par bhi aayen.... I will feel obliged.
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ReplyDeletekushmesh ji , paryavaran ke prati jagriti deti sunder prastuti.. har dohe kabiletarif.
ReplyDeleteपर्यावरण पर उम्दा कविता. बधाई!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब। सार्थक सन्देश देती हुई रचना के लिए बधाई।
ReplyDeletebahut umda prastuti...sir ji dobara padhne chala aaya
ReplyDeleteकिसी एक दोहे को कोट करना मुश्किल लग रहा है। हर एक दोहा सुन्दर सार्थक सन्देश देता हुआ। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteचुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
ReplyDeleteदिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.
... prasanshaneey !!
बहुत बेहतर हैं दोहे
ReplyDeleteये जानकार ज्यादा ख़ुशी है कि आप लखनऊ में हैं
पेड़ पौधों पर लिखे सुन्दर दोहे ....सन्देश देते हुए
ReplyDeleteअरे ! कुल्हाड़ी पेड़ पर,क्यों कर रही प्रहार.
ReplyDeleteये भी मानव की तरह,जीने के हक़दार.
bahut achche vichar.
जिसके घर के सामने,खड़ा हुआ है नीम.
ReplyDeleteउसके घर मौजूद है,सबसे बड़ा हकीम.
बहुत सुन्दर रचना है कुंवर जी बधाई
चेतनता भरता रहा,पर्यावरण विभाग.
ReplyDeleteकुम्भकर्ण-सा आदमी,अब तक सका न जाग.
बहुत सार्थक सटीक रचना -
सुंदर सोच से लिखे हुए दोहे -
कुसुमेश जी -आप बधाई के पत्र हैं .