आज़ादी में जी रहे ........
(कुण्डली)
कुँवर कुसुमेश
आज़ादी में जी रहे , छः दशकों से आप,
सुख के पल दो-चार हैं,अनगिन हैं संताप.
अनगिन हैं, संताप हर तरफ शोर मचा है,
दुःख का बादल सभी ओर घनघोर उठा है.
लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
बेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
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जय हिन्द,जय भारत .
यही तो विडम्बना है.... बहुत सटीक रेखांकित किया कुछ शब्दों में आपने....
ReplyDeleteगणतंत्र के तंत्र में जो विद्रूपता आ गई है, उस पर प्रहर करती कुंडली... सुन्दर
ReplyDeleteआपने तो इस कुंडली में महागाथा लिख डाला है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबालिका दिवस
हाउस वाइफ़
Bahut kadwi sachchayi
ReplyDeletejai hind
आज की दुनिया का कटु शाश्वत वास्तविक सत्य ..
ReplyDeleteकटाक्ष बहुत अच्छा लगा.
बहुत ही प्रासंगिक रचना गणतंत्र के अवसर पर....
ReplyDeleteआज़ादी में जी रहे लेकिन हम नही यह नेता जिन्हे घाटोले करने की,जमाखोरी करने की, गुंडा गर्दी करने की आजादी हे, बाकी जनता तो रोटी के ही चक्कर मे घुम रही हे...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना धन्यवाद
सुनने में कटु भले लगे.....
ReplyDeleteपर वास्तविक सत्य है आज की प्रजातंत्र का..
प्रेरक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिए। इसे पढ़ कर सुखद अनुभूति हुई। कल नेताजी सुभाषचंद बोस की जयन्ती थी उन्हें याद कर युवा शक्ति को प्रणाम करता हूँ। आज हम चरित्र-संकट के दौर से गुजर रहे हैं। कोई ऐसा जीवन्त नायक युवा-पीढ़ी के सामने नहीं है जिसके चरित्र का वे अनुकरण कर सकें?
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मुन्नियाँ देश की लक्ष्मीबाई बने,
डांस करके नशीला न बदनाम हों।
मुन्ना भाई करें ’बोस’ का अनुगमन-
देश-हित में प्रभावी ये पैगाम हों॥
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
bhai kushmeshji bahut achchha likha hai aapne badhai
ReplyDeleteतथाकथित आज़ादी का पोल खोलती बेहतरीन रचना है ...
ReplyDeleteलूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
बेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
गाँधी जी को यदि ये समझ में अत कि खादी का इस्तमाल किस तरह होने वाला है तो शायद वो कड़ी के बारे में सोचते भी नहीं ...
खादी तो भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी है ...
आज की स्तिथि को दर्शाती है आप की खूबसूरत कुंडली.हम फिर भी गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं देते हैं.शायद कभी शुभ हो जाए.................
ReplyDeleteaisi hi rahegi azaadi ... kyonki 'main'se baahar koi sochta hi nahi
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना धन्यवाद
कुसुमेश जी,
ReplyDeleteसत्य!!
सुख के पल दो-चार हैं,अनगिन हैं संताप.
यह कुंडली तो एक पंक्ति में सब कुछ कह गई।
लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
आद . कुंवर जी,
गणतंत्र दिवस के अवसर पर आपने देश की सच्ची तस्वीर पेश की है !
कुंडली का ज़वाब नहीं ,बड़ी मारक है !
लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
बिकुल सही कहा आपने कुंवर जी .... रक्षक और भक्षक में अंतर कर पाना लगभग नामुमकिन सा हो गया है ....
लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
कुंवर जी बहुत अच्छा प्रहार किया है आप ने
बहुत सुन्दर
बहुत - बहुत शुभकामना
कडुवी सच्चाई की झलक मिली इस रचना में .
ReplyDeleteएक सच बयां करती सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है……………सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजब तक सोच के दायरे और नहीं बढाए जायेंगे... तब तक हालात यूँही रहेंगे...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने..
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं...
bahut achcha.
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
ReplyDeleteह्म्म्म.कुंवर जी .......बहुत अच्छी रचना है.......सच्चाई को ब्यान करती
बेचारी आजादी तो पता नही कब से सिसक रही हे --सिसक -सिसक कर उसका दम धुटने लगा हे --इससे तो गुलामी भली --कम से कम हम कह तो सकते थे की हम गुलाम हे |
ReplyDeleteबहुत सधा हुआ कुण्डलिया छन्द प्रस्तुत किया है आपने!
ReplyDeleteदेश की हालत का बिल्कुल सही आकलन।
कुण्डली के बहाने बहुत गहरी बात कह दी आपने। हार्दिक बधाई।
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क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
बहुत समसामयिक कुंडली...गहरी चोट करती हुई...बधाई स्वीकरें
ReplyDeleteनीरज
बिलकुल सच कहा ..... सिसकती आज़ादी ..खुबसूरत रचना ..बधाई
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी...
ReplyDeleteबिलकुल सच..हम कहते रहते है आज़ादी आज़ादी ..पर कहाँ है वो, पहले अंग्रेजो के गुलाम थे और आज अपनों ने ही गुलाम बना रखा है, अपने ही देश को..
कुण्डलिया छंद
ReplyDeleteऔर
प्रभावशाली शब्दों से सजी सँवरी
बहुत शानदार रचना ....
'bechari ashay sisakti hai azadi'
ReplyDeleteyatharth chitran!
bilkul sach kaha hai apne
ReplyDeleteआजादी के छेह दशकों के बाद भी भूखमरी है, लाचारी है , गरीबी है , बईमानी , भ्रष्टाचार है , बलात्कार है । शर्मनाक है ये हमारे लिए। हमारे शहीद जिन्होंने बलिदान दिया अपने प्राणों का , शायद वे भी सिसकते होंगे अपनी कब्रों में।
ReplyDeleteलूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
विचारोत्तेजक कविता के लिए बधाईयाँ .....
भारतीय गणतंत्र पर कुंडली मार कर बैठे हुए लोगों पर उंगली उठाती एक धारदार कुंडली।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, कुसुमेश जी।
फिर भी, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर ...गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं ..सादर
ReplyDeleteकुशमेश जी , बहुत ही सही वर्णन किया है आपने आजादी का......... सच कभी कभी तो ये आजादी अर्थहीन लगने लगती है.............
ReplyDeleteगागर में सागर भर दिया है आपने।गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDelete"बेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी"
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और सार्थक प्रस्तुति
लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
कुंडली मार कर बैठे खादी धारियों पर आपने
खूब मारी है कुंडली .....
बहुत सही कहा सर!
ReplyDeleteआप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
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गणतंत्र को नमन करें
आपका कहना बिलकुल बाजिव है ...शुक्रिया
ReplyDeletebehad sunser bhaw ke sath badhati rachana.ye gajal bhi bahut sunder hai.
ReplyDeleteबहुत शानदार कुण्डलियाँ कलमबद्ध की हैँ ।
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनायेँ बाबू जी ।
चण्द शब्दों मे आपने बहुत कुछ कह दिया ।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !
गणतंत्र दिवस पर अच्छी प्रस्तुति. सीधा अच्छा कटाक्ष .सामायिक रचना वो भी चंद पंक्तियों में बहुत कुछ
ReplyDeleteजय हिंद -- बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. आज का संताप आजादी के बाद .. सटीक..
ReplyDeleteवाह, यह तो बहुत सुन्दर कविता है..गणतंत्र दिवस पर आपको हार्दिक बधाई.
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteयह कुंडली हमें भारतेंदु युग में लेकर चली गई... शब्द चित्रण अच्छा लगा.. नया सन्देश देती कुंडली अत्यत प्रभावशाली बन पड़ी है..
ReplyDeleteलूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
बहुत ख़ूब सर जी....पढ़कर एक बार फिर से हकीकत का अहसास हो गया।
लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
बिलकुल सही कहा आपने आज के हालत देख कर शहीदों की आत्मा भी खून के आंम्सू रोती होगी।
बहुत सटीक पोस्ट है सच बात है आज़ादी बेचारी असहाय सिसकती रही है !
ReplyDeleteaapne to aaj ki samajikta ko
ReplyDeletedarsa diya
sunder rachna
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लूट रहे हैं लोग पहनकर कुर्ता खादी,
ReplyDeleteबेचारी असहाय सिसकती है आज़ादी.
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man ke sare dard ko udel diya aapne to..
अच्छा छन्द प्रस्तुत किया है, आदरणीय कुसुमेश जी
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