अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ
कुँवर कुसुमेश
क़ाबिले-ग़ौर है हर बात शगूफ़ा न समझ,
दौरे-हाज़िर को मेरे यार तमाशा न समझ.
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
आज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
मुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ.
हमसफ़र और भी हैं साथ निभाने वाले,
तू 'कुँवर'ख़ुद को लड़ाई में अकेला न समझ.
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क़ाबिले-ग़ौर =ध्यान देने लायक, दौरे-हाज़िर=वर्तमान समय
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
ReplyDeleteतू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ....
बहुत बढ़िया ....पश्चिमी जादू का असर धीरे धीरे हम पे बढाता जा रहा है ....
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
ReplyDeleteतू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ.
बहुत बढ़िया सर!
बिलकुल सही बात कह दी है आपने ................... अपने आसपास ही बच्चों की हरकतें देखकर दंग रह जाता हूँ कि क्या वास्तव में यह बच्चे ही है !!!!! ..................... आखिर दोष किसका है ??? शायद हमारा खुद का. क्या घंटा आध घंटा बैठकर अपने संस्कारों कि शिक्षा देतें है हम कभी ???? जो सीखता है टीवी से ही सीखता है तो फिर बच्चे का क्या दोष .....................
ReplyDeleteआज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
ab jo daur hai her taraf
khud ko bhi shak ki nigaahon se dekh
आद. कुसुमेश जी,
ReplyDeleteहर शेर दौरे हाज़िर की मुक्कमल तस्वीर है !
इस शेर की बारीकियां तो दिल को छू गयीं !
आज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
मुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
एक बार फिर इस बात को दोहराना चाहूँगा ,आप जो भी लिखते है बहुत अच्छा लिखते हैं !शब्दों को मोती बनाने की कला आपको बखूबी आती है !
ढेर सारे दाद के साथ मेरी शुभकामनाएँ भी स्वीकार करें !
"आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ."
... बदलते समय पर एक ससक्त टिप्पणी कर रही है आपकी ग़ज़ल.. बेहतरीन हर बार की तरह !
आज के समय की नब्ज़ पकड़ी है इस ग़ज़ल के माध्यम से... बेहतरीन ग़ज़ल!
ReplyDeleteपहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए! दरअसल मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी! आपने बहुत सुन्दर पंक्तियाँ लिख कर दिया है जो मुझे बेहद पसंद आया!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
हमारा भी यही कहना है………
ReplyDeleteहमसफ़र और भी हैं साथ निभाने वाले,
तू 'कुँवर'ख़ुद को लड़ाई में अकेला न समझ.
..आप की सोंच और जुगाड़ का जबाब नहीं ! धन्यवाद !
ReplyDeletebehtreen
ReplyDeletebahut sahi kaha aapne.
हमेशा की तरह बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है बाऊजी...
ReplyDeleteअमित भाई से सहमत हूं …
ReplyDeleteबच्चा जो सीखता है टीवी से ही सीखता है तो फिर बच्चे का क्या दोष .....................
लेकिन आप-हम जैसों के यहां संस्कार कायम हैं !
बहरहाल अच्छी ग़ज़ल कही आपने
स्वर्णकार हूं , तो यह शे'र ख़ास पसंद आना ही था … :)
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ
बहुत ख़ूब !
बधाई !
कुसमेश सर,नमस्कार.आपने तो क्लीन-बोल्ड कर दिया.
ReplyDeleteजो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
आज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
मुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
जानता तो पहले था ऐसा होता है.
आपकी गजल पढ़ी तो लगा ऐसा ही होता है.
कहने को शब्द नहीं हैं,सर.
आज इन्सान के चहरे पे कई चहरे है,
ReplyDeleteमुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ
वाकई बहुत बढ़िया गजल !
आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ
मौजूदा परिवेश की हकीकत बयां करती पंक्तियाँ रची हैं ..... बेहतरीन रचना
बेहतरीन ग़ज़ल है ... हर शेर लाजवाब है ... किसे छोड़ किसका तारीफ़ करूं ...
ReplyDeleteजो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
आज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
मुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ.
आपकी हर गज़ल , हर शेर निशब्द कर देता है इस तरह आईना दिखाते हैं…………शानदार प्रस्तुति।
माफ़ कीजियेगा अति व्यस्तता के चलते बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आई हूँ .बहुत अच्छी ग़ज़ल ..आज के हालात का बहुत सही चित्रण ..आपकी बाकि सभी रचना भी मौका मिलते ही पढ़ लूगी .
ReplyDeleteशुभकामनाये
मंजुला
कुसुमेश जी ,
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल , हर शेर खुद अपने आप को बयां कर रहा है |
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
ReplyDeleteतू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ.
बहुत सुंदर शेर हैं -
बधाई
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
ReplyDeleteतू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ.
ekdam sachchayee ko kholkar bari sundarta ke saath rakh di aapne. wah.
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
हर पंक्ति लाजवाब ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
माता पिता को सचेत करती बढ़िया रचना ।
ReplyDeleteजो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
सुभान अल्लाह...वाह...क्या ग़ज़ल कही है आपने...वाह....हर शेर आज के बदलते हालात और गिरते उसूलों की नुमाइंदगी कर रहा है...इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें...
नीरज
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
वाह..बहुत अच्छी ग़ज़ल ..आज के हालात का बिलकुल सही चित्रण... हर शेर अपने आप में बेमिसाल...
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
सदैव की तरह एक लाजवाब गज़ल..हरेक शेर बहुत सार्थक और सटीक सोच लिये..बहुत सुन्दर
हर शेर लाजवाब कर गया। हार्दिक बधाई।
ReplyDelete---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
आज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
ReplyDeleteमुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ......
बहुत सही चित्रण...हर शेर लाजवाब है ....
बहुत-बहुत बधाई...
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
आज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
मुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
गज़ल में कितनी सही बात कह दी है ...सुन्दर गज़ल
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल....हर शेर पर वाह-वाह निकले...
आज के हालात पर एकदम सटीक...
बहुत खूब
आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
क्या बात है सर आधुनिकता को पूरा - पूरा
सामने रख दिया आप ने अगर अब समझ में ना आये तो फिर ........
कुसुमेश जी,
ReplyDeleteनमस्कार
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ।
वाह, हक़ीकत को आईना दिखाया है आपने।
बदलते वक़्त की तस्वीर की रेखाएं और रंग हर शेर में झलक रहे हैं।
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ
dono sher
is naayaab gzl ki shaan haiN
bahut steek alfaaz mei
napi-tuli baateiN kehte hue
bahut shaandaar gazal kahi hai aapne
mubarambaad qubool farmaaeiN .
पश्चिम का रंग तो चढ़ना ही था हमने उनकी विकास नीति का आयात जो किया .
ReplyDeleteबहुत खूब ग़ज़ल.
ReplyDeleteहर शेर खरा सोना है.
सलाम.
• बहुत खूब! इस ग़ज़ल के द्वारा आपने आसन्न संकटों की भयावहता से हमें परिचित कराया है आपकी वैचारिक की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है ।
ReplyDeleteबिलकुल कुंवर साहब....
ReplyDeleteहर एक पंक्ति सौ ताका सही है.....
किसे क्या समझें और किसे क्या नहीं...सोचना पड़ता है...
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ
.
बेहतरीन अंदाज़ और अलफ़ाज़
आपके शेर यथार्थ के धरातल पर होते हैं...
ReplyDeleteऔर यही आपकी खासियत है...
बहुत अच्छा लिखते हैं आप...
शुक्रिया..
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
क्या बात कही.......सच एकदम सच....
सभी शेर एक से बढ़कर एक.....
आभार इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए....
सही है ....शुभकामनायें !!
ReplyDeleteआज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
बहुत सुंदर गजल जी, ओर सहमत हे जी आप की बातो से भी
जो लपक कर गले मिलता है , ज़रूरी नहीं वो आदमी भी अच्छा हो ..
ReplyDeleteमारक सच्चाई है !
शानदार !
क़ाबिले-ग़ौर है हर बात शगूफ़ा न समझ,
ReplyDeleteदौरे-हाज़िर को मेरे यार तमाशा न समझ.
khoobsoorat matle aur umdaa maqte ke sath zindagi ki sachchaaiyan bayan karti aur khud ko padhwati huee ghazal ,
bahut khoob !
हमसफ़र और भी हैं साथ निभाने वाले,
ReplyDeleteतू 'कुँवर'ख़ुद को लड़ाई में अकेला न समझ.
हर शेर सच्चाई की झलक दिखाता हुआ । बेहतरीन...
उन्नति के मार्ग में बाधक महारोग - क्या कहेंगे लोग ?
समाज को सावधान करते सार्थक सन्देश के साथ हकीकत का बयान है यह रचना .
ReplyDeleteshabad-shabad lazavab
ReplyDeleteआज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
ReplyDeleteमुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
आदरणीय Kunwar Kusumesh जी
सादर प्रणाम
इस गजल को बार- बार पढ़ा हर बार नया अर्थ सामने आया , क्या कहूँ अब इसके बारे में ....बस पढता रहूँगा बार - बार ....
क़ाबिले-ग़ौर है हर बात शगूफ़ा न समझ,
ReplyDeleteदौरे-हाज़िर को मेरे यार तमाशा न समझ.
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इस मखमली ग़जल का तो जवाब नहीं है!
मतला तो बहुत ही खूबसूरत है!
ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
ReplyDeleteतू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ.
सभी शेर एक से बढ़कर एक.....
वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !. ..........
एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
बिलकुल सही बात कही आपने ...
ReplyDeleteये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ ...
जिससे सारी बात ही सार्थक हो गई |
अब मैं खुद से ये कहूँगी ...अब तो तू सिर्फ अपने बच्चों की तरफ देख |
बहुत खुबसुरत रचना |
kya baat hai kunwar ji maza aa gaya. bahut hi acchi gazal hai.
ReplyDeleteसुंदर गज़ल है भाई कुशमेश जी बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर कविता ! जिसे भी देखना दस बीस बार देखना, क्योंकि हर एक आदमी में होते हैं दस बीस आदमी !
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी और खूबसूरत गजल है । आपने नये दौर को अच्छी तरह से समझाया है । अब बच्चोँ पर नया दौर काफी फर्क पैदा कर रहा है । अब बच्चे बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैँ । आभार बावू जी ।
ReplyDeleteआज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
ReplyDeleteमुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
सरल शब्दों में बड़ी गंभीर बात षसही कहा हर चीज़ को सोना ना समझ
ReplyDeleteक्या पता चलता है बाहर से पूरा साबूत दिखने वाले संतरें में अंदर फाड़ियां होती हैं और खरबूजा जो कि बाहर से फांक फांक दिखता है अंदर से साबुत होता है ।सच है जो दिखता है वो होता नहीं
thanks for writng on such a topic.
ReplyDeleteit gives a great message to us.
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ. क्या बात कही है है शायद बच्चों का बचपन भी अब आने से पहले ही चला जाता है. यथार्थ के धरातल पर बहुत ही प्यारी और खूबसूरत गजल. आभार इस हकीकत बयानी के लिए.
ReplyDeleteआज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
bilkul sahi ,bachche bade ho gaye hai ,gazal ki har baat sachchi hai .
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ badi gahari bat kahi hai aapne kaiyon ki to jindagi beet jati hai ye samjhte samajhte....
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ...
वाह ... क्या शेर मारे हैं जनाब ... हर शेर पर वाह वाह ... सुभान अल्ला निकल रहा है मुँह से ... कुछ न कुछ दर्शन सिमेट रखा है हर शेर में ...
excellent....
ReplyDeleteचाहे चुनौतियां हों, आपकी समझ अकेली नहीं पड़ सकती.
ReplyDeleteआदरणीय कुसुमेश जी ,
ReplyDeleteक्या बात कही.......सच एकदम सच
सभी शेर एक से बढ़कर एक.....
शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteलाज़वाब गज़ल। वाह क्या बात है ! आनंद आ गया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल आनंद आ गया
ReplyDeleteआज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ...
बहुत सुन्दर आनंद आ गया...
mere pass shabd nahi hai sir....bhut acha..
ReplyDeleteसही बात कही है सर.. और गलती सबसे ज्यादा माँ-बाप की है जो अपने बच्चों के लिए वक़्त निकालने में नाकाम हैं..
ReplyDeleteजो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
ReplyDeleteआदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.
..........................
गले लगाने वाले ही गला काटते हैं..
बच्चे तो आज कल पैदा ही बड़े हो रहें है...मैकाले की गुलामी में यही अनर्थ होगा...
बहुत सुन्दर रचना.....
जय हिंद
हमसफ़र और भी हैं साथ निभाने वाले,
ReplyDeleteतू 'कुँवर'ख़ुद को लड़ाई में अकेला न समझ.----sundar...
Bahut badiya.... or ye lines to khaskar bahut aachi haa
ReplyDeleteआज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
overall ek sunder rachna haa
आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
ReplyDeleteअब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.
sahi kaha......lekin globalisation ke daur me bhi agar jawani me jawan hue to kya hue??????
advanced hona hi padta hai.....