फिर सलीबों पे मसीहा होगा
कुँवर कुसुमेश
क्या हक़ीक़त में करिश्मा होगा.
वक़्त कल आज से अच्छा होगा.
लोग कहते हैं कि ऐसा होगा,
जबकि लगता है कि उल्टा होगा.
साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
और बाँबी में सपेरा होगा.
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
फिर सलीबों पे मसीहा होगा.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.
है 'कुँवर' सोच ये आशावादी,
रात जायेगी,सवेरा होगा.
********
सलीब-सूली
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा....
सच की तस्वीर दिखाती धारदार ग़ज़ल के लिए
आपको हार्दिक बधाई।
आशा का संचार करती बढ़िया गजल!
ReplyDeleteहै 'कुँवर' सोच ये आशावादी,
ReplyDeleteरात जायेगी,सवेरा होगा.
इस सवेरे का बेसब्री से इंतज़ार है.
सादर
होगा होगा... सवेरा होगा...
ReplyDeleteऔर ये उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए... बाकी वक्त के चरखे में सभी घूम रहें हैं...
ग़ज़ल तो बहुत उम्दा लिखी है । आपकी काव्य रचना बेमिसाल है । लेकिन हम तो वर्तमान में जीते हैं , कल किसने देखा है । जैसा भी होगा देखा जाएगा ।
ReplyDeleteआदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
खूब कहा आपने.... बेहतरीन भाव...
बहुत बढ़िया आशावादी सोच है !
ReplyDeleteअच्छी गजल है ....
अलंकारों से सज्जित बहुत सुन्दर....बाम्बे में सपेरा होगा....इसे विरोधाभाष अलंकार कहेंगे ना?
ReplyDeleteAashavadi rachana......savera jarur hoga...
ReplyDeleteRaat jayegee,saveraa hoga....aameen!
ReplyDeleteवक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा
.
बहुत सुंदर ,आज तो दिल खुश हो गया.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
सच्चाई को कहती अच्छी गज़ल ...अंत में थोड़ी तो आशा बंधाई है
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
sahi kaha hai aapne...........dil ko choo gaye sab sher
उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए.
ReplyDeleteबहुत खूब प्यारी गजल इस के लिए शुभकामनाये
मेरे ब्लॉग पे आकर मेरा होसला बढ़ने के लिए आप का शुक्रिया
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
ReplyDeleteवक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.
बेहतरीन ग़ज़ल ! ये दो पंक्तियाँ तो लाजवाब बन पड़े हैं !
" रात जायेगी,सवेरा होगा."
ReplyDeleteसचमुच,' वो सुबह कभी तो आएगी ' !
बहुत सुन्दर भावो की कल्पना रची है आपने ?
है 'कुँवर' सोच ये आशावादी,
ReplyDeleteरात जायेगी,सवेरा होगा.
उम्मीद पर तो दुनिया कायम है..
शानदार, बेमिसाल पंक्तियाँ... भावपूर्ण काव्य रचना...
है 'कुँवर' सोच ये आशावादी,
ReplyDeleteरात जायेगी,सवेरा होगा.
हम न जाने आगे का समय कैसा होगा |
पर लगता है आगे भी सब अच्छा ही होगा |
आने वाले वक़्त की चिंता को ब्यान करती रचना |
अंदाज़ फिर से खुबसूरत |
कुंवर साहब क्या कहूँ? एक एक शेर हीरे सी चमक लिए हुए है...छोटी बहर ने कहर बरपा दिया है...सुभान अल्लाह...इस बेजोड़ ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं...
ReplyDeleteनीरज
waah sir....what a positve thinking...
ReplyDeleteवक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
जीवन की वास्तविकता यही है ..
waah sir....what a positve thinking...
ReplyDeleteआदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
अच्छी पन्तिया ... सच बयां करती एक अच्छी गजल ....
शुभकामनाये
मंजुला
आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
ReplyDeleteऔर बाँबी में सपेरा होगा.
यह शे’र पढ़कर पुराने ज़माने का एक गाना याद आ गया। सोचा पहले उसे ही शेयर कर लूं।
‘हे राम चंद कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
हंस चूगेगा दाना दुनका कौआ मोती खाएगा।’
आपने जो इस कलयुग की तस्वीर खींची है, वह इस शे’र में बयां होता है,
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.
behad khubsurat gajal
ReplyDeleteइस ग़ज़ल के ज़रिए आपने आसन्न संकटों की भयावहता से हमें परिचित कराया है आपकी वैचारिक की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है ।
ReplyDelete• इस ग़ज़ल में बाज़ारवाद और वैश्वीकरण के इस दौर में अधुनिकता और प्रगतिशीलता की नकल और चकाचौंध में किस तरह हमारी ज़िन्दगी घुट रही है प्रभावित हो रही है, उसे आपने दक्षता के साथ रेखांकित किया है। बिल्कुल नए सोच और नए सवालों के साथ समाज की मौज़ूदा जटिलता को उजागर कर आपने सोचने पर विवश कर दिया है।
फिर भी शायर उदासीन नहीं है, निराश नहीं है, यह इस ग़ज़ल की विशेषता है।
एक शेर याद आ गया, उसे भी शेयर कर लूं।
• पहले ज़मीन बांटी थी, फिर घर भी बट गया,
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया।
बहुत बढ़िया है !
ReplyDeleteअच्छी गजल ....
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
बहुत बढ़िया ........
""साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
ReplyDeleteऔर बाँबी में सपेरा होगा.""..... बहुत उम्दा ग़ज़ल... हर शेर लाजवाब... आज के समय और हालात को कटघरे में खड़ा करता...
'सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
ReplyDeleteऔर बांबी में सपेरा होगा '
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बेहतरीन ग़ज़ल ...हर शेर उम्दा
आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
जैसे कोई बहती नदी की लहरों पर बैठ कर अनुभूति की उर्मियों को साँसों के साथ गूँथ कर पेश कर देता हो, वैसी होती हैं आपकी अभिव्यक्ति !
कुंवर जी,हर शेर चटाचट टूटती मानवीय मूल्यों की कसक से भरा है !
जितना भी दाद दूँ ,कम है !
आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा।
वाह,कुसुमेश जी
जमाने की हक़ीकत को ख़ूबसूरती के साथ ग़ज़ल की शक्ल दी है आपने।
मुबारकबाद कबूल फर्माएं।।
वाह कुँवर साहब क्या खूब लिखा है
ReplyDeleteआदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.
बहुत खूब
हाय!
ReplyDeleteक्या हो रहा है मैं अपना पुराना बलोग बदल गया है?
आप नीचे मेरी नई टिप्पणी है
और Plz मुझे एक नई टिप्पणी दे आपकी याद आती है.
मेरा नया बलोग है ... ..
.
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.
.
.
.http://smshindi-smshindi.blogspot.कॉम
"आगे "
दम हैं नई टिप्पणी दे
मिस करने के लिए...............आपका सोनू
I like every sher of your this nice gazal.
ReplyDeleteआदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.
wonderful imagination.
Great work sir. Congrats.
धारदार चिंतन और असरदार ग़ज़ल .
ReplyDeleteसाँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
ReplyDeleteऔर बाँबी में सपेरा होगा.
bahut khoob
sabhi she'r lazavab
kavita-kaarn
आशा का संचार करती बढ़िया गजल| धन्यवाद|
ReplyDeleteमेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..
ReplyDeleteआदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
bahut hi khoobsurat panktiyan lagin ye..
क्या हक़ीक़त में करिश्मा होगा.
ReplyDeleteवक़्त कल आज से अच्छा होगा.
लोग कहते हैं कि ऐसा होगा,
जबकि लगता है कि उल्टा होगा.
साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
और बाँबी में सपेरा होगा.
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
फिर सलीबों पे मसीहा होगा.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.
है 'कुँवर' सोच ये आशावादी,
रात जायेगी,सवेरा होगा.
poori rachna itni khoobsurat hai ki kisi ek ko khas kahna jama nahi ,bahut bahut badhai ho is adbhut rachna ke liye .dil khush ho gaya .
बहुत सुन्दर सर बहुत अच्छा लिखा है आप ने
ReplyDeleteसाँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
और बाँबी में सपेरा होगा.
ये लाइन तो बिल्कुल आने वाले समाज को प्रतिविम्बित करती है |
बहुत सुन्दर सर
साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
ReplyDeleteऔर बाँबी में सपेरा होगा.
yahi parivartan hai
वस्तुनिष्ठ चित्रण……… सटिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवक़्त दोहरा रहा है अपने को,
फिर सलीबों पे मसीहा होगा.
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा....
आज के हालात का सटीक चित्रण्।
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
बेहतरीन ग़ज़ल...
एक-एक शे’र लाजवाब।
आदरणीय कुस्मेश सर,सादर प्रणाम.
ReplyDelete"क्या हक़ीक़त में करिश्मा होगा.
वक़्त कल आज से अच्छा होगा."
आपकी इस गुनगुनाती गजल ने अनायास ही W.B.Yeats की रचना "The second coming "की याद दिला दी.सामान निराशा और आशा के ताने-बने से बनी,अविश्वश्नीय आशा का संचार करती रचना.
वक्त को तो अच्छा होना हो पड़ेगा... जब सकारात्मक उर्जा प्रवाह होगा, जब हिर्दय मानव प्रेम से आत-प्रोत होगा, हमें अपने दायित्वों का आबास होगा, प्रकृति प्रेम होगा, और... वक्त अच्छा ज़रूर होगा!
ReplyDeleteअच्छी आशवादी सोच के लिए बधाई|
"आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.'-क्या बात है !सोचने पर बेबस !
आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
बहुत दमदार ग़ज़ल.यह शेर तो बहुत ही खूब लगा.
सलाम.
"आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा. "
आज के संक्रमण काल में, संवेदनशील कवि के मन की आशंका को, उजागर करती यह रचना कालजयी होगी कुंवर साहब ....हार्दिक शुभकामनायें !!
रात को बीतते समय से थोडा समय खुद के लिए चुराकर आपकी यह ग़ज़ल पढ़ी थी. ऑफिस के अकेले सन्नाटे में आपकी यह जानदार रचना कई घंटे तक बार बार गूंजती रही ..................... कमेन्ट अब कर रहा हूँ हाल आप ही समझ लीजिये. गज़ब के शब्द चयन किये हैं आपने अद्भुत भावों व्यक्त करने में .
ReplyDeleteवक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
khoobsurat sher hai
आप की बात पसंद आई. शब्दों का बेहद उम्दा प्रयोग किया है. भाव सुंदर और सार्थक हैं. कुल-मिलाकर रचना न केवल पढने लायक़ है बल्कि दूसरों को सुनाने लायक़ भी है. आपके ब्लॉग पर आना सफल हुआ. इस रचना के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
ReplyDeleteये अकेला मिसरा काफ़ी कुछ कह रहा है
बहुत खूब !
साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
और बाँबी में सपेरा होगा.
वाह !
क्या हक़ीक़त में करिश्मा होगा.
ReplyDeleteवक़्त कल आज से अच्छा होगा.
लोग कहते हैं कि ऐसा होगा,
जबकि लगता है कि उल्टा होगा.
साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
और बाँबी में सपेरा होगा.
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
फिर सलीबों पे मसीहा होगा.
उफ़ क्या सच्चाई बयां की है. भाव बहुत सुंदर भी है और सार्थक भी. एक एक शेर बार बार पढ़ने को दिल करे. इस प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ.
वर्ल्ड कप की विजय पर आपको भी बहुत शुभकामनाएँ.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेला होगा.
wah.....kya sundar baat kahi hai.
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आशावादी सोच है !
ReplyDeleteअच्छी गजल है ....
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
ReplyDeleteफिर सलीबों पे मसीहा होगा.
आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.
Simply beautiful!
कुँवर कुसुमेश जी ,
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग पंजाबी में है, आप ने कुछ दिन पहले मेरे ब्लॉग पर अपना एक शेर लिखा था वहीँ से आप के ब्लॉग का पता लगा । आप का ब्लाग खूबसूरत है ।
साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
ReplyDeleteऔर बाँबी में सपेरा होगा.
वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
फिर सलीबों पे मसीहा होगा.
..
..
कुंवर जी अचानक ही आया आपके ब्लॉग पर ....आपको पढना सुखद है ...अब तो सिल्सिल चलता ही रहेगा !
"aadmeeyat se jisko matlab hai ,dekh lenaa vo akelaa hogaa ,"
ReplyDelete"kal jo sapnaa thaa ,dekh lenaa kal hakeekat hogaa "
"Hai kunvar soch ye aashaavaadi, dekh lenaa fir saveraa hogaa ..."
bahut dhaardaar ,painaa likhten hain ,jaise kaiktasa hi kaiktas hain har simt.
badhaai kunvar kusumeshji
veerubhai
बहुत खूबसूरत बात कही है कुँवर जी...बधाई...।
ReplyDeleteप्रियंका