जनसंख्या बढ़ती गई
कुँवर कुसुमेश
जनसंख्या बढ़ती गई,यूँ ही बेतरतीब.
तो मानव को अन्न-जल,होगा नहीं नसीब.
जनसंख्या की वृद्धि के,निकले ये परिणाम.
जीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम.
पैदा होते प्रति मिनट,नित बच्चे तैतीस.
विषम परिस्थति हो गई,क्या होगा हे ईश.
फुटपाथों पर सो रहे,लाखों भूखे पेट.
क़िस्मत करने पर तुली,इनका मटिया-मेट.
जनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
कैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल.
बढ़ते जाते आदमी,सीमित मगर ज़मीन.
अन्न बढ़ायें किस तरह,बेचारे ग्रामीण ?
*********
सभी दोहे शिक्षाप्रद और सटीक हैं!
ReplyDeleteइन्हें पढ़वाने के लिए आभार!
देश में भुखमरी , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार और अशिक्षा , सब के लिए जिम्मेदार ये बढती हुयी आबादी ही है।
ReplyDeletejansnkhya visfot par sunder dohe
ReplyDeleteबेहद गंभीर विषय है जनसँख्या विस्फोट... ऐसे विषय पर दोहे लिखना आसन नहीं होता.. यह आपकी रचनात्मकता ही है कि यह कविता इतनी प्रभावशाली बन गई है..
ReplyDeleteजनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
ReplyDeleteकैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल.
gambheer halat... jansankhya badhti hi ja rahi , kavita achhi hai
बढती जनसंख्या के दुष्परिणामों को बहुत ही बढ़िया तरीके से उभारा है आपने.
ReplyDeleteसादर
जनसंख्या की वृद्धि के,निकले ये परिणाम,
ReplyDeleteजीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम।
बिल्कुल सही बात।
कलह चाहे दो व्यक्तियों के बीच हो या दो देशों के बीच, उसका कारण बढ़ती जनसंख्या ही है।
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों को अभिव्यक्त करते ये दोहे हमें भविष्य के प्रति आगाह भी कर रहे हैं।
सच में चिंता का विषय है !
ReplyDeleteसभी पंक्तियाँ सुंदर है..........
सभी दोहे एक से बढ़ कर एक बढ़ती हुई जनसँख्या विचारणीय प्रश्न है हमारी ओर से सुंदर रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteसुन्दर रचनात्मक कथन
ReplyDeleteजनसंख्या की वृद्धि के,निकले ये परिणाम.
जीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम.
sach kaha hai aapne jansankhya ko rokna hoga
ReplyDeleteWaqayee badee sanjeda rachana hai! Badhtee huee jansankhya ne to har vicharee Bharteey kee neend haram kar rakhee hai!
ReplyDeleteवाकई बहुत खराब हालत है मगर हम भविष्य में क्या होगा ? यह सोंचते ही नहीं हैं !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
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ReplyDeleteसार्थक सन्देश देते अच्छे दोहे ..
ReplyDeleteलगता हे भारत मे लोगो को दुसरा कोई काम नही...
ReplyDeleteबढ़ते जाते आदमी,सीमित मगर ज़मीन.
ReplyDeleteअन्न बढ़ायें किस तरह,बेचारे ग्रामीण ?...bahut uttam dohe hain.aapka blog achcha laga.badhaai dene par aapka haardik dhanyavaad.
bahut badhiyaa dohe likhe haae aapne ? janskhayaa par ankush nhi hae ?
ReplyDeleteजनसंख्या की वृद्धि के,निकले ये परिणाम.
ReplyDeleteजीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम
बहुत बढ़िया ......हमरे देश कई सारी समस्याओं की जननी यही है...... बढती जनसँख्या ..... बेहतरीन रचना
देश के वर्तमान हालात को क्या खूब दर्शाया है आपने इन दोहे के माध्यम से। एक एक दोहे में आम लोगों की तस्वीर है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है सर आप ने जनसँख्या एक चिंतनीय विषय है
ReplyDeleteजनसंख्या बढ़ती गई,यूँ ही बेतरतीब.
ReplyDeleteतो मानव को अन्न-जल,होगा नहीं नसीब......भाई कुसुमेश जी!
जनसँख्या विस्फोट जैसे ज्वलंत मुद्दे पर इतने सुंदर और प्रेरक दोहे.. कमाल है....सचमुच मैं इन कालजयी रचनाओं से वंचित था. आपके ब्लॉग के तमाम पोस्ट्स का गहन अध्ययन करना होगा.
---देवेंद्र गौतम
कुंवर जी आपने दोहों का माध्यम अपना सरलता से वो बात कह दी जिसे कहने में हमारे नेता घंटों लगा देते हैं...इन दोहों को हर जन मानस तक पहुंचना चाहिए क्यूँ के ये मात्र दोहे नहीं हैं जीवन की विषम सच्चाई है जिस से हमें पार पाना होगा...आपकी लेखनी और सोच को नमन.
ReplyDeleteनीरज
सभी पंक्तियाँ बिल्कुल सही ..बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआदरणीय कुशुमेश सर,
ReplyDelete"जनसंख्या बढ़ती गई,यूँ ही बेतरतीब.
तो मानव को अन्न-जल,होगा नहीं नसीब."
आजकल इस चिंता को मेट्रो ट्रेन में भी जगह मिली है जहाँ एक पोस्टर में एक आदमी सिर पर इंसानों से भरा टोकरा लिए खड़ा है और टोकरे से लोग बाहर गिर रहे हैं. गजल की कुछ पंक्तियों में ही आपने वह तस्वीर उकेर दी.अत्यंत सन्देशपरक गजल.
आदरणीय कुशुमेश जी
ReplyDeleteनमस्कार
बढ़ती हुई जनसँख्या विचारणीय प्रश्न है
.... उसे बहुत ही बढ़िया तरीके से प्रस्तुत किया है आपने.
जनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
ReplyDeleteकैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल....
बहुत लाजवाब कुंवर जी ... इन दोहों में आपने जनसंख्या के बॅडते प्रभाव का लाजवाब चित्रण किया है ... ये एक गंभीर समस्या है ...
आपने बहुत सुन्दरता से सच्चाई को प्रस्तुत किया है! बढ़ती आबादी को रोकना बेहद ज़रूरी हो गया है ! हमारा देश जनसँख्या में अन्य देशों से सबसे आगे जा रहा है जिसके वजह से गंदगी फ़ैल रही है और गरीबी तेज़ गति से बढ़ रही है! आपने सटीक लिखा है ! बहुत बढ़िया कविता!
ReplyDeleteएक सच बयां करती ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सामयिक दोहे बधाई भाई कुसमेश जी
ReplyDeleteफुटपाथों पर सो रहे,लाखों भूखे पेट.
ReplyDeleteक़िस्मत करने पर तुली,इनका मटिया-मेट.
संवेदनशील भाव हैं...
धन्यवाद!!!
बढती हुई आबादी एक गंभीर समस्या.... एक समस्या है जिस पर सरकार वर्षों से काम कर रही है पर जनता है की आज तक नहीं समझ सकी अपनी बर्बादी पर खुद ही तुली है... सार्थक सन्देश देती बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteफुटपाथों पर सो रहे,लाखों भूखे पेट.
ReplyDeleteक़िस्मत करने पर तुली,इनका मटिया-मेट.
सभी दोहे बढ्ती हुयी आबादी की स्मस्या पर बहुत सटीक हैं। शुभकामनायें।
आद० कुसुमेश जी ,
ReplyDeleteजनसंख्या वृद्धि जैसे गंभीर मुद्दे पर आपने लिखकर जन-जन को जगाने का पुनीत कार्य किया है |
दोहों का क्या कहना .......सभी दोहे सुन्दर ---स्वतः अभिव्यक्त हो रहे हैं |
प्रतीक्षा है कुसुमेश जी ...
ReplyDeletebahut hi vichaarneey mudda uthaya hai aapne.. shikshit log to sajag ho gaye hain ashikshit ko bhi samjhana hoga ya chaina ya japan ki tarah koi kanoon banana hoga.
ReplyDeletesarthak post.
jansankhya varudhi par gahan chintan ke sath sunder dohe .
ReplyDeleteजनसंख्या वृद्धि से उपजती हुई
ReplyDeleteआशंकाओं को
बहुत अच्छे सलीक़े से प्रस्तुत किया है
सभी दोहे प्रासंगिक हैं .
भारत के लोग जानते हुए भी अनजान बन रहे है। जनसंख्या वृद्धि पर तथ्य परक रचना।
ReplyDeleteजनसँख्या वृद्धी एक बहुत बड़ी समस्या तो है हमारे देश की .इस समस्या पर बहुत सुंदर रचना पर बहुत-बहुत बधाई /
ReplyDeleteएक गंभीर समस्या को सुन्दर कविता में प्रस्तुत किया है आपने
ReplyDeleteसादर
कुसुमेश जी, ब्लॉग पर टिपण्णी करने के लिए शुक्रिया ...
ReplyDeleteआपके ये दोहे कबीले तारीफ़ हैं ... न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक जागरूकता लाने के ओर भी ये सफल हैं ...
ये सच है कि हमारे देश में तेजी से बढती जनसँख्या एक बहुत बड़ी समस्या है ... यदि इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो देश की हालत और बिगड़ती जायेगी ...
जनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
ReplyDeleteकैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल.
जनसँख्या वृद्धी, इस समस्या पर बहुत सुंदर रचना,
बहुत-बहुत बधाई
अन्न बढ़ायें किस तरह,बेचारे ग्रामीण ?
ReplyDeleteएकदम सटीक रचना
aadarnuy sir
ReplyDeleteg.mail par aapka masseg padhatha par kya karun sawasthy theek hone ka naam hi le raha hai .
isi liye tippni dalne me der ho jaati .
aasha hai ki aap meri majburiyo ko samjhte hue hriday se mujhe xhma karenge.
apki yah o-post aaj ji sachchi ko axhrsah shbd -shbd bayan kar rahi hai .
wastav me ye bdhti hui jasanskhya ek bhau hi chitniy vishay hai jies aapne bakhoobi likhara hai
bahut hi achhi vvicharniy tathy
dhanyavaad sahit badhaai
poonam
सच में जनसंख्या इस कदर बढाती रही तो एक दूसरे को खाना पड़ेगा
ReplyDeletehttp://coralsapphire.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
आज कल व्यस्त हू -- I'm so busy now a days-रिमझिम
simply awesome..
ReplyDeleteजनसख्या वृद्धि की गहन समस्या को बहुत रोचक तरीके से इन दोहों में लिखा है |
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है |
jansakhyavradhi par etni achchhi kavita padhane ke liye thinks
ReplyDeleteइस बात पर बहुत चर्चा होती है . कोई कदम आगे नहीं बढ़ाता .
ReplyDeleteकोई भी आगे नहीं आता . मैंने तो विवाह के पहले ही ये निर्णय ले लिया था कि एक अनाथ बच्चे को गोद लिया जाएगा. जितना किया जा सके ज़रूर किया जाए.
आपकी अभिव्यक्ति अच्छी लगी.
बढ़ते जाते आदमी,सीमित मगर ज़मीन.
ReplyDeleteअन्न बढ़ायें किस तरह,बेचारे ग्रामीण ?
bahut badhiya ,chinta jayaz hai ,nahi to akaal ki sthiti utpann ho sakti hai .
priy kunwar sahab
ReplyDeletevery good poem with a sense of national interest ,chosen words and feelings are miraculous . mind blowing sir .
sir ji namaskaar
ReplyDeletevartmaan ki samasya par bahut hi sunder
sochne par majboor karti rachna
Kunvar ji "DOHE NAHIN HAKEEKAT HAIN YE IS DAUR KEE ".
ReplyDeletejansankhyaa ne leel lee mahauli sab preet ,
saavan reetaa hi gyaa ,faagun bhi vipreet !
veerubhai .
har pankti jabasrdast
ReplyDeleteअगर बेहतर प्रबंधन और समयबद्ध कार्य योजना के साथ काम करें तो बढ़ती जनसंख्या कोई समस्या नहीं ,बल्कि विकास की एक बड़ी शक्ति बन जाएगी .आर्थिक विषमता सबसे बड़ी समस्या है. एक तरफ मुट्ठी भर लोगों के कब्जे में सैकड़ों -हजारों एकड खेत और आवासीय भूमि ,तो दूसरी तरफ लाखों-करोड़ों भूमिहीन और बेघर गरीब . विषमता की इस तस्वीर का जनसंख्या वृद्धि से भला क्या संबंध ? हसन अली जैसे सफेदपोश डकैत ने देश को लूटकर कम से कम आठ सौ अरब डालर कालाधन स्विस बैंक में जमा किया हुआ है, भारत की आबादी १२१ करोड़ है. अगर हसन अली के इस आठ सौ करोड़ डालर को जब्त कर १२१ करोड़ भारतीयों में एक-एक करोड़ डालर बाँट दिया जाए तो भारत के हर नागरिक के पास पचास करोड़ रूपए होंगें ,फिर भी सरकार के पास ६७९ करोड़ रूपए की बचत रहेगी. अगर भ्रष्ट अफसरों और भ्रष्ट नेताओं की अरबों-खरबों की अनुपातहीन संपत्ति को राजसात कर जनता की बेहतरी के कामों में खर्च किया जाए ,तो जनसंख्या कोई समस्या नहीं रह जाएगी . जनसंख्या को समस्या मान कर दुखी होने से कुछ नहीं होगा . आबादी का ठीक-ठीक प्रबंधन होना ज़रूरी है . तभी वह हमारी ताकत बनेगी .विभिन्न देशों के बीच तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद चीन का उदाहरण हमारे सामने है.
ReplyDeleteबहुत ही सटीक लिखा है आपने.
ReplyDeleteअगर हमने बढ़ती जनसंख्या पर काबू नहीं पाया तो मुझे नहीं लगता हमारा देश कभी सुपर पॉवर बन पायेगा.
हमारे तथाकथित विकास का गुबारा जल्द ही फूटने वाला है.
फुटपाथों पर सो रहे,लाखों भूखे पेट.
ReplyDeleteक़िस्मत करने पर तुली,इनका मटिया-मेट.
जनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
कैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल.
लाजवाब दोहे....
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ReplyDeleteअन्न-जल की कमी आज तक तो हुई नहीं है . आज भी हामारे गोदाम भरे पड़े हैं लेकिन इसके बावुजूद हमारे नागरिक भूखों मर रहे हैं क्योंकि हमारे हाकिम वही करते हैं जो कि ब्याजखोर पूंजीपति चाहते हैं .
ReplyDeleteफ़न के ऐतबार से ग़ज़ल उम्दा है.
कुँवर कुसुमेश!
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज है। योजना आयोग पहले से मौजूद आबादी के लिए योजनाओं को जमीन पर उतार भी नहीं पाता उससे पहले जन- संख्या का नया सैलाब उसे चुनौती देने लगता है। इस विषम स्थिति में हर भारतीय दम्पति को यह संकल्प लेना चाहिए कि "हम दो हमारा एक।"
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
bahut sateek prasang uthaye hai.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब.. अब आपकी तारीफ़ के लिए शब्द कहाँ से लाऊं!
ReplyDeleteइस सत्य से ओतप्रोत प्रभावशाली रचना के लिए आपका आभार.
वास्तविक स्थिति का वास्तविक मूल्यांकन किया है.विचारणीय मुद्दा है.
ReplyDeleteSOCHNE KO MAJBUR KARTI HAI AAPKI YE RACHNA. AANE WALE KUCH SAMAY ME SAYAD PER RAKHNE KO JAGHA NAHI MILEGI. . . . . . . . , . . . . . . . JAI HIND JAI BHARAT
ReplyDeleteहर समस्या के लिए जनसंख्या को ज़िम्मेदार मान लेना अर्ध-सत्य की तरह होगा. असल समस्या संसाधनों को सामान रूप से वितरित करने की है,जो वास्तव में एक बड़ी चुनौती है. इसलिए सारी समस्याओं की जड़ यह आबादी नहीं है. इसलिए इस विषय पर भावुक होकर कुछ भी लिखने और भावावेश में उस पर कुछ भी टिप्पणी करने से पहले हमे इन तथ्यों पर ठन्डे दिमाग से विचार कर लेना चाहिए . कृपया कुसुमेश जी की इस रचना पर इन्ही टिप्पणियों के बीच मेरी पहली टिप्पणी भी ज़रूर पढ़ने का कष्ट करें .
ReplyDeleteकुंवर कुसुमेशजी!बच्चों जैसा कौतुक पैदा हुआ है ,कोपी पेस्ट करना सीखने की आज़माइश चल रही है ,पहला प्रयास कामयाब रहा ,हमें खुद खासा कष्ट होता है रोमन लिपि में अपने ज़ज्बात लिखने में .कई लोग तो इन टिप्पणियों को पढ़ते भी नहीं है ,आपकी सर्वयापी पर्यावरण सचेत दृष्टि :बढती आबादी अंत बर्बादी में अभिवयक्त हुई है ।
ReplyDeleteसलाम आपके ज़ज्बे को ,हुनर को ,हमें तो ठीक से यह भी नहीं पता "काफिया "क्या और "रदीफ़ "क्या है ,मतला और मक्ता क्या है .
संगे -मरमर -और हथोडी(कच्चा माल ,भाव उदगार ) अपने इक ग़ज़ल रफूगर मित्र को भेज देतें हैं वहां से तैयार शुदा माल (ग़ज़ल )आ जाता है .इति-
आदर और नेहा से -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
Your DOHE are just amazing. Congrats on such meaningful writing.
ReplyDeleteबहुत गहन विचार एवं चिंतन...
ReplyDeleteबहुत ही शानदार...
bahut badhiya vichar utne hi uttam tareeke se prastut.
ReplyDeleteकोठी बन गई मकान
ReplyDeleteमकान बन गए ..फ्लोर
फ्लोर बन गए ...फ्लैट अब
उसी ज़मी पे मंजिले बढती गई
नए लोग ...नया है जमावड़ा
पर इतनी संख्या में ...अपने तो खो गए .............(अंजु....(अनु )
सत्य से ओतप्रोत प्रभावशाली रचना के लिए आपका आभार|
ReplyDeleteसभी समस्याओं की जड़ में जनसंख्या वृद्धि है।
ReplyDeleteजनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
ReplyDeleteकैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल.
बिलकुल बाजिव चिंता है आपकी ..!
आदरणीय कुँवर कुसुमेशजी
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट है…
जितनी तारीफ़ की जाय कम है!
विचारनीय प्रस्तुति |
ReplyDeleteखुबसूरत रचना |
आदरणीय कुँवर कुसुमेशजी
ReplyDeleteनिस्संदेह ऎसी पोस्ट सिर्फ आप ही लिख सकते है
मातृदिवस की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसभी दोहे बेहद प्रभावी .....सोतो को जगाते हुए से....सादर !
ReplyDeleteye chintan bhi aawashyak tha...
ReplyDeletehar samasya par hum vichar karte hain, par is par kisi ka jyada dhyan nahi jaata....
jansankhya niyantran aawashyak hai....
बेहतरीन अल्फाज़ों मैं आप ने बढती जनसँख्या जैसी समस्या पे प्रकाश डाला है..
ReplyDeleteकटु विषय पर एक से बढ़कर एक दोहे. जनसँख्या वृद्धि पर ये प्रहार बहुत सुंदर लगा.
ReplyDeleteजनसंख्या वृद्धि एक समस्या है और आपने इस पर बहुत सार्थक टिप्पणी की है ..
ReplyDeleteसच बयां करती ... विचारनीय प्रस्तुति |
ReplyDeletejansankhya jo ek jwalant samsya hai use par sunder lekhan.....
ReplyDeleteaabhar
दिनांक 11/07/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
महत्वपूर्ण सवालों की ओर हमारा ध्यान खींचती रचना।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण सवालों की ओर हमारा ध्यान खींचती रचना।
ReplyDelete