तारों के पीछे
कुँवर कुसुमेश
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
सुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
खड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
यही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
चला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
*************
शै=चीज़, दीदार=दर्शन,
सुकूने-दिल=दिल का सुकून.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
खूब कहा आपने..... सधी सटीक पंक्तियाँ
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
ReplyDeleteखड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे...
बिल्कुल सही फ़रमाया है आपने! बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना! तारों के जैसा जगमगाता हुआ कविता प्रस्तुत किया है आपने जो सराहनीय है! बहुत बहुत बधाई !
हर शेर उम्दा है ऊपर नीचे
ReplyDeleteहम हो गए आज तेरे पीछे
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
बहुत गहरी बातें कह दी आपने।
ReplyDelete---------
हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्या दोगे प्यार की परिभाषा?
वाह वाह वाह क्या उम्दा लिखते हैं आप मजा आ गया
ReplyDeletewow... Each line with the deepest meaning possible !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
यथार्थ पर आधारित बहुत खूबसूरत गज़ल लिखी है आपने !
ReplyDeleteसुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
खड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
तकलीफदेह सच्चाई बयान करती बेबाक रचना ! बधाई स्वीकार करें !
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ReplyDeleteख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
सुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,
वाह …………बहुत सुन्दर गज़ल्।
ek ek sher laajabaab hai hats off to you Kusumesh ji.hum to aapki ghazalon ke kaayal ho gaye.
ReplyDelete'तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या
ReplyDeleteचला चल तू इन्हीं यारों के पीछे '
.....................क्या कहना कुसुमेश जी ! ,,,,,,,बढ़िया ग़ज़ल , हर शेर जानदार
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
ReplyDeleteखड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
बहुत खूबसूरत गज़ल ... गहन बातें ले आए हैं इसमें .
मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
ReplyDeleteसुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
खड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
...bahut sundar yatharparak saarthak prastuti...
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
vah.....kya baat hai. Congrats sir.
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
ReplyDeleteयही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
kitni sachchi baat kahi hai aapne ,sundar rachna
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ReplyDeleteख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
बहुत ही खूबसूरत बात कही है आपने...
इन दो पंक्तियों में समूची सृष्टि का दर्शन है...लाजवाब...
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे।
आपकी पारखी नज़र बारीक बातों को भी पकड़ लेती हैं।
बढ़िया ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब।
"सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
ReplyDeleteखड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
चला चल तू इन्हीं यारों के पीछे."
इस बार तो सामाजिक सरोकारों का पिटारा ही खोल बैठे ,सर..सच को सीधे-सीधे आइना दिखाती गजल.दिल को छूती गजल.पीठ में छूरा घोपनेवाले दोस्तों से तो वाकई दुश्मन ही अच्छे हैं .
.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
यथार्थ पर करारा चोट करता शेर !
हमेशा की तरह बेहतरीन ग़ज़ल !
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ReplyDeleteख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
फिर एक बार सुंदर गज़ल से रूबरू कार्य आपने. आपकी खासियत ये है कि हर एक शेर सीधे दिल पर चोट करता है. बहुत बधाई बेहतरीन गज़ल के लिए.
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ReplyDeleteख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
सुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,
खरी खरी, जानदार
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
सुभान अल्लाह...कुंवर जी...बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ये. हर शेर आज के हालात की तर्जुमानी कर रह है...छोटी बहर की इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें
नीरज
आदरणीय नमस्कार
ReplyDeleteक्या मतला निकाला है, भई वाह| सानी में जो कहा है आपने "खुदा होगा चमत्कारों के पीछे" - इस कथ्य में जो चमत्कृति है - अद्भुत है अद्भुत|
मतले से मक़्ते तक का सफर बड़ा ही सुहावना है| 1222 1222 122 वाले मध्यम आकार की बह्र पर चुटीली और सार्थक बातों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति| मेरे जैसों के लिए सीखने का एक और सबब|
डाक्टर, बीमार, हड़ताल वाला शेर, सम-सामयिक होने के कारण [मेरे मुताबिक] हासिले गजल कहा जाना चाहिए|
बहुत बहुत मुबारक़बाद मान्यवर|
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
ReplyDeleteयही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
बहुत ही ओजपूर्ण ! कुंवर जी मेरे बालाजी ब्लॉग पर भी आप का स्वागत है !
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
सरल शब्दों में लिखी सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteग़ज़ल के अशआर बहुत प्रभावशाली हैं!
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
ReplyDeleteचला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
जब ईर्ष्या अपना घिनौना सिर उठाती है तो हमारे प्रियजन भी हमारे शत्रु बन जाते हैं।
अति सुन्दर अभिव्यक्ति !! धन्यवाद
ReplyDeleteखबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे
.
बहुत हे गरी सोंच और बेहतरीन अंदाज़ इ बयान
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हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
यही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
.
इन पंक्तियों मैं मेरे दिल कि बात कह दी और ऐसी हकीकत जिसको हर इंसान को महसूस करना ही चाहिए यदि वो त्योहारों का सही अर्थ समझना चाहता है.
bhavmayi rachana sunder hai .aabhar
ReplyDeleteहमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
यही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
sarthak sandes.
इस बह्र ने आप-हम को ही नहीं नीरज जी नवीन जी सहित कइयों को दीवाना बना रखा लगता है कुंवर जी ! :)
ReplyDeleteबहुत प्यारी ग़ज़ल है । हर शे'र पर मुबारकबाद !
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
यही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
तेरे अपने 'कुंवर' दुश्मन हैं तो क्या,
चला चल तू इन्हीं यारों के पीछे
बहुत ख़ूब !
एक शे'र मुलाहिजा फ़रमाएं …
कई बार हम यह भी कहने को विवश हो जाते हैं -
असर अब शायरी पर हो रहा है
कमीनों और मक्कारों के पीछे :)
राजेन्द्र स्वर्णकार
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
ReplyDeleteचला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
हर शेर लाजवाब है !
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
ReplyDeleteयही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
bahut sunder bhaav gazal ke ..!!
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
wah! naye mudde...nayi baat..aur aapka andaaz...khoob!
---devendra gautam
सामजिक दर्पण का नमूना है यह गजल.
ReplyDeleteतेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
ReplyDeleteचला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
सार्थक व उम्दा प्रस्तुति...
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ReplyDeleteख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
सुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,
हर शेर लाजवाब.... सार्थक व उम्दा प्रस्तुति के लिए आपका बहुत - बहुत आभार...
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
ReplyDeleteचला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
बहुत खूब ...शुभकामनायें आपको !!
बहुत सुंदर गजल है!
ReplyDeleteहर पंक्ति लाजवाब
आपका बहुत - बहुत आभार!
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ReplyDeleteखुदा होगा चमत्कारों के पीछे
यक़ीनन, बहुत सुंदर हर पंक्ति लाजवाब !
आपके कुछ शेरों ने तो गज़ब का कटाक्ष किया है .सोच रहा हूँ ,कुछ आपको समर्पित करूँ-
ReplyDeleteकुछ तो सबब होगा तीक्ष्ण धारों के पीछे
शब्द बैठे होंगे , अंगारों के पीछे
प्लाट ले न पाए ,अपने ही शहर में वो
और भागते फिरे हैं, चाँद-तारों के पीछे
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
ReplyDeleteयही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.bahut hi saarthak sher .hamesha ki tarah bahut hi achchi najm badhaai aapko.
ख़बर सच्ची नहीं मिल पा रही है ,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे ।
सियासत के कई पुर्जे हुएँ हैं ,
है कोई "'हाथ"इन हाथों के पीछे ।बेहतरीन अपने समय को ललकारती रचना .
बेहतरीन भाव भरे है आपने अपनी गजल में। सादर।
ReplyDeleteबहुत उम्दा लिखा है हर पंक्ति कितना कुछ कह रही है!!वाह
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग को पसंद करने क लिए शुक्रिया:)
आपको फौलो कर रही हूँ:)
आपकी कविता बेबाकी से समय पर कटाक्ष करती है... यह शेर मेरे मिजाज़ का शेर है...
ReplyDelete"खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे."
गंभीर विषय को भी सहजता से अभिव्यक्त करते हैं आप...
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ReplyDeleteख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
bahut sunder!
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
ReplyDeleteखड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ... और ये दो शेर बहुत अच्छे लगे जो सम-सामयिक विषयों पर प्रकाश डाल रहे हैं ...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है। कोई दुश्मनी कितनी भी निभाए , उन्हें भी यार मानकर , पीछे ही पीछे चल देना चाहिए , इसी को आर्ट ऑफ़ लिविंग कहते हैं। उम्दा रचना।
ReplyDeleteआपके इस ब्लाग पर बहुत दिनो बाद ये नयी रचना आयी है.
ReplyDeleteमुझे बहुत दिनो से इंतजार था.
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
चला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
बहुत खूब कहा है आपने.
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
ReplyDeleteचला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
बहुत सुंदर। बड़ा आनंद आया।
बहुत-बहुत बधाई ।
हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ... ।
ReplyDeleteसुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
ReplyDeleteखड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
vyangyatak gazal....bahut sunder!
ek swaal fir uthaata hun
akhbaaro me khabar puraani paata hun
kaheen mil jaye koi satya wakta,
isiliye blogs ko padhaa karta hoon!!
.दिल को छूती गजल.पीठ में छूरा घोपनेवाले दोस्तों से तो वाकई दुश्मन ही अच्छे हैं .
ReplyDeleteदुश्मन है हज़ार यहाँ ये हम भी मानते है
पर गैरो में भी कोई तो अपना भी होगा...(अंजु...अनु )
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
ReplyDeleteखड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
वाह ... बहुत ही सच्ची बात कह दी इन पंक्तियों में ।
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे...
बहुत ही लाजवाब शेर है ... सटीक लिखा है ... हर जगह कोई हाथ ही है ...
उम्दा ग़ज़ल ....
कुंवर साहब यह इन्फेक्शन हमें भी जब तब हो जाता है ऐसे ही एपिसोड्स में जब तब कुछ लिख जातें हैं .आपकी गज़लें हमें बराबर नए अलफ़ाज़ सिखा रहीं हैं .फादर साहब थे तब उनसे लव्जों के मानी पूछ लेते थे .चाचा भी उर्दू के अच्छे जानकार थे .हम पैदा भी बुलंदशहर में हुए .उर्दू अदबियात के इलाके में .शैर शायरी मुशायरा सुनते बड़े हुए .आपकी ग़ज़लों के अपने तेवर हैं .यंग टुर्क्स से .
ReplyDeleteआदरणीय कुसुमेश जी, आपकी प्रत्येक रचना जमीनी हकीकत का आइना होता है ..बहुत अच्छा लिखते है आप..बधाई
ReplyDeleteBhai jaan,indeed a very fine gajal.
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletesabse pahle to main aapse dil ki gahraiyon se xhma chahti hun jo aapke blog par bahut hi vilamb se pahunchi.
ye meri hi vivashta hai ki abhi tak swasthy theek na hone ke karan .net par bahut kam aa rahi hun .par koshish karti hun ki aap sabhi aadrniy v snehi jan ke blogo tak pahunch sakun.fir sochti hun ki pahle jinke comments aaye hain pahle unka jawab to de dun net nahi baithti hun .isiliye tippni bhi dheere dheere hi kabhi kabhi dal pati hun .ummid hain aap meri majburiyo ko samajh kar purvvat hi apna sneh dete rahenge.
sir aapki rachna bahut bahut bahut hi behtreen lagi.harpankti ekdam sateek aur aaj ki vastu-sthiti kenajar se samyik hai .
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
यही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
चला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
bilkul yatharthata liye hue hai aapki post
hardik abhinandan
punah xhma ke saath
poonam
मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
ReplyDeleteसुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
खड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...मन को छू लेने वाली...
आदरणीय कुसुमेश जी,
ReplyDeleteसुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
खड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
बहुत सुंदर गजल है!
बहुत सुंदर गजल है!
ReplyDeleteसच में मजा आ गया जी.
ReplyDeleteमै तो यही कहूँगा अब 'कुंवर कुश्मेश जी हैं मेरे इस मजे के पीछे'.
पर कुंवर जी यह भी तो बताईये न कि 'आपके इस सुन्दर लेखन के पीछे कौन है जी?'
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
Aajke haalaat ka bilkul sahi chitran.. Shubhkaamnayein!!
यथार्थ पर आधारित बहुत खूबसूरत गज़ल|धन्यवाद|
ReplyDeleteअलमस्त अंधेरों के मुक़ाबिल खड़ा हुआ,
ReplyDeleteहिम्मत की इक मिसाल ये जुगनू हवा में है.
अच्छे-बुरे को अपनी कसौटी पे तौलती,
जो दिख न सके ऐसी तराज़ू हवा में है
nice sher, thanks.
बेहतरीन ग़ज़ल .......सादर !
ReplyDeleteखबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
खूबसूरत पंक्तिया
"मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
ReplyDeleteसुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,"
ए काश कि दीदार-ए-महबूब हो जाता !
कहीं तो थोड़ा सा सुकून मिल पाता !!
हर शेर ही 'शेर' है...
किसकी तारीफ करूँ किसको छोडूं....!
(काफी कोशिशों के बाद ब्लॉग की कुछ तकनीकी परेशानी की वज़ह से यहाँ देर से पहुंची,पर पहुँच ही गई!!)
खूबसूरत पंक्तिया
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल
मन को छू लेने वाली..
बेहतरीन भाव
blog par comment karne k liye dhanyavad
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
ReplyDeleteचला चल तू इन्हीं यारों के पीछे
वाह वाह क्या बात है कुंवर साहब ...........
kusmesh sahab, yatharth bayan karti hui behaterin gazal.
ReplyDeleteहर शेर जबरदस्त है!
ReplyDeleteखबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
वाह क्या दृष्टि है..
लाजवाब
कुंवर जी, हमेशा की तरह लाजवाब गजल।
ReplyDelete---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
मेरे महबूब तू गम हो गया है ,
ReplyDeleteसुकूने दिल है दीदारों के पीछे .
तेरी रचना के पीछे -नै रचना का इंतज़ार .
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
ReplyDeleteहै कोई हाथ अखबारों के पीछे.
... सच्चाई बयान करती रचना !
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDelete