पर्यावरण दिवस पर एक ग़ज़ल
कुँवर कुसुमेश
पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ.
जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
उनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ .
अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
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वाह क्या बात है!
ReplyDeleteब्लॉगजगत के ग़ज़लों के बादशाह एक बार फिर ऐसी ग़ज़ल लेकर आए हैं जो दिल ही नहीं दिमाग में भी जगह बना रही है।
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
एक एक शे’र पर्यावरण के प्रति समर्पित है .. और गहरे अर्थ रखता है।
हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ.
दिनों दिन गो रहे सामाजिक-आर्थिक बदलाव के कारण हो रहे पर्यावरण पर गम्भीर खतरों से सचेत होने के लिये तथा जन-चेतना लाने का भरसक प्रयास आप अपनी रचनाओं के माध्यम से करते रहते हैं, यह रचना भी उसी का उदाहरण है।
पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता चिंतन का विषय है...आप बहुत सहजता से इन मुद्दों को साहित्य के माध्यम से उठाते हैं.. बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteTo save our environment is our duty. Beautiful creation !...Loving it.
ReplyDeleteprernadayak hai apka yeh aalekh
ReplyDeleteआपकी सुन्दर प्रस्तुति आँखें खोलती है.
ReplyDeleteसमय रहते यदि हम नहीं चेते तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकतें हैं.
इस अभिव्यक्ति के लिए आपका बहुत बहुत आभार.
जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
ReplyDeleteउनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ .
bilkul
पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
ReplyDeleteनासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
सुंदर रचना .....प्रेरणादायी , जागरूक करते ख्याल.....
सुंदर प्रेरणादायी रचना
ReplyDeleteहम इतने नासमझ है कि सबकुछ जानते हुए भी अनजान बन रहे है। गजल के माध्यम से आपने एक विचारणीय मुद्दे को उठाया है।
ReplyDeleteaap thheek kah rahe hain paryavaran pradoodan ke karan har taraf dushvariyan hi dushvariyan hain .aabhar
ReplyDeleteवाह कुँवर जी इस बार तो आप ने ऐसी बातों को ले कर ग़ज़ल पेश की है जो मेरी पहली पसंद होती हैं| ग़ज़ल इस सफ़र पर भी झंडे गाढ़ रही है| बहुत बहुत बधाई आदरणीय|
ReplyDeleteअपकी ग़ज़लों में जन-चेतना के तत्व भी मौजूद होते हैं। यह रचना इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
ReplyDeleteपेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
ReplyDeleteनासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
पर्यावरण की रक्षा करना हम सभी का कर्त्तव्य है..
पेड़ बचेंगे तभी जीवन बचेगा
सुंदर रचना...
पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
ReplyDeleteनासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
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बहुत खूब कुंवर जी पर्यावरण दिवस पर पेश एक बेहतरीन ग़ज़ल , इसको कल के तेताला ब्लॉग चर्चा मैं शामिल किया जा रहा है.
पर्यावरण दिवस पर बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ..हर शेर सच्चा सन्देश दे रहा है ..
ReplyDeleteग़ज़ल तो खूबसूरत है ही!
ReplyDeleteसाथ ही सन्देश भी बहुत बढ़िया दिया है आपने!
गंभीर चिंतन का विषय ...सही समय पर सही प्रस्तुति
ReplyDeleteआपके शब्द और बहुत सटीक प्रस्तुति
विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व बेला में जागरूकता बढ़ानेवाले बेहतरीन शेर...सार्थक ghazal के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
ReplyDelete---देवेंद्र गौतम
कुसमेश जी!
ReplyDeleteबेहतरीन गजल के लिए बधाई!
आपकी तरह पर अपने मिजाज के अनुसार
एक मिसरे में प्रदूषण फैलाने वालों पर तंज किया है।
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दफ्तरों में क्या सुहाने चित्र बनते दिखिए,
पान खाकर लोग ज्यों ही छोड़ते पिचकारियाँ।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
ReplyDeleteउनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ . सही कहा!!
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल जिसके हर शेर पर्यावरण के प्रति समर्पित है ... आज पर्यावरण के प्रति जागरूकता की हर जगह ज़रूरत है ...
ReplyDelete"जन सन्देश टाइम्स" में ब्लॉग समीक्षा
पीपल के एक पेड़ की कीमत २५० करोड़ मापी गयी है . मानवता की सेवा के अर्थ में . हम व्यापारी है तो ऐसे धन को सजोंकर क्यू नहीं रख सकते ?
ReplyDeleteबहुत सुंदर..... पर्यावरण को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है.....
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (6-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
विचारणीय पोस्ट,ग़ज़ल के माध्यम से ,आँखें खोलने में सक्षम , आभार
ReplyDeleteअनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
ReplyDeleteहर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
बहुत बढ़िया रचना । बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
bahut hi badhia likha hai .
ReplyDeletesamsamayik ..sarthak rachna .
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
ReplyDeleteकिस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ।
बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! पर्यावरण पर आपने बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार गज़ल लिखा है! विचारणीय और सार्थक प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
ReplyDeleteनासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
Aah! Kitna sahee hai!
बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सचेत करती बहुत ही सार्थक गज़ल ! हाई ब्रिड सब्जियां देखने में चाहे जितनी भी आकर्षक हों स्वास्थ्य के लिये उतनी ही हानिकारक होती हैं ! बहुत ही सामयिक एवं विचारपूर्ण रचना ! आपको बहुत बहुत बधाई एवं आभार !
ReplyDeleteक्या बात है,बहुत ही बढ़िया,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
achhi gajal hai ........
ReplyDeleteये तेजाबी बारिशें बिजली घर की राख ,
ReplyDeleteएक दिन होगा भू पटल ,वारणा -वर्त की लाख ."अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही कुंवर ,
हर तरफ आती नजर दुश्वारियां - दुश्वारियां ."
आओ कुछ ऐसा करें मिलकर कुँवर ,
हर तरफ हों क्यारियाँ ही क्यारियाँ ।
हों धरा की हम पर मेहरबानियाँ ।
भाई साहब !पर्यावरणी दोहों और ग़ज़लों के लिए आपको बधाई !
एनवायरन -मेंटल डिजीज इस दौर में एक स्वतन्त्र अनुशाशन बन चुका है .फिर भी वन -माफिया -सरकारी दुरभिसंधि खुलके खेल रही है ।
"पेड़ पांडवों पर हुआ जब जब अत्याचार ,
ढांप लिए वट -भीष्म ने तब तब दृग के द्वार .
lovely and a very apt post on Environment day !!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब सर जी...बहुत ख़ूब! हर शेर लाजवाब है!
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल के लिए आये सभी कॉमेंट्स से सहमत हूँ
आभार!
अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
ReplyDeleteहर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.paryavaran diwas per aapne bahut hi sunder gajal likhi hai.aek-aek najm shaandaar hai.badhaai sweekaren.
आपके फ़न को हज़ारो सलाम | क्या बात लिख दी है |
ReplyDeleteदिल से दाद और दुआ निकलती है आपकी और आपकी
कलम की सलामती के लिए | मुबारक कुबूल फरमाएं |
सही चिंतन !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सार्थक लेखन......
ReplyDeleteपेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
ReplyDeleteनासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
आद. कुसुमेश जी,
पर्यावरण पर बहुत ही खूबसूरत और जागरूकता पैदा करने वाली ग़ज़ल !
आपकी कलम का जादू इस ग़ज़ल में भी साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा है!
साहित्य जगत आपके योगदान का हमेशा ऋणी रहेगा !
आभार !
हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
ReplyDeleteक्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ....
बहुत खूब .... सचेत करती है आपकी ग़ज़ल ... सार्थक ग़ज़ल है ....
बहुत सुन्दर कुसुमेश जी !
ReplyDeleteजिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़कर प्रकृति
उनके कन्धों पर यकीनन ही हैं जिम्मेदारियाँ |
..........................ऐसे कंधे भले कम हों मगर जिम्मेदारी तो इन्हीं को ही निभानी होगी
तबाही की तरफ़ ख़ुद ही बढ़ा जा रहा है
ReplyDeleteसमझदार होकर भी कर रहा है बदकारियां
बहुत उम्दा और नसीहत देने वाले अशआर।
दिल ख़ुश हुआ।
ये बाबा कुछ अलग है ! -Rajesh Joshi
जिंदाबाद कुंवर जी जिंदाबाद...पर्यावरण दिवस पर इस से बेहतर ग़ज़ल और क्या होगी...हमने इसे अपनी कंपनी के नोटिस बोर्ड पर सबके पढने हेतु चिपका दिया है...क्यूंकि ये ग़ज़ल जन जन तक पहुंचानी चाहिए.
ReplyDeleteनीरज
वाह ... बहुत ही गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ।
ReplyDeleteएक सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर प्रभावी रचना..
ReplyDeletebahut shi kah hai.....pedh, wanaspati paryawaran aaj ka sabse badaa mudda hona chahiye....
ReplyDeleteआदरणीय कुंवर जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत खूब ..... सार्थक ग़ज़ल है
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
ब्लॉग पर देर से पहुँचने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.पर्यावरण के प्रति आपका प्रेम और चिंता आपके एक जागरूक नागरिक होने का सबूत देते हैं.बेहद खूबसूरती से दर्द उकेरा है आपने. बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteआभार
पर्यावरण के प्रति जागरूकता जगाती बेहतरीन ग़ज़ल.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल ...अच्छा लगा यहाँ आकर ..बधाई
ReplyDelete___________________
'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!
"अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
ReplyDeleteहर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ"
अत्यंत सामयिक ,संवेदनशील एवं विचारपूर्ण गजलसदा की भांति एक सन्देश देती गजल..
सही चिंता का विषय
ReplyDeleteकुंवर साहब पर्यावरण की हित चिंता सदैव सराहनीय है .प्रकृति के साथ हम पापाचार कर रहे हैं / सार्थक सिल्प अवं कथ्य .
ReplyDeleteअनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
आभार जी /
पर्यावरण के प्रति जागरूकता ही पॄथ्वी को अस्तित्वमान रख पायेगी .... सादर !
ReplyDeleteजिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
ReplyDeleteउनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ .
पर्यावरण के प्रति सचेत करती उद्देश्यपूर्ण ग़ज़ल.वास्तव में भौतिकता की दौड़ में अक्ल और आँखों पर पर्दा पड़ गया है.प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी सभी की होती है.ऐसी कवितायेँ निश्चय ही सोचने के लिए मजबूर करती हैं.
पर्यावरण के प्रति आपकी प्रतिबद्धतता को दर्शाती गजल अच्छी लगी..बधाई.
ReplyDelete********************
कभी 'यदुकुल' की यात्रा पर भी आयें !!
Wonderful writing....
ReplyDeleteCongrats on writing such a meaningful gazal.
ये देखकर बड़ा अच्छा लगा कि इस विषय पर भी ग़ज़ल लिखा जा सकता है. प्रेरक बातें सरल रूप में प्रस्तुत की है. आपकी इस गजल को मैंने फेसबुक पर भी शेयर किया है.
ReplyDeleteपेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
ReplyDeleteनासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
bahut badhiyaan ,sach hi hai hum aksar jaankar hi galtiyaan karte hai .
आपने शब्द रूपी आड़ी से हमें विक्षत कर दिया है .अब भला न चेते तो कब ?
ReplyDeleteपर्यावरण पर आपकी ग़ज़ल देख अच्छा लगा... आपका चिंतन और साहित्य सार्थक है...
ReplyDeleteएक खूबसूरत ग़ज़ल और एक विचारणीय संदेश.........
ReplyDeleteशहर से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ... क्षमा प्रार्थी हूँ.
अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
ReplyDeleteहर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
....वाह!
बहुत अच्छा संदेश दिया है सर!
ReplyDelete-----------------------
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...
नयी-पुरानी हलचल
धन्यवाद!
एक खूबसूरत ग़ज़ल और एक विचारणीय संदेश|
ReplyDeleteपर्यावरण संरक्षण जैसे विषय पर गजल विधा में लिखना वास्तव में एक नया और साहसिक कदम है। आपको बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteपर्यावरण के प्रति आपकी चिंता चिंतन का विषय है...एक खूबसूरत ग़ज़ल और एक विचारणीय संदेश...........
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
ReplyDeleteकिस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
lajavab ati sunder
saader
rachana
हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
ReplyDeleteमुश्किल विषय पर कही गयी सुंदर गज़ल बधाई |
ReplyDeleteजहर युक्त विटामिन मुक्त तरकारियो को खा बना जीवन कैसे जियें
ReplyDeleteअब तो हारमोन्स के टीके लगे फल और तरकारियाँ खाने की नौबत आ गई जिसका प्रभाव मनुष्य के व्यवहार पर सीधे पड़ता है. जिम्मेदारी की याद दिलाती रचना.
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