ग्रह - उपग्रह
(दोहे)
कुँवर कुसुमेश
तेरह लाख गुना बड़ा,पृथ्वी से आदित्य.
सूरज के परिवार को,कहते मंडल-सौर.
नौ ग्रह नियमित घूमते,सूरज के चहुँ ओर.साबित करते हैं यही,वैज्ञानिक अभिलेख.
अपनी पृथ्वी भी इन्हीं,नौ ग्रह में है देख.
बुध,पृथ्वी,शनि,बृहस्पति,अरुण, वरुण के संग.
मिलकर मंगल,शुक्र,यम,नौ ग्रह हुए दबंग
ग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
प्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
क्या बसंत क्या शरद ऋतु,क्या गर्मी बरसात.
पृथ्वी अपनी धुरी पर,घूम रही दिन रात.
*****
नवग्रहों समेत पृथ्वी एवं दिनकर का सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
प्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
मनुष्य का प्राकृतिक हस्तक्षेप सीमाएं पर कर गया तो पृथ्वी का घूर्णन बदल जायेगा ..फिर शायद कुछ कलयुगी पंक्तिया जोड़नी पड़े इस कविता में
sunder prastuti.aabhar!!
ReplyDeleteकुंवर साहब!
ReplyDeleteयह कमाल सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं।
एक से एक सधे हुए दोहे, वह भी एक ही विषय ग्रह-उपग्रह पर। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के ऊपर संदेश!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत अच्छी भोगोलिक कविता
ReplyDeleteआकर्षक और ज्ञानवर्द्धक दोहे।
ReplyDeleteअनूठे विषय पर अनूठी रचना।
वैसे, अब सौर मंडल में आठ ही ग्रह हैं। ग्रह की नई परिभाषा में यम खरा नहीं उतरता।
क्या बसंत क्या शरद ऋतु,क्या गर्मी बरसात.
ReplyDeleteपृथ्वी अपनी धुरी पर,घूम रही दिन रात.bahut sare tathyon ko sanjoya hai
कुँवर साहब! सौर मण्डल का निरूपण दोहों में, बहुत सुन्दर ख़ासकर बच्चों के लिए अति उपयोगी क्योंकि कविताएँ यदि रट जायँ तो कभी नहीं भूलतीं वह भी दोहा जैसा प्रभावी छन्द। तमाम परिभाषाएं हमें अब भी छन्दबद्ध याद हैं। आपके इस वर्णन को और ज्यादा प्रभावी और सामयिक बनाया है इसमें निहित प्राकृतिक संतुलन का संकेत लब्बोलुवाब यह कि आपके ये दोहे बहुत ही उपयोगी, सार्थक और सामयिक बन पड़े हैं... आभार एवँ बधाई क़ुबूल फ़रमाएँर ख़ासकर बच्चों के लिए अति उपयोगी क्योंकि कविताएँ यदि रट जायँ तो कभी नहीं भूलतीं वह भी दोहा जैसा प्रभावी छन्द। तमाम परिभाषाएं हमें अब भी छन्दबद्ध याद हैं। आपके इस वर्णन को और ज्यादा प्रभावी और सामयिक बनाया है इसमें निहित प्राकृतिक संतुलन का संकेत लब्बोलुवाब यह कि आपके ये दोहे बहुत ही उपयोगी, सार्थक और सामयिक बन पड़े हैं... आभार एवँ बधाई क़ुबूल फ़रमाएँ
ReplyDeleteऊपर आकाश में ये ग्रह चलते चाल
ReplyDeleteऐसी-तैसी हो गयी हाल हुआ बेहाल...
शायद ही किसी नें वैज्ञानिक सौर मण्ड़ल पर दोहे लिखे हों।
ReplyDeleteला-जवाब, अनमोल, मौलिक और नवयुग का चमत्कार किया आपनें
हर बार की तरह बहुत खुबसूरत एक सीख देती पोस्ट |
ReplyDeleteसुन्दर दोहों (सत्साहित्य) के माध्यम से वैज्ञानिक जानकारियाँ देने का महान कार्य ............अति प्रशंसनीय
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी दोहे के रूप में आपका जबाब नहीं दिल से निकला वाह वाह ..
ReplyDeletebahut achchhi kavita ..vaigyanik kavita .aabhar
ReplyDeletebahut hi shandar post
ReplyDeletevakayi ek dam alag
aabhar
सौर मंडल के बारे में जानकारी देते सार्थक दोहे .. चंद्रभूषण जी की बात से मैं भी सहमत हूँ
ReplyDelete{विख्यात}
ReplyDeleteNice post
Ni:shabd kar diya aapkee is rachana ne! Kya kamal hai!
ReplyDeleteग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
सुंदर अर्थपूर्ण दोहे...
नवग्रहों को बहुत खूबसूरती से बाँधा है आपने इन सुन्दर दोहों में!
ReplyDeleteअद्भुत प्रस्तुति है आज की आपकी ..!!
ReplyDeleteबहुत सारी भावनाओं को समेटे हुए ...
बहुत सुंदर रचना ....!!
navgarho se saji rachna,...
ReplyDeletebahut aakarshak ||
ReplyDeleteसुन्दर वैज्ञानिक बालगीत
ReplyDeleteसाबित करते हैं यही,वैज्ञानिक अभिलेख |
ReplyDeleteअपनी पृथ्वी भी इन्हीं,नौ ग्रह में है देख ||kya chintan kiya hai, maanana padega. mukammal adbhut aur sach. aafreen.
बहुत बढ़िया और ज्ञानवर्धक दोहे! अच्छी जानकारी मिली ! स्कूल में भूगोल पढ़ने के बाद आज आपके पोस्ट के दौरान वो यादें ताज़ा हो गयी! नए अंदाज़ के साथ शिक्षाप्रद प्रस्तुती!
ReplyDeleteवैज्ञानिक काव्य विवेचन हेतु धन्यवाद.
ReplyDeleteआपकी कविताएं सहजता से आत्मसात हो जाती है
ReplyDeleteबड़ी ही सधी हुई शैली में आपने ग्रहों उपग्रहों की जानकारी बता दी है ! बच्चों के लिए कंठस्थ करने लायक दोहे हैं ! काव्य रचना के लिए ऐसे अनूठे विषय को चुनने के लिए आपको अनेक बधाइयाँ !
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी से भरपूर
ReplyDeleteदोहे पढ़ कर मन बहुत प्रसन्न हो गया
आपका लेखन हर लिहाज़ से
अनमोल और अनुपम होता है... हमेशा ही !!
आपका एक विषय को केंद्रीत कर दोहे कहने का अंदाज़ निराला है. इसे हिंदी काव्य की एक नई विधा या पुराणी विधा का नए रूप में, नए लबो-लहजे के साथ प्रस्तुतीकरण कह सकते हैं. आप इसके लिए बधाई के पात्र हैं.
ReplyDeleteग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़
बहुत सही बात कही है सर!
सादर
कमाल की रचना,
ReplyDeleteबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
"बुध,पृथ्वी,शनि,बृहस्पति,अरुण,वरुण के संग.
ReplyDeleteमिलकर मंगल,शुक्र,यम,नौ ग्रह हुए दबंग"
एकदम नए प्रकार की रचना...
"ग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
प्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़."
सौर मंडल पर पहली कविता देखी है. भई वाह. कविता का अंत कहता है कि सौर मंडल चाहे जितना अलौकिक हो परंतु हमारे लिए ऋतुएँ बहुत अलौकिक हैं.
ReplyDeleteग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
sahee......prakriti apna kaam apne nirdhaarit swaroop me hamesha karti rahti hai......lekin insaan apni swarthon ke liye uska santulan bigaad deta hai aur prakriti ko hi blame bhi...
achhi abhivyakti....
ग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़
.
अच्छा लगा पढ़ कर
vaah...kya dohe likhe hain kusumesh ji nao grah ka kitna sunder chitran hai.badhaai hai aapko.
ReplyDeletewah bahut khob..kavita..aap bahut sur taal me likhjte hai...
ReplyDeleteper shama chaungi..Yamm ab griho ki shreni se nikaal diya gaya hai...ab keval..8 grah..{planets} hi bacche hai....
पूरा सौर परिवार इन पंक्तियों में आ गया . पढ़कर मजा आ गया .
ReplyDeletevery nice post.
ReplyDeletenavgrahn se saji nav gooron se poorn rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से वैज्ञानिक ज्ञान की सहित्यिक प्रस्तुति.
ReplyDeleteसाहित्य और विज्ञान का करा रहें हैं मेल ,
ReplyDeleteकुंवर जी कुशेमेश के बाएं हाथ का खेल ।
कुशुमेश जी यम या प्लूटो जी से ग्रह का दर्ज़ा छिन चुका है .अब श्री मान कहलातें हैं "प्लेनेतोइड ".ज़नाब आकार में सूरज के बेटे चन्द्रमा जी से भी छोटें हैं .फिर भी ज्योतिष पुत्र काचे काट रहें हैं ,पैसा कूट रहें हैं ।
खेल खेल में ले ताल और दोहावली के ज़रिए आप विज्ञान शिक्षण कर रहें हैं .इस अदा पर कौन न मर जाए .
बुध,पृथ्वी,शनि,बृहस्पति,अरुण,वरुण के संग.
ReplyDeleteमिलकर मंगल,शुक्र,यम,नौ ग्रह हुए दबंग ...
वाह ... गज़ब के दोहे हैं सभी ... दोहों के साथ साथ अनमोल जानकारी भी समेटी है आपने ... बहुत खूब ..
बहुत ही सुन्दर,शानदार और उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteग्रह-उपग्रह के विषय को पर्यावरण संरक्षण से जोड़कर जो संदेश आपने दिया है बहुत ही ह्रदयग्राही है.
ReplyDeleteआपकी गजल सदा की भांति सुन्दर है.
आपकी रचनाएँ सामान्य ज्ञान का वृहद् कोष हैं ...वाह...हमने इस रचना को कालोनी के स्कूल के बोर्ड पर लगाया है ताकि बच्चे आसानी से खगोल की जानकारी ले सकें और उन्हें क्या करना है सीख सकें.
ReplyDeleteनीरज
सही बात कही है एक सीख देती पोस्ट |
ReplyDeleteज्ञानवर्धक दोहे!कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
ReplyDeleteकरीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
बहुत खूब ! खगोल विज्ञान विषय पर इतने सुन्दर दोहे..कमाल है..आभार
ReplyDeleteएक -एक शब्द अपने आप में अति सुन्दर !
ReplyDeleteप्लेनेट्स के भी भाई साहब दो स्वरूप हैं .इन्फीरियर और सुपीरिअर ,इनर एंड आउटर।
ReplyDeleteबृहस्पति से लेकर यम तक सुपीरियर तथा बुद्ध से मंगल तक इन्फीरियर प्लेनेट्स कहलातें हैं .अच्छ्ही ज्ञानपरक प्रस्तुति .
ग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
ग्रह-उपग्रह विषय को पर्यावरण संरक्षण से जोड़कर आपने जो संदेश दिया है बहुत ही ज्ञानवर्धक और महत्वपूर्ण है...सभी दोहे बहुत ही सुन्दर है.......
इतने गूढ़ विषय पर इतनी सुन्दर कविता... सुन्दर दोहे... अपने छोटे बच्चों को दे दी है पढने के लिए... ज्ञान बढेगा उनका भी...
ReplyDeleteग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
क्या कमाल का लिखते हैं आप.
मानव भी आखिर क्या करें.
तोड़फोड़ की पुरानी आदत है.
महान पूर्वज बंदरों का ही तो वारिस है.
बुध,पृथ्वी,शनि,बृहस्पति,अरुण,वरुण के संग.
ReplyDeleteमिलकर मंगल,शुक्र,यम,नौ ग्रह हुए दबंग
नवग्रहों पर सुन्दर दोहे... नूतन भाव....
ग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
आपने तो नि:शब्द कर दिया
Really very impressive sir ji....! I'm short of words to praise you. Congrats!
ReplyDeleteRead my comment on your earlier post too.
Thanks.
क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबुध,पृथ्वी,शनि,बृहस्पति,अरुण,वरुण के संग.
मिलकर मंगल,शुक्र,यम,नौ ग्रह हुए दबंग ।
ग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.
क्या बसंत क्या शरद ऋतु,क्या गर्मी बरसात.
पृथ्वी अपनी धुरी पर,घूम रही दिन रात.
han da prithvi ke astitva ko hi khatra ho gaya lagata hai ab to.
sundar Dohe dada!
वाह! बहुत सुन्दर !नवग्रहों का सुन्दर वर्णन,एक सीख देती पोस्ट
ReplyDeleteawesome !!
ReplyDeletemaza aa gaya padh kar.
भूगोल की जानकारी भी इतने रोचक रूप से दी जा सकती है ,पहले कभी सोचा नहीं था :))
ReplyDeleteकमाल का वर्णन कविता के माध्यम से ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सूरज की तरह ही बहुत खास है आपके लिखने का अंदाज़ .
ReplyDeleteऐसी रचनाएं ज्यादा से ज्यादा लिखी जानी चाहिए। इस शमा को जलाए रखें।
ReplyDelete------
TOP HINDI BLOGS !
क्या बसंत क्या शरद ऋतु,क्या गर्मी बरसात.
ReplyDeleteपृथ्वी अपनी धुरी पर,घूम रही दिन रात.
आद. कुसुमेश जी,
यह कहते हुए मुझे थोड़ी भी हिचक नहीं है कि आपकी हर रचना पाठकों से अपना लोहा मनवा लेने में सक्षम होती है ! आपकी कलम जो भी लिखती है उसका अपना एक आसमान होता है जिसकी ऊंचाई आपके मेयार का आईना होती है ! साहित्य को समृद्ध करने में आपका योगदान स्तुत्य है !
आभार !
बेहद प्रभावी शैली में नवग्रहों का वर्णन . एक बार याद हो जाए तो कभी भूले ही नहीं. कोशिश करुँगी, याद कर सकूँ.
ReplyDelete