मलिहाबादी आम
(कुण्डली)
(कुण्डली)
कुँवर कुसुमेश
तुक्मी,चौसा,दशहरी,और बहुत से नाम.
और बहुत से नाम.कहे हापुस से चौसा.
हमसे ज्यादा नहीं बिके तुम अब तक मौसा.
जोर जोर से बहस चली मुन्ना-मुनिया में.
मैंने खाये आम हैं ज्यादा इस दुनिया में .
*** *** ***
सस्ते हैं बाज़ार में, मीठे भी हैं आम.
ले लो,ले लो,लूट लो,मचा हुआ कुहराम.
मचा हुआ कुहराम,बहुत मीठे हैं खा लो.
ठेले पर खाओ,घर की खातिर बंधवा लो.
थैला भर ले गया आम घर हँसते-हँसते.
बीबी ने भी कहा , आम सचमुच हैं सस्ते.
***
आम लोगों को भी प्रिय आम की महिमा उत्तम रही.
ReplyDeleteएकदम आम के मौसम की कविता है....मीठी और सुंगधित.
ReplyDeleteआम अब बाज़ार छोड़ कर जाते नज़र आ रहे हैं...गर्मियों में धूम मचाने वाला फल है आम...सुन्दर रचना.
ReplyDeleteनीरज
आम सभी बौरा गए, खस-खस होते ख़ास |
ReplyDeleteदुनिया में रह-रह मिटै, मिष्ठी-स्नेह-सुबास ||
bahut badiyaa kusumeshji,aam jaisi hi pyaari,meethi rachanaa.aam khaane sa maja aa gayaa padhker.badhaai.aapko.
ReplyDeleteअगर बीवी मुतमइन हो गई तो समझो आम का लाना भी सफल और आम खाना भी सफल ।
ReplyDeleteअगर आम के ऊपर दूध पी लिया जाए तो बीवी और भी ज़्यादा संतुष्टि फ़ील करती है ।
आम हुआ है खास अब कुँवर की मिल गई वाणी!
ReplyDeleteआ हा आम्……………मीठा मीठा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
मीठी और सुंगधित, आम की तरह|
ReplyDeleteएकदम आम के मौसम की कविता है....मीठी और सुंगधित.
ReplyDeleteमीठे रसीले आम देखकर तो मुँह में पानी आ गया! पर्थ में आम नहीं मिलता इसलिए आप कौरिएर करके भेज दीजिये!
ReplyDeleteसस्ते हैं बाज़ार में, मीठे भी हैं आम.
ले लो,ले लो,लूट लो,मचा हुआ कुहराम...
सच में ऐसे ही सुनने को मिलता है !बहुत याद आ रहा है इंडिया का जहाँ पर कितने तरह तरह के आम मिलते हैं ! आम फलों का राजा है और उसके जैसा प्यारी और मीठी रचना लिखा है आपने!
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ReplyDeleteकब आते हम आम खाने के लिये
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे आम तो आम खास भी खुश अब हैदराबाद में तो नाम ही सुन सकते है |बधाई
ReplyDeleteBahut khoob zanaab yahaan Hindi me tabdeel nahin ho paa rhaa hai googal krom me .
ReplyDeleteAam ko khaas bana diyaa zanaab ne kundaliyon me dhaal ke .shukriyaa khoobsoorat kundaliyon ke lie .ghar se baahar yahaan pennsilvania main hun ,raat tak aaj Canton pahunchege .
Mooh me paanee bhar aaya!
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ReplyDeleteआम पर खास कुण्डलियाँ हैं मगर कुण्डलियों के बीच के गैप को कम कीजिए कुँदर साहिब!
ReplyDelete--
दोनों ही कुण्डलियाँ मीटर पर बिल्कुल खरी उतरती हैं!
खास हो गए ये आम! बढ़िया कुंडली
ReplyDeleteसॉरी कुँवर साहिब!
ReplyDeleteटाइप करने में अँगुलियाँ फिसल गईं थी!
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आम पर खास कुण्डलियाँ हैं मगर कुण्डलियों के बीच के गैप को कम कीजिए कुँवर साहिब!
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दोनों ही कुण्डलियाँ मीटर पर बिल्कुल खरी उतरती हैं!
कुसुमेश जी,
ReplyDeleteमुँह में पानी आ गया!
कुसुमेश जी,
ReplyDeleteवाह क्या मलिहाबादी थे,यहाँ तक महका गए.पर मलिहाबादी दशहरी के तो क्या कहने मुंह में पानी आ जाये ...
फलों के राजा आम पर केंद्रीत इस रचना का जायका आम जैसा ही मीठा और रस से भरा है. मुबारक हो....आनंद आ गया...लेकिन क्या लखनऊ में आम सचमुच सस्ता है?...हमारे यहां तो 50 के नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रहा..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा सर!
ReplyDeleteसादर
हापुस की देशव्यापी महिमा में एक नगीना और जोडने हेतु बधाईयां । वाकई अभी यह मंहगा स्वाद, सस्ता ही चल रहा है ।
ReplyDeleteआमों की मिठास कुडलियों में समा गई है।
ReplyDeleteमनमोहक रचनाएं।
इतनी अच्छी कुंडली मत लिखा कीजिए, और आम पर तो बिल्कुल ही नहीं। पढ़ते वक़्त मुंह में पनी भरा रहा।हैं। मेरा प्यारा फल है और आपके सरस लेखन ने तो इसमें चार चांद लगा दिए हैं।
ReplyDeleteआम भी सस्ते और आम आदमी भी सस्ता कुंवर जी मजा आ गया मीटःए आम महसूस कर
ReplyDeletewaah ...aam ko bahut khas bna diya aapne....
ReplyDeleteआम तो मेरा पसंदीदा फल है . आम की प्रशंसा देखकर मन अन्दर से प्रसन्न हो गया. धन्यवाद
ReplyDeletemeethe aam ki terh meethi meethi rachna
ReplyDelete"aam" ke hawaale se
ReplyDelete"khaas" rachnaa ... !!
bahut khoob .
आमों के मौसम में, जुबां पे स्वाद आम का
ReplyDeleteखा-खा कर भी मन ना भरा, शुक्र राम का...
बढ़िया मौसमी रचना के लिए बधाई भाई जी !
ReplyDeletevaah ,kunvar ji vaah.
ReplyDeleteaapke aam to bahut khaas hai.
बहुत रसीली रचना रसाल पर .............
ReplyDeleteवास्तव में इस बार आम पहले की तुलना में काफी सस्ते हैं........
आपकी सलाह मानने योग्य है .........मैं तो भाई खूब आम ला रहा हूँ............दशहरी
खूबसूरत रचना.........
ReplyDeleteमलिहाबाद अपने आम के लिये दुनिया भर मे मशहूर है.
वाह ... वाह आम की चर्चा और यह पंक्तियां बेहतरीन ।
ReplyDeleteaam ko khaas bana k kamaal kar diya hai. bhai jaan is mausam me aam, aam hi hoten hai, nasal koi bhi ho.par aapke andaaz-e-byaani ne munh me paani aur nathno me khushbu se aam ke zayke ko bhar diya, is kamaal k liye shukriya kabul karen
ReplyDeleteमलिहाबादी दशहरी की महक यहां तक आ रही है...
ReplyDeleteलगता है मलिहाबाद ....नहीं तो कम से कम लखनऊ तो आना ही पड़ेगा.
aam to hai hi raja.aap ne bajaya hai aaj uska baja.....bahut badhiya:)
ReplyDeleteपढ़कर ही मुहॅ में पानी आ गया। सुंदर रचना। आभार।
ReplyDeleteआम पर बहुत खास ग़ज़ल......
ReplyDelete"दुनिया में मशहूर हैं,मलिहाबादी आम
ReplyDeleteतुक्मी,चौसा,दशहरी,और बहुत से नाम."
malihabaadi dashahri duniya mein mashhoor
khaaye jo ek baar jo sake ise na bhool...!!
sake ise na bhool ,jo khaye khata jaaye
khane ke bhi baad munh mein paani hi aaye..!!
bahut raseeli rachna hai....
ekdam aam ki tarah...
आम ही आम कर दिए आपने .........वाकई साधारण से विषय पर अद्भुत रचना
ReplyDeleteवाह ... आमों की कुंडलनियाँ ... आज तो अलग ही रस बिखरा हुवा है ब्लॉग पर ... मज़ा आ गया ..
ReplyDeleteekadam isi mousam ki kavita... aur aapki rachnakari ka ek aur namoona...
ReplyDeletebahut khoob...
आम जैसी रसीली कविता
ReplyDeleteकुसुमेश जी,
ReplyDeleteलीजिए मैं मलीहाबाद हो आई...
‘मलीहाबादी आमों की बहार’ देखने के लिए
http://amirrorofindianhistory.blogspot.com/
पर आपका स्वागत है !
bahut sunder har pankti mithi aam jaisi.........
ReplyDeleteआम सा ही रसीला ,घुल रहा है. वाह ... वाह ..सुंदर रचना।
ReplyDeleteसर,आपने तो हमें आममय कर दिया.
ReplyDeleteसुंदर षटपदियां|
ReplyDeleteआमों के ऊपर बेहतरीन और सामयिक रचना लिखी है आपने ! बहुत पसंद आयी ! आमों की मधुरता से सारा वातावरण महक सा उठा है ! पढ़ कर मज़ा आ गया ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteथैला भर ले गया आम घर हँसते-हँसते.
ReplyDeleteबीबी ने भी कहा , आम सचमुच हैं सस्ते.
सही बात है इनके ज़ायके की कोई कीमत नही। धन्यवाद।
आम सी रसीली कविता ....
ReplyDeleteआम की अमावट जैसी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteमलीहाबादी आम... क्या कहने
वाकई अबके आम का ही सीजन है
ReplyDeletebahut umdaa kavita...aisa laga ki aam kha rahe hai...aur maje ki baat...mai aam khate khate hi parh rahi hu...regards era
ReplyDeleteआम पर खास रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलियाँ ..यह कैसे रह गयीं पढने से ..
ReplyDeleteI like Mangoes very much sir! My favorite is " "Dahshari" .
ReplyDeleteYour this post is just like "Dashari Mangoes".
दादा भूख लग गयी और आम और बाग़ याद आगये .....क्या कहूं.
ReplyDeleteबस ये महीने तो पागलपन के ही होते थे !!