कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो
कुँवर कुसुमेश
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो.
पलटकर ज़माने के तेवर तो देखो.
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
मियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
*****
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
ReplyDeleteकहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
वाह बहुत खूब .......सच में आज वो बन्दर कहीं खो गए है
Lajawaab ...
ReplyDeleteगुंजाइश ही नहीं छोड़ी है कुछ और कहने की आपने तो ...।
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/hindi-blogging-guide-28.html
.
ReplyDeleteबहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो....
Awesome !
.
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.. . phir jano
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ReplyDeleteज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो........वाह क्या बात कही |
दो लाइन मेरी तरफ से :)
थोड़ी होगी दोस्ती तो थोड़ी मिलेगी रुसवाई
फिर भी तुम हाथ बढाकर तो देखो :)
जानदार ग़ज़ल है और ख़ूब कही गई है. ये पंक्तियाँ याद रह गई हैं-
ReplyDeleteबड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
ज़माने में कशमकश भी है रिश्ता भी. अंदाज़ पसंद आया.
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
उम्दा शेर कहे हैं आपने, बेहद धारदार ग़ज़ल है !
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
बहुत कुछ कह गयी ये गज़ल .. बहुत खूबसूरत गज़ल
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो.
ReplyDeleteपलटकर ज़माने के तेवर तो देखो
जमाने के तेवर से रू-ब-रू कराती उम्दा ग़ज़ल।
आदमी तो बस पैदा हो जाते हैं...इंसान को तो तराशना पड़ता है...दूसरों से पहले खुद को...
ReplyDelete"जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो."
सही कहाआपने....
आदमीयत और शराफत....दूर से ही दिखाई देती है
थोड़ा पास जाने पर ही असलियत पाता चलती है....!
वही कहावत चरितार्थ होती है......"दूर के ढोल सुहावने !!"
बाकी अन्दर से सब पोल ही है.....!!
बहुत वज़नदार है हर शेर !
ReplyDeleteजिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
मियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
बहुत गहरी पंक्तियाँ हैं ! आभार !
नव रात्रि की शुभकामनायें !
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो. nice and awakening
ReplyDeleteजिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
वाह !!
क्या बात है !!
बहुत ख़ूब !!
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
वाह। एक मुकम्मल गजल...... बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़.
bahut khoobsoorat ghazal kahi hai sir....har sher badhiyaa :)
ReplyDeleteWah Wah ..wah..
ReplyDeleteI had something similar once on ring tone..
"Naya logon se rishta banakr toh dekho"
Your poetry looks so effortless ..But its impact is great ..words chosen very minutely and they sit together very well..
keep writing we love reading it.
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
बहुत सुन्दर भाव एवं शब्द संयोजन ....लाजबाब ...सचित्र ग़ज़ल !
बड़ी शानदार गज़ल है, आहवान करती सी। सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बहुत सही लिखा है आपने ......नव रात्रि की शुभकामनायें!!
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
ReplyDeleteकहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
कुंवर साहब! कई बार पढ़ गया हूं। फिर भी कुछ लिखते नहीं बन रहा। जब मन तृप्त हो जाता है तो कुछ कहने सुनने को नहीं होता। कुछ ऐसी ही स्थिति है मेरी। लग रहा है कि मेरे मन के भाव, मेरी विचार-धारा को आपने शब्द दे दिए हों।
और यह ग़ज़ल तो मन और आत्मा को तृप्त करने वाली ग़ज़ल है। ब्लॉगजगत का ग़ज़ल सम्राट मैं यूं ही नहीं कहता आपको।
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
बहुत खूब
लाजबाब ग़ज़ल
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ReplyDeleteज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो..
वाह! कुसुमेश जी बहुत खूब लिखा है आपने! बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
सुंदर ..अति सुंदर ....
ReplyDeleteबेहद उम्दा गजल ! आखिरी शेर बेहतरीन है, शुक्रिया !
ReplyDeleteबहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.... आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप ही... खास तौर पर गाँधी जी का किताबों में दबे रह जाना और फुटपाथ पर अच्छी नींद आना.... बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब...बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
कुंवर कुसुमेश की ग़ज़ल होऔर पढ़ी न जाए टिपियाई न जाए यह कैसे हो सकता है .आज की तल्खियों से रु -बा -रु हैं तमाम अशआर .
"बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ReplyDeleteज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो."
बहुत सुन्दर एवं सारगर्भित.
सुन्दर सन्देश देती हुई बेहतरीन गजल ..
ReplyDeleteवाह्…………निशब्द कर दिया आपने…………इतनी शानदार गज़ल कहकर्।
ReplyDeleteजिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
बहुत खूब
सर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteरचना बहुत खूबसूरत एक स्टेंजा और जुड़ जाय तो कैसा रहेगा?…इसी गुजारिश के साथ आभार……
दूसरों पे उंगली उठाते हो अकसर!
मुड़ी उंगलियों पे नजर दौड़ाकर तो देखो॥
(हम उठाते हैं उंगली दूसरों पर तो सामने वाले के तरफ़ एक ही उंगली होती है बाकी तीन मुड़ी उंगलियाँ?)
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बहुत खूब लिखा है आपने ......नव रात्रि की शुभकामनायें...
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो ...
गज़ब के शेर हैं सब कुंवर जी ... साधे सादे शब्दों में कमाल किया है ...
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/10/blog-post.html
ReplyDeletewaah baauji...
ReplyDeletekitne acchhe se aap shabdon ko saja dete hain...
bahut khoob...
ham bhi zamane se rishta banane kee soch rahe hain...
बहतरीन अभिवयक्ति है सर आपकी एक बात सच्चाई को ब्यान कर रही है
ReplyDeleteवंदना जी कि बात से सहमत हूँ निशब्द कारदिया आपने यह शानदार गजल कह कर बहुत खूब ...
समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
सही कह रहा हूँ । कुँवर जी । ये अनुभव मैंने कई बार किया है ।
ReplyDeleteआपकी बात में दम है । वाकई आप अनुभव को छूकर गुजरी
हुयी बात ही कहते हैं ।
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा ।
ग़रीबों की मानिंद सोकर तो देखो ।
वाह ! बहुत बहुत आभार ।
अभी समय कम मिलता है । अपने पाठकों की माँग पर दस प्रेत कहानी
लिखने का वादा कर दिया है । फ़िर भी समय मिलते ही आता रहूँगा ।
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
भई वाह ! आपकी तारीफ़ के लिए शब्द ही नहीं है!
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सोकर तो देखो ........शब्दों के पेंटिग शानदार है ...
बहुत शानदार गजल.....
ReplyDeleteजिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
मियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
http://www.ankahealfaz.in/
ReplyDeleteOne of the best of yours..
ReplyDeleteSuper-like from me !!!
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
हर शेर लाजवाब ... बहुत बढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteलाजवाब sir
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल
sadar.
कुशमेश जी नमस्कार्। सुन्दर गजल है--जिसे फक्र से आदमी --------
ReplyDeleteशानदार बहुत बढ़िया ग़ज़ल .....धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो....
बहुत बढ़िया ग़ज़ल......
दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ReplyDeleteज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो .
...................बहुत सुन्दर
हर शेर जानदार ..
वाह!गहरी बातों की सहज अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebhaut hi khubsurat...
ReplyDeleteaapne bulaya aur hum khinche chale aaye
ReplyDeleteab shikayat na kijiyega
bahut hi sunder ghazal
saral shabdon mein, bahut gehri baat kahi aapne
abhaar
Naaz
बहुत बहुत बढ़िया ग़ज़ल. शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteजिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
शुभकामनाएं.
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
Khoob...Behtreen Abhivykti...
भाई जान, सारी की सारी गजल ही खुबसूरत है |
ReplyDeleteबहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो....
बहुत ही उम्दा गजल ...बधाईयां ..हार्दिक अभिनंदनन !!
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
ReplyDeleteकहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
वाह!
नवरात्रि की शुभकामनाएं!
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ReplyDeleteज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
यह बहुत ही उम्दा शेर कहा है और फिर से एक बेहतरीन गज़ल पेश करने के लिये आभार.
विजयादशमी के पर्व पर आपको व परिवार को शुभकामनायें.
विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteManav ke andar maujud dev evm danav ko aapne apni kavita ke madhyam se bakhoobi ubhara hai. aapko vijay dashmi ki hardik subhkamna.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा !
ReplyDeleteविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
ReplyDeleteमियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
क्या बात है भाई , आपने तो सत्य को उदभाषित कर दिया है । मेरे पोस्ट पर भी पधारें। धन्यवाद ।
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteदबे रह गये हैं किताबों में शायद,
ReplyDeleteकहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
कुंवर जी, बहुत उम्दा शेर कहें हैं आपने
दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें !
भाई साहब, मेर नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ReplyDeleteज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
*****
वाह! कुंवर जी वाह!
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
ReplyDeleteकहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
charcha manch tak aaj fir aapki post tak aa gai.sach hai gandhiji ke teen bandron ko dhundhna mushkil ho gaya hai.....bahut hi acchi rachna...mere blog par swagat hai