Tuesday, August 14, 2012

हम-तुम पीटें ढोल,चलो फिर आज़ादी के.................



कुँवर कुसुमेश 

आज़ादी के हो गये,पूरे पैसठ साल.

इतने वर्षों बाद भी,जनता है बेहाल.

जनता है बेहाल,कमर तोड़े मँहगाई.

नेताओं ने मगर,करी है खूब कमाई.

नेता ज़िम्मेदार,देश की बरबादी के.

हम-तुम पीटें ढोल,चलो फिर आज़ादी के.
*****

26 comments:

  1. बिलकुल सही कहा रहे हैं आप और हम भी यही महसूस करते हैं कि वास्तव में हमारे देश में नेताओं ने ऐसा हल कर दिया है कि कुछ इस स्वतंत्रता के मायने ही खो दिए गए लगते हैं.सार्थक प्रस्तुति. तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए

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  2. Sunder, Vyavstha par gahari chot

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  3. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  4. इन नेताओं की जितनी भी तारीफ़ हो कम है ... अभी तो पूरा डुबो के मानेंगे देश को ....
    गहरा व्यंग बाण ....

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  5. आपकी नाराज़गी वाजिब है . ????
    क्या करें हर बदलाव के बाद भी यही कल था ,आज है, कल होगा???????

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  6. समयचीन अभिव्यक्ति!!
    स्वतन्त्रतादिवस की पूर्व संध्या पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  7. वर्तमान हालात का सटीक चित्रण...
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...

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  8. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..

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  9. कभी तो आशाएं होंगीं पूरी .... शुभकामनायें

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  10. सटीक प्रस्तुति

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  11. बहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति सटीक व्यंग्य ,स्वतंत्रता दिवस की बधाई आपको

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  12. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..

    बहुत सार्थक और सुंदर रचना के लिए बधाई !

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  13. ज़िम्मेदार हम भी कम नहीं हैं...ऐसे नेताओं को चुनने के...ढोल तो बजाना ही पड़ता है...मज़बूरी है...इस तथाकथित आज़ादी को ढोने की...वन्दे मातरम...

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  14. बहुत सुंदर!!
    ढोल की पोल खुल जायेगी कैसे पीटें
    अपने अपने ढोल कहाँ कहाँ घसीटें
    नेताजी का देश आजादी भी नेताजी की
    जिसके जो मन में आये उसको पीटे ।

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  15. tippani spaim mein to nahin chali gayi...

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  16. आज 16/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  17. ..बधाई उत्कृष्ट रचना के लिए .नेता ज़िम्मेदार,देश की बरबादी के.

    हम-तुम पीटें ढोल,चलो फिर आज़ादी के.सार्थक दोहे यौमे आज़ादी के ढोल की पोल खोलते ..
    गिरवीं हिन्दुस्तान ,बढ़ी बेढब आबादी ,रकम रखी स्विस बैंक देख लो बर्बादी
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    बृहस्पतिवार, 16 अगस्त 2012
    उम्र भर का रोग नहीं हैं एलर्जीज़ .
    Allergies

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  18. कुँवर कुसुमेश

    आज़ादी के हो गये,पूरे पैसठ साल.

    इतने वर्षों बाद भी,जनता है बेहाल.

    जनता है बेहाल,कमर तोड़े मँहगाई.

    नेताओं ने मगर,करी है खूब कमाई.

    नेता ज़िम्मेदार,देश की बरबादी के.

    हम-तुम पीटें ढोल,चलो फिर आज़ादी के.
    *****दोहा अपने आप में सम्पूर्ण होता है इतने व्यापक विषय को आपने तीन दोहों में दो टूक कह दिया है .किस्सा हिन्दुस्तान की बर्बादी का ढोल की पोल का ...

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  19. बस ढ़ोल ही पीटना बचा है .... सार्थक कुंडली

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  20. शानदार कुण्डलिया सर...
    सादर।

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  21. प्रसंशनीय..। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें । राही मासूम रजा की एक सुंदर कविता पढ़ने के लिए आपका मेरे पोस्ट पर आमंत्रण है ।

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  22. बहुत सही कहा आपने ..आजादी तो सिर्फ इन स्वार्थी नेताओं के लिए ही है ...सुन्दर रचना ...

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  23. हम जब ये ढोल पीटते हैं, यह सुहावना लगता है।

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  24. लूटो, खाओ, मौज मनाओ
    देश की इज्ज़त खूब लुटाओ !
    अपने गौरव की ही जग में
    नाच नाचकर हँसी उड़ाओ !
    भ्रष्टाचार मिटाने को घर बाहर निकलो
    जी भर लूटो देश आज फिर आजादी से !

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  25. BAS IS UMMEED ME HAIN KI KABHI TO SAARTHAK HOGI AAZADI....

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