Sunday, August 10, 2014

"इबोला"........................


नई बिमारी आ गई,मचा हुआ कुहराम। 

दिया डॉकटरों ने इसे,नया"इबोला"नाम।।

नया"इबोला"नाम,चली ये अफ्रीका से। 

बारह दिन में सिर्फ,उठा दे यह दुनिया से। 

रहिये बड़े सतर्क,छोड़ कर दुनियादारी। 

अब तक नहीं इलाज,ये ऐसी नई बिमारी।। 

-कुँवर कुसुमेश 

6 comments:

  1. खतरनाक रोग..बच के रहना होगा...

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  2. कुंवर कुसुमेशजी ,आपने इबोला विषाणु जन्य बीमारी का मूल स्रोत खोलके बड़ा उपकार किया है। ब्लॉगर बंधुओं के हितार्थ मैं इसे हिंदी में रख रहा हूँ यहीं से :

    इबोला मनुष्यों ,के अलावा बंदरों चिम्पांजियों को होने वाला एक विषाणुजन्य रोग है जिसका फिलवक्त कोई इलाज़ नहीं है अलबत्ता इसके लक्षणों का शमन मुमकिन है।कोंगों देश में इबोला नाम की एक नदी बहती है इसी के नाम पर इसे इबोला कहा जाता है। इस रोग का पता सबसे पहले १९७६ में यहीं चला था।

    संक्रमित प्राणियों के रक्त के अलावा शरीर से होने वाले अन्य रिसावों के संपर्क में आने से यह बीमारी स्वस्थ प्राणियों को हस्तांतरित हो जाती है। रोगी को लगाईं जा चुकी सिरिंजों से सम्पर्कित होने और संक्रमित पशु का मांस खाने से भी यह बीमारी हो जाती है।

    फिलवक्त इस रोग का कोई मानक इलाज़ नहीं है सिवाय इसके की संक्रमित व्यक्ति को अलग थलग दूर रखा जाए शेष जनों से। तरल पदार्थ लगातार दिए जाए ताकि इलेक्ट्रोलाइट बेलेंस न गड़बड़ाए रोगी शरीर का। रक्तसार्व शरीर के अंदरूनी या बाहरी अंगों से होने पर फ़ौरन रक्तापूर्ति भी की जाए।

    कमज़ोरी से शुरुआत होती है इसके लक्षणों की। हैमरेजिक फीवर के अलावा पेशीय पीड़ा (मसल पेन ),सिर दर्द और गले में दर्द (दुखन )इसके दीगर लक्षण हैं। अतिसार के साथ मतली भी रोगी को आती है आ सकती है। अंदरूनी अंगों में रक्तसार्व के अलावा चमड़ी पे चकत्ते भी देखे जा सकते हैं।

    बचाव ने ही बचाव। घबराने की कोई वजह नहीं है। एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

    unwarkusumesh.blogspot.com/2014/08/blog-post_10.html

    नई बिमारी आ गई,मचा हुआ कुहराम।

    दिया डॉकटरों ने इसे,नया"इबोला"नाम।।

    नया"इबोला"नाम,चली ये अफ्रीका से।

    बारह दिन में सिर्फ,उठा दे यह दुनिया से।

    रहिये बड़े सतर्क,छोड़ कर दुनियादारी।

    अब तक नहीं इलाज,ये ऐसी नई बिमारी।।

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  3. वाह जी वाह ... इबोला को आपने काव्यात्मक रूप दे दिया ...
    मज़ा आ गया ...

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  4. वाह इबोला पर भी कविता!

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