नया माहौल गरमाने लगा है
कुँवर कुसुमेश
चलो ये साल भी जाने लगा है,
नया माहौल गरमाने लगा है.
हमेशा की तरह इस बार कोई,
यक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
जो मुझको देख शरमाने लगा है.
तमाशा-ए-सुकूने-दिल तो देखो,
कि मन ही मन में बतियाने लगा है.
मसर्रत के दिनों की पा के आहट,
ग़में-दौरां भी घबराने लगा है.
करो बीमार की तीमारदारी,
कुँवर' गश खाके गिर जाने लगा है.
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तमाशा-ए-सुकूने-दिल - दिल की ख़ामोशी का तमाशा
मसर्रत-ख़ुशी, तीमारदारी-बीमार की सेवा
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
ReplyDeleteजो मुझको देख शरमाने लगा है.
वाह कुवँर साहब वाह
सीधे दिल मे उतर गया ये शेर
वाह कुंवर साहब एक बेहतरीन तोहफा, जाने वाले साल का. क्या खूब कहा है;
ReplyDeleteउसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
जो मुझको देख शरमाने लगा है.
यूँ तो सभी अशआर लाजवाब हैं..
ReplyDeleteलेकिन नए साल के शुभागमन के लिए बहुत उपयुक्त बात कही है आपने...
चलो ये साल भी जाने लगा है,
नया माहौल गरमाने लगा है.
खूबसूरत..!
तमाशा-ए-सुकूने-दिल तो देखो,
ReplyDeleteकि मन ही मन में बतियाने लगा है.
... bahut badhiyaa !!!
नए साल को अलविदा कहने का मस्त तरीका...
ReplyDeleteहै.वाह सर जी वाह...
ReplyDeleteआपकी इस कविता को पढ़
मेरा दिल भी नए साल के लिए कुछ सपने सजाने लगा..
नए साल के आगमन में इतना खुबसुरत गजलं। भई मजा आ गया।
ReplyDeleteचलो ये साल भी जाने लगा है,
ReplyDeleteनया माहौल गरमाने लगा है.
एक नयी दस्तक को
खूबसूरत अलफ़ाज़ का लिबास दे कर
एक ऐसी ग़ज़ल कह दी आपने
जिसे पढने को जी चाहता है ,,, बार-बार
और
जो मुझको देख शरमाने लगा है... में
पहला मिसरा खुद भी कुसुमेश को ढूँढ रहा है
उम्मीद के साथ भरोसा भी है
कि बुरा नहीं मानेंगे ....
हमेशा की तरह इस बार कोई,
ReplyDeleteयक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
जो मुझको देख शरमाने लगा है
गज़ब के शेर हैं ...बहुत अच्छी गज़ल
कुशमेश जी, बहुत ही सुंदर शेर... सुंदर प्रस्तुति .
ReplyDeleteइस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। बेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबढ़िया कुसुमेश जी ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteमसर्रत के दिनों की पा के आहट,
ReplyDeleteग़में-दौरां भी घबराने लगा है.
बहुत खूब। शुभकामनायें।
हमेशा की तरह इस बार कोई,
ReplyDeleteयक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
कुसुमेश जी,
आपकी ग़ज़ल के हर शेर में विचारों की आंधी छुपी होती है !
हमेश की तरह यह ग़ज़ल भी उम्दा है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल ......
ReplyDeleteमसर्रत के दिनों की पा के आहट,
ग़में-दौरां भी घबराने लगा है.
..
आदर सहित
मंजुला
bahut sunder gazal hai........
ReplyDeletesabhee sher ek se badkar ek hai...
ehsaso me jaan daal dee hai aapke alfazo ne....................ya ye kanhoo ki alfazo me ehsaso ne jaan daal dee hai.........
lajawab.......
कुसुमेश जी
ReplyDelete.. मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
ReplyDeleteजो मुझको देख शरमाने लगा है
क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब
अब कहने को आपने बाकी तो कुछ छोड़ा नहीं, फिर भी एक बात, आपकी रचनाएं दिल से लिखीं जाती हैं, पढ़ने को बार बार मन करता है, प्रत्येक पंक्ति मन को मोह लेने वाली है....आपका आत्मीय धन्यवाद
ReplyDelete"हमेशा की तरह इस बार कोई,
ReplyDeleteयक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
जो मुझको देख शरमाने लगा है."
सर जी,नमस्कार.
आपकी गजल पढकर निःशब्द हो गया हूँ.
इतनी कोमलता से भाव को आकार देना
आप जैसों के ही बस की बात लगती है.
अभी तक आपके ब्लॉग पर नहीं जाने का
मलाल रहेगा.ये मन की बात है.
"हमेशा की तरह इस बार कोई,
ReplyDeleteयक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
जो मुझको देख शरमाने लगा है."
एक से एक खूबसूरत शेर!!
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
ReplyDeleteजो मुझको देख शरमाने लगा है।
वाह, बहुत खूबसूरत शे‘र है...पूरी ग़ज़ल दमदार है।
Nice post .
ReplyDeleteहमें नेकी पर चलने के लिए एक आदर्श व्यक्ति और तमीज़ दरकार है
ReplyDelete@ कुंवर कुसुमेश जी , अपने भी एक नेक कम को सहारा देकर नेकी को मजबूत किया है . आपकी तारीफें मैंने बहुत सुनी हैं .
आपकी पंक्तियाँ लाजवाब हैं . निस्संदेह , यह हमारी विडंबना है लेकिन यह है क्यों ?
मैं जब इस पर लिखता हूँ तो हिमायत करने सामने कम ही आते हैं .
आज भारतीय समाज के पास एक भी ऐसी आइडियल पर्सनैल्टी नहीं है जिसके अनुकरण के लिए समाज का आह्वान किया जा सके .
है कोई ?
अगर हो तो आप बता दीजिये . यह महज़ एक बौद्धिक सलाह ले - दे रहा हूँ .
हमें नेकी पर चलने के लिए नेकी और बदी में बिलकुल साफ़ तमीज़ दरकार है और एक ऐसे आदर्श व्यक्ति की , जो न्याय , समानता और नैतिकता का ऐसा नमूना हो की जो उसने दूसरों से कहा हो , दूसरों से पहले खुद उसे दूसरों से बढ़कर किया हो.
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
आप मेरे ब्लॉग तक आये शुक्रिया इस बहाने आप के ब्लॉग तक आने का अवसर मिला बहुत सुन्दर आपकी कविता और उसके भाव मेरे प्रिय कवी कुंअर बैचेन की याद दिलाते हैं वैसे मेरे ब्लॉग का पता है mvvyasmamta.blogspot.com आप इस पर आइयेगा शुक्रिया
ReplyDeleteकुवर साहब नए साल के बहाने आपने बहुत सारी बाते की हैं.. सुन्दर ग़ज़ल है.. हर शेर बेहतरीन .. थोड़ी देर से ब्लॉग पर आया.. सो बिलम्ब के लिए खेद है..
ReplyDeleteबाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
खूबसूरत! और क्या?
आशीष
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नौकरी इज़ नौकरी!
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
ReplyDeleteजो मुझको देख शरमाने लगा है||
कुंवर साहब आप ने तो नये वर्ष के आरम्भ की बेला के साथ प्रेम की कोमल भावना का भी बड़ा ही शानदार जिक किया है .....
सुन्दर ग़ज़ल है..
हर शेर तरोताजा और बेहतरीन ..
थोड़ी देर से ब्लॉग पर आया हूँ ..
सो बिलम्ब के लिए खेद है कुंवर साहब ...
आप की शिकायत अब नहीं रहनी चाहिये ......
धन्यवाद एक अची गज़ल के लिए ......
आगे भी आशा लगी रहेगी इंतज़ार रहेगा नई नज्म का ......
http://nithallekimazlis.blogspot.com/
उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
ReplyDeleteजो मुझको देख शरमाने लगा है.
सबका अपना अपना अनुभव है ...बहुत खूब
वाह ! बहुत सुन्दर रचना है !
ReplyDeletesir ji...kya kahun ....Padhkar mazaa aa gaya.
ReplyDeleteAapne bahut hi badhiya likha hai. Mujhe Apka har sher pasand aaya. Iske liye aapko aabhar.
bade bhai bahut sundar gazal aapne kahi hai badhai
ReplyDeletewah...wah
ReplyDeleteउसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
ReplyDeleteजो मुझको देख शरमाने लगा है.
बहुत खूब कुंवर जी ... सर्दी का मौसम प्रेम और उमंग ले कर आया है ... ये प्यार ही है कुछ और नहीं ... लाजवाब ग़ज़ल ..
बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDelete"मसर्रत के दिनों की पा के आहट,
ReplyDeleteग़में-दौरां भी घबराने लगा है."
वाह कुंवर साहब बहुत सुन्दर लाजवाब ग़ज़ल
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना है! बधाई!
ReplyDeleteकुवँर कुशमेश जी आपकी कही गजल लाजबाव है।
ReplyDeleteआपकी गजल मेँ संवेदना और शिल्पगत सुन्दरता शानदार है। आभार !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteBahut Badiya Sir...
ReplyDeletewww.gunchaa.blogspot.com