Wednesday, December 1, 2010

नया माहौल गरमाने लगा है

कुँवर कुसुमेश

चलो ये साल भी जाने लगा है,
नया माहौल गरमाने लगा है.

हमेशा की तरह इस बार कोई,
यक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.

उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
जो मुझको देख शरमाने लगा है.

तमाशा-ए-सुकूने-दिल तो देखो,
कि मन ही मन में बतियाने लगा है.

मसर्रत के दिनों की पा के आहट,
ग़में-दौरां भी घबराने लगा है.

करो बीमार की तीमारदारी,
कुँवर' गश खाके गिर जाने लगा है. 
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तमाशा-ए-सुकूने-दिल - दिल की ख़ामोशी का तमाशा 
मसर्रत-ख़ुशी, तीमारदारी-बीमार की सेवा 

42 comments:

  1. उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है.

    वाह कुवँर साहब वाह
    सीधे दिल मे उतर गया ये शेर

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  2. वाह कुंवर साहब एक बेहतरीन तोहफा, जाने वाले साल का. क्या खूब कहा है;

    उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है.

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  3. यूँ तो सभी अशआर लाजवाब हैं..
    लेकिन नए साल के शुभागमन के लिए बहुत उपयुक्त बात कही है आपने...
    चलो ये साल भी जाने लगा है,
    नया माहौल गरमाने लगा है.
    खूबसूरत..!

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  4. तमाशा-ए-सुकूने-दिल तो देखो,
    कि मन ही मन में बतियाने लगा है.
    ... bahut badhiyaa !!!

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  5. नए साल को अलविदा कहने का मस्त तरीका...

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  6. है.वाह सर जी वाह...
    आपकी इस कविता को पढ़
    मेरा दिल भी नए साल के लिए कुछ सपने सजाने लगा..

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  7. नए साल के आगमन में इतना खुबसुरत गजलं। भई मजा आ गया।

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  8. चलो ये साल भी जाने लगा है,
    नया माहौल गरमाने लगा है.

    एक नयी दस्तक को
    खूबसूरत अलफ़ाज़ का लिबास दे कर
    एक ऐसी ग़ज़ल कह दी आपने
    जिसे पढने को जी चाहता है ,,, बार-बार
    और
    जो मुझको देख शरमाने लगा है... में
    पहला मिसरा खुद भी कुसुमेश को ढूँढ रहा है
    उम्मीद के साथ भरोसा भी है
    कि बुरा नहीं मानेंगे ....

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  9. हमेशा की तरह इस बार कोई,
    यक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.

    उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है

    गज़ब के शेर हैं ...बहुत अच्छी गज़ल

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  10. कुशमेश जी, बहुत ही सुंदर शेर... सुंदर प्रस्तुति .

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  11. इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। बेहतरीन ग़ज़ल।

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  13. बढ़िया कुसुमेश जी ! शुभकामनायें आपको !

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  14. मसर्रत के दिनों की पा के आहट,
    ग़में-दौरां भी घबराने लगा है.
    बहुत खूब। शुभकामनायें।

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  15. हमेशा की तरह इस बार कोई,
    यक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
    कुसुमेश जी,
    आपकी ग़ज़ल के हर शेर में विचारों की आंधी छुपी होती है !
    हमेश की तरह यह ग़ज़ल भी उम्दा है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  16. सुंदर प्रस्तुति !

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  17. बहुत सुन्दर ग़ज़ल ......

    मसर्रत के दिनों की पा के आहट,
    ग़में-दौरां भी घबराने लगा है.
    ..
    आदर सहित
    मंजुला

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  18. bahut sunder gazal hai........
    sabhee sher ek se badkar ek hai...
    ehsaso me jaan daal dee hai aapke alfazo ne....................ya ye kanhoo ki alfazo me ehsaso ne jaan daal dee hai.........
    lajawab.......

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  19. कुसुमेश जी
    .. मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...

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  20. उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है
    क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब

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  21. अब कहने को आपने बाकी तो कुछ छोड़ा नहीं, फिर भी एक बात, आपकी रचनाएं दिल से लिखीं जाती हैं, पढ़ने को बार बार मन करता है, प्रत्येक पंक्ति मन को मोह लेने वाली है....आपका आत्मीय धन्यवाद

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  22. "हमेशा की तरह इस बार कोई,
    यक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
    उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है."
    सर जी,नमस्कार.
    आपकी गजल पढकर निःशब्द हो गया हूँ.
    इतनी कोमलता से भाव को आकार देना
    आप जैसों के ही बस की बात लगती है.
    अभी तक आपके ब्लॉग पर नहीं जाने का
    मलाल रहेगा.ये मन की बात है.

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  23. "हमेशा की तरह इस बार कोई,
    यक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.
    उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है."

    एक से एक खूबसूरत शेर!!

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  24. उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है।

    वाह, बहुत खूबसूरत शे‘र है...पूरी ग़ज़ल दमदार है।

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  25. हमें नेकी पर चलने के लिए एक आदर्श व्यक्ति और तमीज़ दरकार है
    @ कुंवर कुसुमेश जी , अपने भी एक नेक कम को सहारा देकर नेकी को मजबूत किया है . आपकी तारीफें मैंने बहुत सुनी हैं .
    आपकी पंक्तियाँ लाजवाब हैं . निस्संदेह , यह हमारी विडंबना है लेकिन यह है क्यों ?
    मैं जब इस पर लिखता हूँ तो हिमायत करने सामने कम ही आते हैं .
    आज भारतीय समाज के पास एक भी ऐसी आइडियल पर्सनैल्टी नहीं है जिसके अनुकरण के लिए समाज का आह्वान किया जा सके .
    है कोई ?
    अगर हो तो आप बता दीजिये . यह महज़ एक बौद्धिक सलाह ले - दे रहा हूँ .
    हमें नेकी पर चलने के लिए नेकी और बदी में बिलकुल साफ़ तमीज़ दरकार है और एक ऐसे आदर्श व्यक्ति की , जो न्याय , समानता और नैतिकता का ऐसा नमूना हो की जो उसने दूसरों से कहा हो , दूसरों से पहले खुद उसे दूसरों से बढ़कर किया हो.
    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/blog-post.html

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  26. आप मेरे ब्लॉग तक आये शुक्रिया इस बहाने आप के ब्लॉग तक आने का अवसर मिला बहुत सुन्दर आपकी कविता और उसके भाव मेरे प्रिय कवी कुंअर बैचेन की याद दिलाते हैं वैसे मेरे ब्लॉग का पता है mvvyasmamta.blogspot.com आप इस पर आइयेगा शुक्रिया

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  27. कुवर साहब नए साल के बहाने आपने बहुत सारी बाते की हैं.. सुन्दर ग़ज़ल है.. हर शेर बेहतरीन .. थोड़ी देर से ब्लॉग पर आया.. सो बिलम्ब के लिए खेद है..

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  28. बाऊ जी,
    नमस्ते!
    खूबसूरत! और क्या?
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

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  29. उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है||

    कुंवर साहब आप ने तो नये वर्ष के आरम्भ की बेला के साथ प्रेम की कोमल भावना का भी बड़ा ही शानदार जिक किया है .....
    सुन्दर ग़ज़ल है..
    हर शेर तरोताजा और बेहतरीन ..
    थोड़ी देर से ब्लॉग पर आया हूँ ..
    सो बिलम्ब के लिए खेद है कुंवर साहब ...
    आप की शिकायत अब नहीं रहनी चाहिये ......
    धन्यवाद एक अची गज़ल के लिए ......
    आगे भी आशा लगी रहेगी इंतज़ार रहेगा नई नज्म का ......

    http://nithallekimazlis.blogspot.com/

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  30. उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है.

    सबका अपना अपना अनुभव है ...बहुत खूब

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  31. वाह ! बहुत सुन्दर रचना है !

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  32. sir ji...kya kahun ....Padhkar mazaa aa gaya.
    Aapne bahut hi badhiya likha hai. Mujhe Apka har sher pasand aaya. Iske liye aapko aabhar.

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  33. उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
    जो मुझको देख शरमाने लगा है.

    बहुत खूब कुंवर जी ... सर्दी का मौसम प्रेम और उमंग ले कर आया है ... ये प्यार ही है कुछ और नहीं ... लाजवाब ग़ज़ल ..

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  34. बहुत सुन्दर रचना !

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  35. "मसर्रत के दिनों की पा के आहट,
    ग़में-दौरां भी घबराने लगा है."
    वाह कुंवर साहब बहुत सुन्दर लाजवाब ग़ज़ल

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  36. बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना है! बधाई!

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  37. कुवँर कुशमेश जी आपकी कही गजल लाजबाव है।
    आपकी गजल मेँ संवेदना और शिल्पगत सुन्दरता शानदार है। आभार !

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