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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17- 07- 2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1677 में दिया गया हैआभार
सुन्दर ...
पूरे देश में कमोबेस यही हालात हैं।
अब तो बरस रहा है
कारे -कारे -भूरे -भूरे बदरा आये ,झूम -झूम के बरसे। अभी बहुत खेत है सूखे , पावन ,शीतल जल को तरसे। नीलभ गगन यूँ दिखता है ,छुछ i हो जैसे वह जल से। मेंघो को आमंत्रण है ,बरसे धरा पर पूरे मन से। Posted by Dinesh Kumar Awasthi at 5:57 AM No comments:
बहुत खूब...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17- 07- 2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1677 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
सुन्दर ...
ReplyDeleteपूरे देश में कमोबेस यही हालात हैं।
ReplyDeleteअब तो बरस रहा है
ReplyDeleteकारे -कारे -भूरे -भूरे बदरा आये ,झूम -झूम के बरसे।
ReplyDeleteअभी बहुत खेत है सूखे , पावन ,शीतल जल को तरसे।
नीलभ गगन यूँ दिखता है ,छुछ i हो जैसे वह जल से।
मेंघो को आमंत्रण है ,बरसे धरा पर पूरे मन से।
Posted by Dinesh Kumar Awasthi at 5:57 AM No comments:
बहुत खूब...
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