Sunday, December 5, 2010

 उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब
                                                                           
                                                      कुँवर कुसुमेश 


ज़ुल्म को शोरिशे-हंगाम से जाना जाता,
आदमी  पैकरे-अन्दाम से जाना जाता.

सिर्फ बकरे की हलाली तू अगर ना करता,
परचमे हिन्द को इस्लाम से जाना जाता.

नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.

हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,
और तू अम्न के पैग़ाम से जाना जाता.

उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब,
तू दिखावे की गली-गाम से जाना जाता.

इंडिया ने 'कुँवर'इतिहास रचा रक्खा है,
जो किया जिसने उसी काम से जाना जाता.
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शोरिशे हंगाम - काल का उपद्रव ,पैकरेअन्दाम-शरीर की आकृति 

44 comments:

  1. बेहद ही खुबसुरत रचना। एक शेर मेरी तरफ से भी
    ना होता राम और रहीम में भेद
    तो इंसा एक दूसरे से जुदा न होता।

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  2. उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब,
    तू दिखावे की गली-गाम से जाना जाता.

    इंडिया ने 'कुँवर'इतिहास रचा रक्खा है,
    जो किया जिसने उसी काम से जाना जाता.
    -------------
    लाजवाब ...कटु सत्य से भरपूर बहुत सुन्दर समसामयिक गज़ल..आभार

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  3. प्रत्येक पंक्ति में क्या जान डाली है आपने , दिल साथ साथ चल पड़ा,
    आपका साधुवाद.

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  4. "हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,
    और तू अम्न के पैग़ाम से जाना जाता"

    बेहतरीन कहूँ तो कम होगा कहना !

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  5. SUNDER BADE BHAI /
    AAP MERE BLOG PAR AAKAR MUJHE GAURAANVIT KAR GAYE /SNEH BANAAYE RAKHE //

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  6. नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.
    बहुत उम्दा शेर .. सभी के सभी

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  7. हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,
    और तू अम्न के पैग़ाम से जाना जाता.

    कितनी सच्चाई है आपके बयानों में...
    बेहद्द खूबसूरत ...

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  8. `नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.`
    वाह,क्या शेर कहा है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  9. सिर्फ बकरे की हलाली तू अगर ना करता,
    परचमे हिन्द को इस्लाम से जाना जाता.
    ... bahut khoob ... behatreen gajal !!!

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  10. सिर्फ बकरे की हलाली तू अगर ना करता,
    परचमे हिन्द को इस्लाम से जाना जाता.
    ... बहुत खुल कर ग़ज़ल कह रहे हैं आप... अच्छा लगा ग़ज़ल पढ़ कर..

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  11. इंडिया ने 'कुँवर'इतिहास रचा रक्खा है,
    जो किया जिसने उसी काम से जाना जाता.

    सब अपने कर्मों से ही जाने जाते हैं……………सुन्दर प्रस्तुति।

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  12. कुसुमेश जी,

    क्या खूब…………
    सिर्फ बकरे की हलाली तू अगर ना करता,
    परचमे हिन्द को इस्लाम से जाना जाता.

    और मेरी और से………

    तारीफ़ें तूं न करता अपने सय्यादों की,
    शान्ति के दूत रूप तूं पहचाना जाता।

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  13. क्या खूब लिखा है बाबूजी...
    तू चलता अगर सिर्फ इंसानियत की राह पर
    अल्लाह-ओ-राम के दर में पहचाना जाता
    न पड़ती जरूरत हमें तुझे समझाने कि
    गर तू इंसां के नाम जाना जाता...

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  14. बहुत कटु सत्य
    गजल का हर शेर बेहतरीन से भी बेहतर है

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  15. आपने तो दिल निकाल कर रख दिया है। मेरे पोस्ट पर भी आने की कृपा करें।

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  16. आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
    नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.

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  17. धर्म वाले कभी इंसान बन के देखो तो मज़ा आता....धर्म भी रहे मगर साथ में इंसानियत भी रहे....
    इसी सन्दर्भ में मेरी रचना पढने के लिए जरूर पधारिये....
    http://swarnakshar.blogspot.com

    राम, रहीम, ईशा, गुरु
    सब रहें मगर "नचिकेता"
    हो मानवता के भी दर्शन
    तो क्या बात हो!!!

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  18. sabhi sher achchhe..
    umda gazal..
    kushumeshji!
    apke naye 'gazal sangrah'prakashan
    par hardik badhai!

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  19. हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,
    और तू अम्न के पैग़ाम से जाना जाता.
    kushmesh ji kya bat kahi hai. sari panktiya bahoot hi gahre bhav liye huye.

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  20. "हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,
    हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,"
    आदरणीय कुमारेस सर,
    सादर चरण स्पर्श.
    इतने प्रवाह के साथ पूरे बेबाकपन से जो बात आप कह जातें हैं वह अभिभूत करनेवाला है .
    ८० के दशक में इस तरह की रचनाएँ पढने का अवसर मिला थाऔर आज आपकी गजलों को पढ़कर
    वो दिन याद आ गए.

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  21. निसंदेह एक बेहतरीन रचना ! आपकी प्रखर लेखनी को नमन ।

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  22. निशाना साध के तीर चलाया है आपने।

    बेहतरीन रचना ...सामयिक, सार्थक और आवश्यक भी...
    बधाई, कुसुमेश जी।

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  23. उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब,
    तू दिखावे की गली-गाम से जाना जाता.

    `नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.`

    लाजवाब कितना सच. हर शेर बेहतरीन .....

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  24. उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब,
    तू दिखावे की गली-गाम से जाना जाता.

    लाजवाब......बेहतरीन गजल.... हर शेर में सच्चाई है....

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  25. बाप रे बाप....क्या बात....क्या बात.....क्या बात.....!

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  26. लाजवाब गज़ल ............
    बहुत अच्छा लिख है आपने ............
    इतनी अच्छी गजल पढवाने के लिए धन्यवाद ......
    आगे भी इंतज़ार रहे गा ........

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  27. सुन्दर शब्दोँ को चुन चुनकर
    लाजबाव गजल को दिया आकार ,
    कुवँर कुशमेश जी को है मेरा नमस्कार !
    आपने बहुत ही साफगोई से गजल कही है , बहतरीन है आपकी गजल। आभार जी!

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  28. नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.
    waah!!!
    bahut sundar!

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  29. लाजवाब गज़ल ....दिल को छू गयी हर शेर बेहतरीन्।

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  30. सिर्फ बकरे की हलाली तू अगर ना करता,
    परचमे हिन्द को इस्लाम से जाना जाता.

    .......बहुत सही बात कही।

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  31. नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.
    वल्लाह, क्या शे'र है भाई साब| बहुत खूब|
    दिखावे की गली-गाम............... वाह वाह, क्या बात है| बहुत खूब कुँवर जी|

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  32. अगर कोई व्यक्तित्व हमें पसंद न आये तो आप जैसे बेहतरीन कवियों के लिए, उसको दुबारा न पढना ही काफी है ! कविह्रदय किसी को कष्ट देते नहीं देखे जाते कुसुमेश भाई ! आशा है मेरे कहे को अन्यथा नहीं लेंगे !
    आदर सहित !

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  33. नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.


    बहुत खूब ... क्या ग़ज़ब के शेर निकाले हैं ... ये वाला और अंतिम वाला बहुत पसंद आए ...

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  34. bahuuuuuuut badiya...........
    itnee badiya urdu hai aapkee...........aur bhav .........sona aur suhaga.........

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  35. कुसुमेश जी, मैं तो बस इतना ही कहूंगा बहुत खूब, बहुत खूब।

    ---------
    त्रिया चरित्र : मीनू खरे
    संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।

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  36. उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब,
    तू दिखावे की गली-गाम से जाना जाता
    बहुत खूब....

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  37. सिर्फ बकरे की हलाली तू अगर ना करता,
    परचमे हिन्द को इस्लाम से जाना जाता.

    क्या बात है ....
    जोरदार चोट है ......

    नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.

    सोच रही हूँ हरकीरत 'मासूम'रख ही लूँ .....

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  38. हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,
    और तू अम्न के पैग़ाम से जाना जाता.
    नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.

    ये खूबसूरत और मेआरी शेर
    आपकी उम्दा सोच और नफ़ीस अंदाज़ को
    हम सब तक पहुंचा पाने में कामयाब रहे हैं जनाब
    ग़ज़ल
    मतले से लेकर मक्ते तक
    बहुत बहुत बहुत शानदार बन पडी है
    मुबारकबाद .

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  39. सुन्दर प्रस्तुति
    बहुत - बहुत शुभकामना

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  40. wah saahab bahut khoob.

    नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
    आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.

    bahut hee badhiyaa vyang.kaayal ho gaya hu.

    merey blog tak aakar us par tippanee karne kaa shukriyaa.

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  41. कुंवरजी आपकी रचनाओं की मैं कायल हूँ. आपकी लेखनी को नमन मेरा.

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  42. kunwar ji behad sundar prastuti...aapko abhivadan आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया

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  43. बहुत खूबसूरत और विचारणीय गज़ल ..

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