Merry Christmas
कहाँ हो ईसा-ओ-मरियम तलाश करता हूँ
कुँवर कुसुमेश
ख़िजाँ में खुशनुमां मौसम तलाश करता हूँ,
पनपते ज़ख्म का मरहम तलाश करता हूँ.
बदलता वक़्त तुम्हें दे रहा है आवाज़ें,
कहाँ हो ईसा-ओ-मरियम तलाश करता हूँ.
किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
नज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
ज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
गगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
तमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
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ख़िजाँ=पतझड़ , ईसा-ओ-मरियम=ईसा और मरियम,
अम्नो-प्यार=शांति और प्यार, परचम=ध्वज/झंडा
किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
बहुत खूबसूरत गज़ल ....हर शेर जैसे दिल से निकला हो ..
ख़िजाँ में खुशनुमां मौसम तलाश करता हूँ,
ReplyDeleteपनपते ज़ख्म का मरहम तलाश करता हूँ.
मरहम तो सभी के पास होता है कोई लगाना ही नहीं चाहता है .....
बदलता वक़्त तुम्हें दे रहा है आवाज़ें,
कहाँ हो ईसा-ओ-मरियम तलाश करता हूँ.
इन आवाजों में हमारी भी आवाज़ शामिल है कुसुमेश जी ....
संगम तो पवित्र होता ही है, इसकी तलाश भी कम पाक नहीं.
ReplyDeleteतलाश जारी है तो मंजिल भला दूर कैसे रह सकती है।
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल ।
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
ReplyDeleteतमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
... bahut sundar ... laajawaab !!!
किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
बहुत सुन्दर विचार लिए उम्दा ग़ज़ल।
ज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
ReplyDeleteगगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.
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गजल के सभी शेर बहुत सुन्दर सन्देश दे रहे हैं!
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
ReplyDeleteतमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
इस तलाश में मै भी आपके साथ हूँ सुंदर सन्देश देती रचना बधाई
तमाम धर्म का संगम
ReplyDeleteवाह वाह कुँवर जी, बहुत खूब|
यहाँ भी पधारिएगा
http://samasyapoorti.blogspot.com
खूबसूरत अभिव्यक्ति......... शानदार गजल जिसका प्रत्येक शेर लाजबाव और बढ़िया काफिया का निर्वाह। आभार बावू जी !
ReplyDeleteख़िजाँ में खुशनुमां मौसम तलाश करता हूँ,
ReplyDeleteपनपते ज़ख्म का मरहम तलाश करता हूँ।
सद्भावनाओं की वाहिनी बन कर यह ग़ज़ल अपनी ख़ासियत ख़ुद बयान कर रही है।
इस बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई, कुसुमेश जी।
बहुत ही सुंदर ओर अच्छी गजल जी धन्यवाद
ReplyDeleteज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
ReplyDeleteगगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.
सच में ,
ग़ज़ल का ये शेर ,
ग़ज़ल की अज़मत में इजाफा कर गया
... !!
आपकी दुआओं में
हम सब शामिल हैं..... आमीन .
किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर दिल को छूलेता है..आभार
बेहतरीन ग़ज़ल... धर्म के मर्म को छोटी हुई... क्रिसमस की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteकिसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
शानदार है अमन का पैगाम और क्रिसमस की शाम!! इस तरह होता है निश्छल पैगाम!!
तस्वीर भी संदेश दे रही है, जब बच्चे और भैडे से समान प्रेम होता है तब वह बनती है असल में शान्ति!!
भगवन इसा के जन्मदिन पर इससे बढ़िया सन्देश नहीं हो सकता है...
ReplyDeleteआपकी तलाश के हम सब साथी हैं........बहुत सुन्दर रचना
खूबसूरत प्रेम और एकता का सन्देश . मुझे भी अपने साथ मानिये . सुन्दर रचना .
ReplyDeleteग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
ReplyDeleteतमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
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आदरणीय कुंवर कुसुमेश जी
सादर प्रणाम
वैसे तो सभी धर्मों का एक ही मंतव्य है ..इंसानियत का पाठ पढाना...पर भूल बश हम उस लक्ष्य से कोसों दूर चले गए और हालत इस कदर हैं कि अब हमें अलग- अलग धर्म एक दुसरे के विरोधाभासी लगते हैं ...आपने बहुत संजीदा ढंग से इस गजल में अपनी बात को सामने रखा है ....आप बधाई के पात्र है ...धन्यवाद
रौशन हुई रात वो आसमान से उतर के ज़मीन पे आया
ReplyDeleteरौशन हुई रात मरियम का बेटा मुहब्बत के सन्देश लाया ....
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
ReplyDeleteतमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
वाह क्या बात है !
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
ReplyDeleteतमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
kyaa baat hai sir.hameshaa kee tarah laajawaab prastuti.
बदलता वक़्त तुम्हें दे रहा है आवाज़ें,
ReplyDeleteकहाँ हो ईसा-ओ-मरियम तलाश करता हूँ.
Behtariin gazal kahi hai aapne...meri dili daad kabool karen..
Neeraj
किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
सद्भावनाओं की वाहिनी बन कर यह ग़ज़ल अपनी ख़ासियत ख़ुद बयान कर रही है
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
ReplyDeleteतमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
वाह वाह वाह ………………सुन्दर संदेश से ओत-प्रोत गज़ल का हर शेर लाजवाब है।
अच्छी गज़ल. आभार. क्रिसमस की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना...
ReplyDeleteवाकई आज हम सिर्फ तलाश ही तो कर रहे हैं...
किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
behatareen gazal ka behatareen sher......
किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
वाह! बेहतरीन गजल कुसुमेश जी.....सार्थक सन्देश देती हुई रचना.
बहुत ही अच्छा लिखा है!
ReplyDeleteहमारी ओर से भी क्रिसमस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ओर अच्छी गजल|धन्यवाद|
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
Nice lines to welcome the christmas.
ReplyDeleteक्या कहुॅ आप तो बेमिसाल हैं और उतनी ही बेमिसाल होती है आपकी रचनाएॅं। आपकी रचना पढ़कर आत्मिक शांति मिलती है। आपको और तमाम ब्लागरों को मेरी तरफ से भी शुभकामनाए।
ReplyDeleteक्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
ReplyDeleteआशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल............कुंवर कुसुमेश जी
ReplyDeleteBahut khoob ....Padhkar mazaa aaya. sarthak paigaam deti is rachna ke liye apka aabhar.
ReplyDeleteApko Christmas ki shubhkamnaayen.......
ज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
ReplyDeleteगगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.
वाह! बहुत उम्दा ख्याल हैं...बेहतरीन ग़ज़ल .
"तमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ."
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ और सुन्दर ग़ज़ल..
आभार
"एक लम्हां" पढने ज़रूर आएं ब्लॉग पर..
बहुत ही सुंदर...
ReplyDelete"किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
ReplyDeleteनज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
तमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ."
आदरणीय कुशमेस सर,सादर प्रणाम. आपकी गजलों के विषय बहुत ही गंभीर और सामाजिक सरोकारों को लिए होते हैं. यह गहरे तक मन को छू जाती हैं. मन करता है इसे बार-बार पढूं .इसके माध्यम से आपने जो पैगाम दिया है उसको नमन करता हूँ.आज दिशाहीन समाज में इसी तरह के पथ प्रदर्शन की जरूरत है.मेरी समझ में इस महती भूमिका को निभाने में ,अन्यों के साथ-साथ , आप जैसे रचनाकार की अनदेखी एक भूल के सिवा कुछ नहीं होगी.
कुंअर जी, बहुत ही प्यारी गजल। आपकी यह तलाश पूरी हो, यही कामना है।
ReplyDelete---------
अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
कुसुमेश जी,
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल की रवानगी पढ़ने वालों के साँसों में खुशबू बन कर बस जाती है !
हर शेर तारीफ़ के क़ाबिल है
ज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
गगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.
कलम को चूम लेने का दिल करता है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
ReplyDeleteगगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.
वाह साहब ,ये परचम ढून्धने का बीड़ा आप उठाएं हैं तो हमें साथ आने में खुशी है.
'kisi gareeb ke aansu hi ponchh le daman
ReplyDeletenazar me katra-e-shabnam talash karta hoon'
umda gazal..har sher umda.
bahut-bahut dhanyvad kusumeshji!
ज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
ReplyDeleteगगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.
बहुत उम्दा ग़ज़ल है ,ये शेर तो शायर के जज़्ब ए इंसानियत से लबरेज़ होने का परचम लहराता हुआ सा है
बहुत ख़ूब !
ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
ReplyDeleteतमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.
बहुत खूब!
प्रभावी ,सार्थक सन्देश देती गजल ....आपको शुभकामना
ReplyDeleteज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम,
ReplyDeleteगगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ....
निःशब्द हूँ ... मुकम्मल ग़ज़ल है ... बहुत ही लाजवाब ...