Wednesday, June 13, 2012

चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा............................



कुँवर कुसुमेश 

लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
वक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.

चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.

कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
है नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर.

आज के साइंस दानों का है दावा,
कल बसेगी एक दुनिया आसमाँ पर.

कशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
नाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.

है 'कुँवर' मुश्किल मगर उम्मीद भी है,
कामयाबी पाऊँगा हर इम्तिहाँ पर.
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Monday, June 4, 2012

विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे




कुँवर कुसुमेश 

पर्यावरण बनाइये,आप प्रदूषण मुक्त.
हिल मिल करके कीजिये,सब प्रयास संयुक्त.

कभी कहीं भू-स्खलन,कभी कहीं भूचाल.
दूषित पर्यावरण से ,जन-जीवन बेहाल.

सुखमय वातावरण हो,हो आमोद-प्रमोद.
हरी-भरी दिखती रहे,सदा प्रकृति की गोद.

दूषित पर्यावरण है,आप मनायें खैर.
जमा चुका है पैर यूँ,ज्यूँ अंगद के पैर.

सारी दैवी आपदा,के तुम जिम्मेदार.
पहले मनमानी किया,लेकिन अब लाचार.

वन संरक्षण हेतु लो,सामूहिक संकल्प.
तब शायद कुछ हो सके,समय बचा है अल्प.
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