Friday, May 27, 2011


 तारों के पीछे

कुँवर कुसुमेश 

छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.

मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
सुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,

सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
खड़ी है मौत बीमारों के पीछे.

खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.

हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
यही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.

तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
चला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
  
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   शै=चीज़,  दीदार=दर्शन, 
     सुकूने-दिल=दिल का सुकून.

Saturday, May 14, 2011


हिफ़ाज़त की नज़र से जो जगह महफ़ूज़ थी कल तक


कुँवर कुसुमेश 

मसर्रत के लिबासों में छिपे वल्लाह ग़म निकले,
किताबे-ज़िंदगी में तह-ब-तह रंजो-अलम निकले .

गवाही के लिए तैयार रहना चाँद तारों तुम,
कि चेहरे पे लिए चेहरा हज़ारो मुहतरम निकले.

हिफ़ाज़त की नज़र से जो जगह महफ़ूज़ थी कल तक.
उसी मंदिर ,उसी मस्जिद में रक्खे आज बम निकले.

जिसे अल्लाह के बन्दे इबादातगाह कहते थे,
फ़सादों की जड़े लेकर वही दैरो-हरम निकले.

अदब में भी बड़ी बू-ए-सियासत आ गई साहब,
कहें सच तो 'कुँवर' दो-चार ही अहले-क़लम निकले.
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मसर्रत=ख़ुशी, दैरो-हरम=मंदिर-मस्जिद, अदब=साहित्य.
बू-ए-सियासत=राजनीति की बू, अहले-क़लम=लिखने वाले.

Tuesday, May 3, 2011


जनसंख्या बढ़ती गई

कुँवर कुसुमेश

जनसंख्या बढ़ती गई,यूँ ही बेतरतीब.
तो मानव को अन्न-जल,होगा नहीं नसीब.

जनसंख्या की वृद्धि के,निकले ये परिणाम.
जीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम.

पैदा होते प्रति मिनट,नित बच्चे तैतीस.
विषम परिस्थति हो गई,क्या होगा हे ईश. 

फुटपाथों पर सो रहे,लाखों भूखे पेट.
क़िस्मत करने पर तुली,इनका मटिया-मेट. 

जनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
कैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल.

बढ़ते जाते आदमी,सीमित मगर ज़मीन.
अन्न बढ़ायें किस तरह,बेचारे ग्रामीण ?
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