Thursday, October 30, 2014

काला धन पे शोर शराबा है बहुत.................



वो भी अमृत-सा नज़र आयेगा जो विष होगा। 

हरिक जिरह पे कभी दैट कभी दिस होगा। 

मसला-ए-काला धन पे शोर शराबा है बहुत,

अन्त में देखना सब टाँय टाँय फिश होगा। 

-कुँवर कुसुमेश

Saturday, October 25, 2014

मेरे दोहे ..............................

शब्द प्रवाह साहित्य मंच,उज्जैन की पत्रिका "शब्द प्रवाह" के वार्षिक काव्य विशेषांक,अंक 22-23 में पृष्ठ 56 पर प्रकाशित मेरे दोहे :-


-कुँवर कुसुमेश

Wednesday, October 22, 2014

रौशनी घर घर बहुत है..............................


दीपावली की मुबारकबाद के साथ एक ताज़ा ग़ज़ल 

-कुँवर कुसुमेश 

यक़ीनन रौशनी घर घर बहुत है। 
उजालों में भी हाँ, तेवर बहुत है। 

अँधेरा दूर करना है तो झांको,
अँधेरा आपके अंदर बहुत है। 

बुराई से निपटने के लिए तो,
अकेला प्रेम का अक्षर बहुत है।

तुम्हें विश्वास हो अथवा नहीं हो, 
ये दुनिया वाक़ई सुन्दर बहुत है। 

भटकने लग गया है दिल तुम्हारा,
ये दिल लगता है यायावर बहुत है। 

"कुँवर" मक्ते पे आ करके तो ठहरो,
कि तुमने कह दिया खुलकर बहुत है। 
*****
शब्दार्थ:-यायावर-भटकने वाला,

अर्कान : मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन 
वज़्न :     I S S S    I S S S    I S S 
नमूना बहर : तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ 
बहर का नाम:बहरे-हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़ 

Monday, October 20, 2014

शामियाना........................


बदायूँ (उ.प्र.) से प्रकाशित 240 पृष्ठ का ताज़ा तरीन,काव्य संग्रह,"शामियाना" में पृष्ठ-107 पर मेरी ग़ज़ल। 


इसके संपादक श्री अशोक खुराना जी शामियाना की बुक सीरीज़ प्रकाशित कर रहे हैं। शामियाना शीर्षक पर सैकड़ों रचनायें हर अंक में होना ही इसकी विशेषता है।


Saturday, October 18, 2014

कालाजार............


आज के अखबार से पता चला की इबोला के बाद फिर एक नई बीमारी "
कालाजार" आ गई है।यह फ्लैबाटॉमस अर्जेंटाइप्स नामक मक्खी के 
काटने से फैल रही है। अब इससे निपटिये :-

नई बिमारी,नाम है,इसका कालाजार। 

इससे लड़ने के लिए,हो जाओ तैयार।।

-कुँवर कुसुमेश

Friday, October 17, 2014

मेरी ग़ज़लें

कोटा (राजस्थान) की पत्रिका,दृष्टिकोण, के ताज़ा अंक-15 में मेरी 

ग़ज़लें,मेरे ग़ज़ल संग्रह की चर्चा एवं चित्र सहित प्रकाशित


-कुँवर कुसुमेश

Thursday, October 16, 2014

हुदहुद के तेवर................................



लग रहा हुदहुद के तेवर कुछ तो ढीले पड़ गए। 

थी अकड़ जिसमें बहुत वो भी लचीले पड़ गए। 

आज थोड़ी गुनगुनी-सी धूप आयी है नज़र,

चेहरा-ए हुदहुद के देखो रंग पीले पड़ गए।।

-कुँवर कुसुमेश

Thursday, October 9, 2014

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस................


माना की हालात कठिन हैं,पग पग पर मजबूरी है। 

मन को रक्खो शान्त,तुम्हारी इच्छा भले अधूरी है।

सीज़ोफ्रेनिक मत बन जाना,यह दिमाग का रोग जटिल,  

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इतना अहद ज़रूरी है। 

-कुँवर कुसुमेश 

Wednesday, October 1, 2014

गांधी जी.................


छोड़ गये तुम सब कुछ जैसा गांधी जी। 

आज नहीं है वो सब वैसा गांधी जी।

मानवता को कुचल दिया है पैसे ने,

सब से बढ़ करके है पैसा गांधी जी।

-कुँवर कुसुमेश