आदमी फिर नये सफ़र पर है
कुँवर कुसुमेश
लो नया आफ़ताब सर पर है,
आदमी फिर नये सफ़र पर है.
तुमको कितने क़रीब से देखे,
ये नये साल की नज़र पर है.
लोग निकले बधाइयाँ देने ,
बात ठहरी अगर-मगर पर है.
कितनी ऊंची उड़ान ले लेगा ,
ये परिंदों के बालोपर पर है.
लोग पत्थर लिए नज़र आये,
कोई फल-फूल क्या शजर पर है?
सोच इन्सान की बदल देना,
एक फ़नकार के हुनर पर है.
भूल जाये भले ही ये दुनिया,
पर भरोसा हमें 'कुँवर' पर है.
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बालोपर-सामर्थ्य, शजर-पेड़