Friday, December 31, 2010

आदमी फिर नये सफ़र पर है
कुँवर कुसुमेश

लो नया आफ़ताब सर पर है,
आदमी फिर नये सफ़र पर है.

तुमको कितने क़रीब से देखे,
ये नये साल की  नज़र पर है.

लोग निकले  बधाइयाँ देने ,
बात ठहरी अगर-मगर पर है.

कितनी ऊंची उड़ान ले लेगा ,
ये परिंदों के बालोपर पर है.

लोग पत्थर लिए नज़र आये,
कोई फल-फूल क्या शजर पर है?

सोच इन्सान की बदल देना,
एक फ़नकार के हुनर पर है.

भूल जाये भले ही ये दुनिया,
पर भरोसा हमें 'कुँवर' पर है.
*******
बालोपर-सामर्थ्य, शजर-पेड़ 

आदमी फिर नये सफ़र पर है


कुँवर कुसुमेश

लो नया आफ़ताब सर पर है,

आदमी फिर नये सफ़र पर है.

तुमको कितने क़रीब से देखे,
ये नये साल की  नज़र पर है.

लोग निकले  बधाइयाँ देने ,
बात ठहरी अगर-मगर पर है.

कितनी ऊंची उड़ान ले लेगा ,
ये परिंदों के बालोपर पर है.

लोग पत्थर लिए नज़र आये,
कोई फल-फूल क्या शजर पर है?

सोच इन्सान की बदल देना,
एक फ़नकार के हुनर पर है.

भूल जाये भले ही ये दुनिया,
पर भरोसा हमें 'कुँवर' पर है.

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बालोपर-सामर्थ्य, शजर-पेड़ 

Tuesday, December 28, 2010

तुमसे मिल जायेगी कुछ इम्दाद पहली जनवरी

कुँवर कुसुमेश 

आ गई फिर घूम फिर कर याद पहली जनवरी,
तीन सौ पैंसठ दिनों के बाद पहली जनवरी.

ग़ैर हो,अपना हो,दुश्मन हो या कोई दोस्त हो,
इस बरस कोई न हो नाशाद पहली जनवरी.

अब किसी सूरत परिंदों के कतर पायें न पर,
लोग कह देंगे तुझे सैय्याद पहली जनवरी.

तुम सुनोगे गर नहीं तो कौन सुनने आयेगा,
अब कोई सुनता नहीं फ़रियाद पहली जनवरी.

हम भी इस उम्मीद में आँखें बिछाये हैं 'कुँवर',
तुमसे मिल जायेगी कुछ इम्दाद पहली जनवरी.

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 नाशाद-दुखी, इम्दाद - मदद  

Friday, December 24, 2010

Merry Christmas

कहाँ हो ईसा-ओ-मरियम तलाश करता हूँ

 कुँवर कुसुमेश 

ख़िजाँ  में खुशनुमां मौसम तलाश करता हूँ,
पनपते ज़ख्म का मरहम तलाश करता हूँ.

बदलता वक़्त तुम्हें दे रहा है आवाज़ें,
कहाँ हो ईसा-ओ-मरियम तलाश करता हूँ.

किसी ग़रीब के आँसू ही पोछ लें दामन,
नज़र में क़तरा-ए-शबनम तलाश कारता हूँ.

ज़माने भर को जो दे अम्नो-प्यार का पैग़ाम, 
गगन में फिर वही परचम तलाश करता हूँ.

ग़ज़ल ग़ज़ल में 'कुँवर' एकता की बात लिए,
तमाम धर्म का संगम तलाश करता हूँ.

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ख़िजाँ=पतझड़ ,  ईसा-ओ-मरियम=ईसा और मरियम,
अम्नो-प्यार=शांति और प्यार, परचम=ध्वज/झंडा  
 

Tuesday, December 21, 2010

 पीपल पर तीन कुण्डलियाँ 

कुँवर कुसुमेश 

   -१-  
पीपल,पाकड़,नीम,वट,जामुन ,गूलर,आम.
आते हैं ये पेड़ सब,औषधियों के काम.
औषधियों के काम पूर्णतः ये उपयोगी,
इनके सेवन से निरोग होते हैं रोगी.
आजीवन निस्स्वार्थ नियंत्रित करते जल-थल.
पेड़ों में अति प्रमुख कहा जाता है पीपल.
 *****
  -२-
पीपल की उत्पत्ति से, जुड़ी बात ये खास.
कहते हैं इस वृक्ष पर, करते देव निवास.
करते देव निवास अतः ये पूजे जाते.
प्राणवायु दे अधिक प्रदूषण दूर भागते.
पक्षी को आवास,छाँव पथिकों को शीतल-
देते हैं अविराम, अतः पूजित हैं पीपल.
  *****
   -३-  
वायु प्रदूषण को दिया,जिसने तुरत खदेड़.
लुप्त हो रहे आजकल,वे पीपल के पेड़.
वे पीपल के पेड़ ऑक्सीजन दें ज्यादा.
दूर करेंगे सतत प्रदूषण इनका वादा.
मित्र,करो पीपल के पेड़ों का संरक्षण.
अगर चाहते आप, दूर हो वायु प्रदूषण.
 *****

Wednesday, December 15, 2010

उम्र भर चलना संभलकर ज़िन्दगी में

 कुँवर कुसुमेश 

देखते जाना बराबर ज़िन्दगी में,
क्या लगा कैसा कहाँ पर ज़िन्दगी में.

दौरे-हाज़िर में हरिश्चंद वो हुआ जो,
झूठ बोला है सरासर ज़िन्दगी में.

दुश्मनी इन्सान की फ़ितरत में शामिल,
दोस्ती किसको मयस्सर ज़िन्दगी में.

ये मुसीबत चल के ख़ुद आई नहीं है,
तुम इसे लाये हो ढोकर ज़िन्दगी में.

एक पल को ही दिला पाता है राहत,
हुस्ने-जानां का तसव्वर ज़िन्दगी में.

हाँ,किताबों में 'कुँवर'सच ही लिखा है,
उम्र भर चलना संभलकर ज़िन्दगी में.
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दौरेहाज़िर-वर्तमान समय 
हुस्नेजानां-महबूब का सौन्दर्य 

Saturday, December 11, 2010

आज मीठा हुआ ज़हर देखो

    कुँवर कुसुमेश     


सुर्ख़ियों में है ये ख़बर देखो,
आह भरता हुआ शहर देखो.

घर में सांकल चढ़ा के बैठी है,
ज़िंदगी के दिलों में डर देखो.

वक़्त की कैंचियाँ परिंदों के,
काटने पर तुली हैं पर देखो.

आज उनकी ज़ुबान शीरी है,
आज मीठा हुआ ज़हर देखो.

इक बड़ी बात ले के निकली है,
एक छोटी-सी ये बहर देखो.

इस सदी का यही तो हासिल है,
क़िस्मतों का लिखा 'कुँवर'देखो.

Sunday, December 5, 2010

 उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब
                                                                           
                                                      कुँवर कुसुमेश 


ज़ुल्म को शोरिशे-हंगाम से जाना जाता,
आदमी  पैकरे-अन्दाम से जाना जाता.

सिर्फ बकरे की हलाली तू अगर ना करता,
परचमे हिन्द को इस्लाम से जाना जाता.

नाम रखने से ही मासूम कोई होता तो,
आज हर शख्स इसी नाम से जाना जाता.

हैं तेरे लोग ही आतंक मचाने वाले,
और तू अम्न के पैग़ाम से जाना जाता.

उठ रहा है तेरे चेहरे से दिखावे का नक़ाब,
तू दिखावे की गली-गाम से जाना जाता.

इंडिया ने 'कुँवर'इतिहास रचा रक्खा है,
जो किया जिसने उसी काम से जाना जाता.
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शोरिशे हंगाम - काल का उपद्रव ,पैकरेअन्दाम-शरीर की आकृति 

Wednesday, December 1, 2010

नया माहौल गरमाने लगा है

कुँवर कुसुमेश

चलो ये साल भी जाने लगा है,
नया माहौल गरमाने लगा है.

हमेशा की तरह इस बार कोई,
यक़ीनन दिल को भरमाने लगा है.

उसे माशूक़ कहना क्या बुरा है,
जो मुझको देख शरमाने लगा है.

तमाशा-ए-सुकूने-दिल तो देखो,
कि मन ही मन में बतियाने लगा है.

मसर्रत के दिनों की पा के आहट,
ग़में-दौरां भी घबराने लगा है.

करो बीमार की तीमारदारी,
कुँवर' गश खाके गिर जाने लगा है. 
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तमाशा-ए-सुकूने-दिल - दिल की ख़ामोशी का तमाशा 
मसर्रत-ख़ुशी, तीमारदारी-बीमार की सेवा 

Thursday, November 25, 2010

पेड़ों पे भरोसा रख

कुँवर कुसुमेश

ख़ुद पर न सही लेकिन पेड़ों पे भरोसा रख,
नायाब ज़मीं पर ये अल्लाह का तोहफा रख.

माना कि ग़रीबी में मुश्किल है बाग़बानी,
गमले में मगर छोटा तुलसी का ही पौधा रख.

ओज़ोन की छतरी का लिल्लाह दरक जाना,
कहता है नहीं माना तो झेल ये ख़तरा रख..

क्या खाक बनाया है इन्सां को मेरे मौला ,
थोड़ी तो समझ सर के अन्दर मेरे मौला रख.

मत काटना पेड़ों को खुशियों के तमन्नाई ,
दुनिया के लिए कुछ तो खुशियों की तमन्ना रख.

मालिक से ' कुँवर ' कोई भी बात नहीं छुपती,
इन्सान से रखना है तो शान से पर्दा रख.


Thursday, November 18, 2010

पैग़म्बरे - इस्लाम से मतलब

कुँवर कुसुमेश

किसी को इब्ने-मरियम से,किसी को राम से मतलब.
किसी को दोस्तों, पैग़म्बरे - इस्लाम से मतलब.

हमारे मुल्क के नेताओं को मतलब है वोटों से,
न बढ़ती क़ीमतों से है, न बढ़ते दाम से मतलब.

उधर बढ़ती हुई आतंकवादी ताक़तों को तो-
निशाना साधना या सुर्खिये-कोहराम से मतलब.

हमारे देश की चलिए नई पीढ़ी को ले लीजे,
इन्हें है बरहना माशूक़,छज्जा,बाम से मतलब. 

कई अच्छे सुख़नवर हैं,क़लम में जिनकी ताक़त है,
उन्हें दारू से मतलब या गुलो-गुलफ़ाम से मतलब.

' कुँवर ' ऐसा हमें लगने लगा है अब कि मौला को,
फ़क़त दैरो - हरम में बैठ के आराम से मतलब.
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इब्नेमरियम-मरियम का बेटा/ईसा मसीह,पैग़म्बरेइस्लाम - इस्लाम का ईशदूत,
सुर्खियेकोहराम-हाहाकार का आलम,बरहना-निर्वस्त्र, बाम-छत,सुखनवर-शायर, गुल-फूल,
गुलफ़ाम-फूल जैसी कोमल शरीर वाली,फ़क़त-केवल, दैरोहरम-मंदिर-मस्जिद  

Sunday, November 14, 2010

समन्दर भी डराना जानता है

कुँवर कुसुमेश

धरातल  डगमगाना  जानता है,
फ़लक ग़ुस्सा दिखाना जानता है.

सुनामी से चला हमको पता ये,
समन्दर भी डराना जानता है.

बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
ख़ुदा भी आज़माना जानता है.

समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
परिंदा फड़फड़ाना जानता है.

मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है. 
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क़फ़स-पिंजरा , खौफे-ख़ुदा -अल्लाह से डर

Sunday, November 7, 2010

                    हाथों में आपके है बनायें या बिगाड़ें / उतरेगा फ़रिश्ता न कोई आसमान से


                                कुँवर कुसुमेश 

आकर चले गए तमाम इस जहान से,
इठला रहा है वक़्त मगर इत्मिनान से.

ग़ैरों के घर की आग बुझाने में जो लगा,
उठने लगा धुवाँ है उसी के मकान से. 

हैरत है देख देख के खंजर की तश्नगी 
अब तो खुदा के वास्ते निकले न म्यान से.

हाथों में आपके है बनायें या बिगाड़ें,
उतरेगा फ़रिश्ता न कोई आसमान से.

ये वक़्त है बेइंतिहा ताक़त है इसके पास,
लड़ना पड़ेगा फिर भी इसी पहलवान से,

माना क़दम क़दम पे हैं दुश्वारियाँ 'कुँवर',
डरना नहीं है फिर भी किसी इम्तहान से.
 ........

Tuesday, October 26, 2010


हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो / कर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ
                                    
                                  कुँवर कुसुमेश 

थरथराने लगा आशियाँ - आशियाँ,
फिर डराने लगीं बिजलियाँ-बिजलियाँ.

कोई अखबार देखो किसी दिन भी तुम,
दहशतों में सनी सुर्खियाँ-सुर्खियाँ.

फ़ासला दिन-ब-दिन रोज़ बढ़ता गया,
आपके और मेरे दरमियाँ-दरमियाँ.

पास में है समंदर सभी को पता,
फिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ.

हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
कर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.

साफ़गोई है खतरे से ख़ाली नहीं,
कल मिलेंगी 'कुँवर' धमकियाँ-धमकियाँ.
.............

Saturday, October 16, 2010

अँधेरो से कोई भी डरने न पाए / अँधेरो पे कब्ज़ा रहे रोशनी का

कुँवर कुसुमेश
ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
मगर कम न हो हौसला आदमी का.

अँधेरो से कोई भी डरने न पाए,
अँधेरो पे कब्ज़ा रहे रोशनी का.

समझने को तैयार कोई नहीं है,
किसे फ़र्क समझाऊँ नेकी-बदी का.

अदालत में बीसों बरस केस चलते,
मेयार है मुंसिफ़ो-मुंसिफ़ी का.

ज़रुरत की चीज़ें मुहैया हैं लेकिन,
उन्हें शौक़ बढ़ता गया लक्ज़री का.

सफ़र ज़िन्दगी का ये तय हो सकेगा,
सहारा 'कुँवर'मिल गया जो नबी का.
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शब्दार्थ : मेयार - स्तर

Thursday, October 7, 2010

विरासत को बचाना चाहते हो
कुँवर कुसुमेश

विरासत को बचाना चाहते हो ,
कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.

तुम्हारी सोंच पे सब कुछ टिका है,
कि आख़िर क्या कराना चाहते हो.

रियलिटी शो के ज़रिये चैनलों में,
बदन नंगा दिखाना चाहते हो.

अरे ओ पश्चिमी तहज़ीब वालों ,
ये कैसा गुल खिलाना चाहते हो.

हमें पहचान दी शाइस्तगी ने ,
इसी को तुम गँवाना चाहते हो.

'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
अगर अच्छा बनाना चाहते हो.

Thursday, July 22, 2010

Kunwar Kusumesh



















नाम :कुँवर'कुसुमेश', ( कवि)
शिक्षा : एम. एससी.(गणित)पता : 4/738 विकास नगर , लखनऊ -226022
जन्म-तिथि : 03.02.1950
सम्प्रति : मण्डल प्रबंधक (सेवानिवृत्त)
संपर्क : 9415518546(मो)
ई-मेल : kunwar.kusumesh@gmail.com
प्रकाशन /प्रसारण : लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित
अँधेरे भी , उजाले भी(ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित, रु 75/-
पर्यावरणीय दोहे (दोहा संग्रह) प्रकाशित, रु 40/-
कुछ न हासिल हुआ(ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित, रु 100/-
सरल अरूज़ , मूल्य-200/-
महत्वपूर्ण संकलनों तथा पत्र-पत्रिकओं में रचनाएं प्रकाशित


स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
एक बरस में बढ़ती जाती है मंहगाई सौ सौ बार,
मंहगाई ने जी भर भर के ली अंगड़ाई सौ सौ बार |
जैसा भी है देश हमारा है , हम सब को प्यारा है ,
आज़ादी की वर्षगांठ पर तुम्हें बधाई सौ सौ बार ||

कुँवर कुसुमेश
09415518546

आजकल किसको क्या कहा जाए.......

कुँवर कुसुमेश

दौरे- मुश्किल से जो बचा जाये,
मुश्किलों में वही फँसा जाये .

ये उलट - फेर का ज़माना है,
आजकल किसको क्या कहा जाये.

वक़्त आँखे तरेर लेता है ,
कोई हल्का-सा मुस्कुरा जाये.


खुद को निर्दोष प्रूफ कर देगा,
बस इलेक्शन का दौर आ जाये.


तब तलक काम है निपट जाता,
जब तलक कोई सूचना जाये.


है 'कुँवर' इस उम्मीद पर मौला,

ध्यान तुझको मेरा भी आ जाये.







मिला है आपसे भी सिर्फ धोखा.......
कुँवर कुसुमेश