Sunday, December 2, 2012



-कुँवर कुसुमेश 


कुछ दिन ही इस साल के,सिर्फ रह गए शेष।

मँहगाई  हावी रही,बदल बदल कर भेष।।

बदल बदल कर भेष,जिंदगी नरक बना दी।

और गैस की किल्लत,ने तो धूम मचा दी।।

इसके कारण हुआ, है जीना नामुमकिन ही।

झेलो जी यह साल,बचे हैं अब कुछ दिन ही।।  

*****

Monday, November 12, 2012

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें



वो मुफलिसी में था तैयार ख़ुदकुशी के लिए।

कि उसका रो रहा बच्चा है फुलझड़ी के लिए।

बहुत गरीब था  वो ,कुछ नहीं खरीद सका,

बस अपने दिल को जलाया है रौशनी के लिए।

-कुँवर कुसुमेश 

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

Friday, November 2, 2012

उफ़......................



-कुँवर कुसुमेश 


उधर अपनी सरकार मंहगाई वाली .
इधर पास आने लगी  है दिवाली .

मियाँ , गैस ने तो नरक कर दिया है,
कई घर में देखो सिलिंडर है खाली .

समझ में मेरे आज तक है न आया,
कि ये किस जनम की कसर है निकाली . 

यही होगा इस देश में जब चुनोगे-
इलेक्शन में हर बार गुंडे-मवाली .

'कुँवर' की दुआ आप सब के लिए है,
रहे घर में बरकत,मिटे तंगहाली .
*****

Wednesday, October 17, 2012

तस्वीरें




कुँवर कुसुमेश 

दिखाने को तो दिखलाती रही दीवार तस्वीरें .
मगर तस्वीर लगती हैं तो बस दो-चार तस्वीरें .

पकड़ जायेगा मुजरिम छुप न पायेगा बहुत दिन तक,
बराबर छापता जाये अगर अखबार तस्वीरें .

हमारी सभ्यता को बन के दीमक चाटने वाली,
बदन दिखला रहीं खुलकर सरे-बाज़ार तस्वीरें .

घरों से देवताओं- देवियों के चित्र ग़ायब हैं,
घरों में अब नज़र आती हैं कुछ बेकार तस्वीरें .

शहीदों की वो तस्वीरें जिन्हें हम सर झुकाते हैं,
समय की भेंट चढ़ जायें न वो दमदार तस्वीरें .

पड़े जिस पर नज़र तो फख्र से सर और ऊँचा हो,
करो ऐसी 'कुँवर'  हर मोड़ पर तैयार तस्वीरें .
*****


Wednesday, October 10, 2012

पुस्तक परिचय


                                                
पुस्तक का नाम        :   मेरे भीतर महक रहा है(ग़ज़ल संग्रह)        ग़ज़लकार : मनोज अबोध 
प्रकाशक                   : हिंदी साहित्य निकेतन,बिजनौर                    मूल्य  :150/-
प्रकाशन वर्ष             :                 2012                                      पृष्ठ   :96

पिछले लगभग तीन दशकों के दौरान हिंदी में ग़ज़ल के कई संग्रह नज़र से गुज़रे।हिंदी में ग़ज़ल कहने वालों की संख्या में न सिर्फ ज़बरदस्त वृद्धि हुई है बल्कि बहुत अच्छे ग़ज़ल संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं, और हो रहे हैं। इसी श्रृंखला में जनाब मनोज अबोध जी का ताज़ा-तरीन ग़ज़ल संग्रह,मेरे भीतर महक रहा है, मेरे हाथों में है।यह इनका दूसरा ग़ज़ल संग्रह है।वर्ष 2000 में प्रकाशित इनका पहला ग़ज़ल संग्रह,गुलमुहर की छाँव में,काव्य जगत में हाथों-हाथ लिया गया।
प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह,मेरे भीतर महक रहा है, में मनोज जी ने ग़ज़ल के रिवायती अंदाज़ को बरक़रार रखते हुए रूमानी अशआर कहे हैं, तो मौजूदा हालात पर भी क़लम बखूबी चलाई है।
रूमानी अंदाज़ में शेर कहते हुए मनोज कहते हैं कि :-
कुछ वो पागल है,कुछ दीवाना भी।
उसको जाना मगर न जाना भी।
आज पलकों पे होठ भी रख दो,
आज मौसम है कुछ सुहाना भी।- - - - - -  पृष्ठ-27
रूमानी अशआर कहते वक़्त मनोज अबोध की सादगी भी क़ाबिले-तारीफ है।देखिये :-
प्रीत जब बेहिसाब कर डाली।
जिंदगी कामयाब कर डाली।
बिन तुम्हारे जिया नहीं जाता,
तुमने आदत खराब कर डाली। - - - - - - -पृष्ठ-43
मुश्किलों से न घबराते हुए अपना आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए ग़ज़लकार  कहता है कि :-
तमाम मुश्किलों के बाद भी बचेगा ही।
तेरे नसीब में जो है वो फिर मिलेगा ही।---पृष्ठ-26
हालाँकि एक शेर में आगाह भी करते हुए चलते है कि :-
फूल ही फूल हों मुमकिन है भला कैसे ये ?
वक़्त के हाथ में तलवार भी हो सकती है।- -पृष्ठ-93
बहरे-मुतदारिक सालिम में कही गई ग़ज़ल-32 के दूसरे शेर का मिसरा-ए-सानी "बिटिया जब से बड़ी हो गई" ताक़ीदे-लफ्ज़ी की गिरफ़्त में है और हल्की-सी तब्दीली मांग रहा है।देखिये :- 
छाँव क़द से बड़ी हो गई ।
एक उलझन खड़ी हो गई।
फूल घर में बिखरने लगे
बिटिया जब से बड़ी हो गई। - - - -  - - - - पृष्ठ-50
इसे यूँ किया जा सकता है:-
फूल घर में बिखरने लगे
जब से बिटिया बड़ी हो गई। 
संग्रह की छपाई बेहतरीन,मुख पृष्ठ आकर्षक और पुस्तक संग्रहणीय है। मनोज अबोध जी के अशआर पढ़ते ही ज़ेहन नशीन हो जाते हैं। मैं दुआगो हूँ कि शायरी के इस खूबसूरत सफ़र पर मनोज जी ताउम्र गामज़न रहें और इसी तरह अपने उम्दा अशआर से अपने चाहने वालों को मह्ज़ूज़ करते रहें।

कुँवर कुसुमेश 
4/738 विकास नगर,लखनऊ-226022
मोबा:09415518546

Monday, October 1, 2012

गाँधी जी


छोड़ गये तुम सब कुछ जैसा गाँधी जी.
  
आज नहीं है वो सब वैसा गाँधी जी.

मानवता को कुचल दिया है पैसे ने,

सब से बढ़ करके है पैसा गाँधी जी.

                         -कुँवर कुसुमेश 

Thursday, September 13, 2012

दिखावा सब करते हैं....................




हिंदी हिंदी चीखता,रहता पूरा देश.

हिंदीमय अब तक मगर,हुआ नहीं परिवेश.

हुआ नहीं परिवेश,दिखावा सब करते हैं.

अंग्रेजी पर लोग ,न जाने क्यों मरते हैं.

निज भाषा सम्मान,करो मत चिंदी चिंदी.

कभी न वरना माफ़,करेगी तुमको हिंदी.
                                  -कुँवर कुसुमेश
*****
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाये 
---------------------------------
चिंदी चिंदी=टुकड़े टुकड़े 

Friday, August 31, 2012

चल रहे हैं लोग जलती आग पर........



कुँवर कुसुमेश 

चल रहे हैं लोग जलती आग पर.
बेसुरे भी लग रहे हैं राग पर.

नज़्म अच्छी या बुरी जैसी भी हो,
वाह,कहने का चलन है ब्लॉग पर.

आदमी पर मत कभी करिये यक़ीं,
आप कर लीजे भरोसा नाग पर.

दुश्मनी का खैरमक़दम हो रहा,
और डाका प्यार पर,अनुराग पर.

भ्रष्ट नेता आज हिन्दुस्तान के,
ख़ुश बहुत दामन के अपने दाग पर.

दूसरों के काम तो आओ कभी,
है 'कुँवर' हमको भरोसा त्याग पर.
*****
 खैरमक़दम=स्वागत   

Sunday, August 19, 2012

दुनिया ख़ुशी से झूम रही है मना ले ईद



देखा है आसमान पे जबसे हिलाले-ईद.

दुनिया ख़ुशी से झूम रही है मना ले ईद.

दिल को लुभा लिया है मेरे चाँद-रात ने,

आ जा कि रूह रूह में तू भी बसा ले ईद.
                            
                              -कुँवर कुसुमेश 

 हिलाले-ईद.=ईद का चाँद 

Tuesday, August 14, 2012

हम-तुम पीटें ढोल,चलो फिर आज़ादी के.................



कुँवर कुसुमेश 

आज़ादी के हो गये,पूरे पैसठ साल.

इतने वर्षों बाद भी,जनता है बेहाल.

जनता है बेहाल,कमर तोड़े मँहगाई.

नेताओं ने मगर,करी है खूब कमाई.

नेता ज़िम्मेदार,देश की बरबादी के.

हम-तुम पीटें ढोल,चलो फिर आज़ादी के.
*****

Tuesday, August 7, 2012

उनको थी राजनीति से हरवक्त एलर्जी.............



मैं तो बड़ा निराश हूँ अन्ना की टीम से.
इस दर्जा पलट जायेंगे सोंचा कभी न था.
उनको थी राजनीति से हरवक्त एलर्जी.
उनकी नज़र में काम ये अच्छा कभी न था.
                                     -कुँवर कुसुमेश 

Friday, July 27, 2012

तुलसी रस का व्याधि में सर्वोत्तम उपयोग




कुँवर कुसुमेश 

ज्वर-जुकाम-कृमि-नासिका,या हो खासी रोग.

तुलसी रस का व्याधि में,सर्वोत्तम उपयोग.

सर्वोत्तम उपयोग,बिना पैसे घर चंगा.

निर्धनता भी डाल न पाए कोई अड़ंगा.

क्यारी या गमले में तुलसी रखें लगाकर.

पास न आने दें जुकाम-हिचकी-खासी-ज्वर.

Wednesday, July 18, 2012

सुपर स्टार राजेश खन्ना को दिली और भाव-भीनी श्रद्धांजलि :-


उम्र भर जिसमें रहा था वो ठिकाना छोड़ के.
चल दिया पंछी यहाँ का आबो-दाना छोड़ के.
क्या नहीं था पास जब तक तुम हमारे साथ थे,
है अभी भी पास सब कुछ मुस्कुराना छोड़ के.
                                        -कुँवर कुसुमेश 


                                             

Wednesday, June 13, 2012

चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा............................



कुँवर कुसुमेश 

लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
वक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.

चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.

कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
है नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर.

आज के साइंस दानों का है दावा,
कल बसेगी एक दुनिया आसमाँ पर.

कशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
नाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.

है 'कुँवर' मुश्किल मगर उम्मीद भी है,
कामयाबी पाऊँगा हर इम्तिहाँ पर.
*****

Monday, June 4, 2012

विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे




कुँवर कुसुमेश 

पर्यावरण बनाइये,आप प्रदूषण मुक्त.
हिल मिल करके कीजिये,सब प्रयास संयुक्त.

कभी कहीं भू-स्खलन,कभी कहीं भूचाल.
दूषित पर्यावरण से ,जन-जीवन बेहाल.

सुखमय वातावरण हो,हो आमोद-प्रमोद.
हरी-भरी दिखती रहे,सदा प्रकृति की गोद.

दूषित पर्यावरण है,आप मनायें खैर.
जमा चुका है पैर यूँ,ज्यूँ अंगद के पैर.

सारी दैवी आपदा,के तुम जिम्मेदार.
पहले मनमानी किया,लेकिन अब लाचार.

वन संरक्षण हेतु लो,सामूहिक संकल्प.
तब शायद कुछ हो सके,समय बचा है अल्प.
*****

Thursday, May 17, 2012

वैध समलैंगिकता हुई.........................



कुँवर कुसुमेश 

आत्मा से कभी पूछ ले.
कौन-सी राह पर तू चले.

वैध समलैंगिकता हुई,
उफ़ अदालत के ये फैसले.

पश्चिमी तर्ज़ पर देश में,
हल हुए हैं सभी मसअले

ठोकरें-ठोकरें हर क़दम,
ज़िंदगी के यही मर्हले.

आग  ने भी जलाया 'कुँवर'
और पानी से भी हम जले.
*****
मर्हले=पड़ाव/ठहरने का स्थान 

Wednesday, April 11, 2012

मौसम तुनक मिज़ाज



कुँवर कुसुमेश 

प्रतिदिन होता जा रहा,मौसम तुनक मिज़ाज.
मानो गिरने जा रही, हम पर कोई गाज.

पर्यावरण असंतुलन,सहन न करती सृष्टि.
इसके कारण ही दिखे,अनावृष्टि-अतिवृष्टि. 

संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
बिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.

पर्यावरण उपेक्षा,पहुँचाये नुकसान.
असमय अपने काल को,बुला रहा इन्सान.

नित बढ़ता शहरीकरण, और वनों का ह्रास.
धीरे धीरे कर रहा,प्रकृति संतुलन नाश.

प्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
तो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
*****

Monday, March 19, 2012

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक......




कुँवर कुसुमेश 

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.

दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.

चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
*****
दौरे-हाज़िर=वर्तमान समय,   क़ाबिले-कुर्सी=कुर्सी के योग्य.
गर्दिशे-अय्याम=संकट के दिन 

Wednesday, March 7, 2012

रंगों की बौछार (दोहे)



कुँवर कुसुमेश 
हरे-गुलाबी-बैगनी,रंगों की बौछार.
लेकर फिर से आ गया,होली का त्यौहार.

मुँह पर चुपड़े रंग कुछ,कुछ हैं मले गुलाल.
कुछ दारु पी टुन्न हैं,होली का ये हाल.

पापड़-गुझिया-सेब-चिप,और कई पकवान.
पावन होली पर्व का , करते हैं ऐलान.

नफ़रत की होली जले,पनपे हर पल प्यार.
देता है सन्देश ये,होली का त्यौहार.

हफ़्तों तक खाते रहो,गुझिया ले ले स्वाद.
मगर कभी मत भूलना, नाम भक्त प्रहलाद.

हिल मिल रहना सीखिए, करते हैं ताकीद.
आते-जाते पर्व ये,पावन होली-ईद.
*****

Wednesday, February 8, 2012

बाल श्रमिक (दोहे)

 

कुँवर कुसुमेश 

बाल श्रमिक बढ़ने लगे,प्रतिदिन कई हज़ार.
इनके जीवन की लगे,नैय्या कैसे पार ?

नन्हे-मुन्नों का उठा,जीवन से विश्वास.
होटल में बच्चे दिखे,धोते हुए गिलास.

कलयुग में क्या है यही,क़ुदरत को मंज़ूर.
बचपन से ही बन रहे ,कुछ बंधुवा मजदूर.

थकी थकी आँखे कहीं,धंसे धंसे से गाल.
बिना कहे ही कह रहे,अपना पूरा हाल.

पतझड़ है तो क्या हुआ,नहीं छोडिये आस.
मन कहता है एक दिन,आयेगा मधुमास.
*****

Sunday, January 29, 2012

सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है.......


कुँवर कुसुमेश 

ऐसा नहीं कि रस्मे-मुहब्बत नहीं रही.
दुनिया में सिर्फ आज शराफ़त नहीं रही.

तुमने तो बेहिसाब मुझे दी है गालियाँ,
मैं भी वो गालियाँ दूं ये आदत नहीं रही.

सज़्दा ख़ुदा के सामने करना फुज़ूल है,
मन में तुम्हारे साफ़ जो नीयत नहीं रही.

दो वक़्त की नसीब हों बच्चों को रोटियाँ,
ऐसी किसी ग़रीब की क़िस्मत नहीं रही.

बेकार हो गया है वफ़ा का वजूद भी,
हर्फ़े-वफ़ा में अब कोई ताक़त नहीं रही.

देखा न एक बार पलट करके भी 'कुँवर'
गोया ख़ुदा को वाक़ई फुरसत नहीं रही.
*****
शब्दार्थ:-
 रस्मे-मुहब्बत =मुहब्बत की रस्म,
हर्फ़े-वफ़ा=वफ़ा शब्द 

Saturday, January 14, 2012

ज़हरीली गैसें (दोहे)




कुँवर कुसुमेश 

ज़हरीली गैसें करें,निर्मित हॉउस-ग्रीन.
उदृत होता जा रहा,ये भी तथ्य नवीन.

निकले वाहन धुएं से,सल्फर,लेड,बेंज़ीन.
रोग कैंसर के प्रमुख,कारक हैं ये तीन.

सी ओ टू के स्रोत हैं,बड़े-बड़े उद्योग.
मानव में पैदा करें,स्वांस नली के रोग.

खनिज स्रोत से निकलती,एस ओ टू, मीथेन.
तेजाबी बरसात है,इन दोनों की देन.

उगल रहे काला धुवाँ,पेट्रोलियम पदार्थ.
सब कुछ स्वाहा उक्ति को,करें न ये चरितार्थ.

*****
बेंज़ीन.-C6H6,सी ओ टू -CO2
एस ओ टू-SO2,मीथेन-CH4