Friday, November 8, 2013

चलन ई-मेल का


--कुँवर कुसुमेश

हो गया मँहगा सफ़र अब रेल का। 

दाम फिर बढ़ने लगा है तेल का।।  

चिट्ठियां इतिहास बनती जा रही हैं ,

आ गया जब से चलन ई-मेल का।। 

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Friday, November 1, 2013

दीवाली के पर्व पर,बरस रहा है नूर..........................


-कुँवर कुसुमेश

दीवाली के पर्व पर,बरस रहा है नूर.
अहंकार तम का हुआ,फिर से चकनाचूर.

अन्यायी को अंत में,मिली हमेशा मात.
याद दिलाती है हमें,दीवाली की रात.

घर घर पूजे जा रहे,लक्ष्मी और गणेश.
पावन दीवाली करे,दूर सभी के क्लेश.

दीवाली का पर्व ये, पुनः मनायें आज.
और पटाखों से बचे,अपना सकल समाज।।

यश-वैभव-सम्मान में,करे निरंतर वृद्धि.
दीवाली का पर्व ये,लाये सुख-समृद्धि.
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शब्दार्थ: नूर=प्रकाश