Tuesday, October 26, 2010


हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो / कर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ
                                    
                                  कुँवर कुसुमेश 

थरथराने लगा आशियाँ - आशियाँ,
फिर डराने लगीं बिजलियाँ-बिजलियाँ.

कोई अखबार देखो किसी दिन भी तुम,
दहशतों में सनी सुर्खियाँ-सुर्खियाँ.

फ़ासला दिन-ब-दिन रोज़ बढ़ता गया,
आपके और मेरे दरमियाँ-दरमियाँ.

पास में है समंदर सभी को पता,
फिर भी जलती रहीं बस्तियाँ-बस्तियाँ.

हौसला हो चराग़ों की मानिंद तो,
कर न पायेंगी कुछ आँधियाँ-आँधियाँ.

साफ़गोई है खतरे से ख़ाली नहीं,
कल मिलेंगी 'कुँवर' धमकियाँ-धमकियाँ.
.............

Saturday, October 16, 2010

अँधेरो से कोई भी डरने न पाए / अँधेरो पे कब्ज़ा रहे रोशनी का

कुँवर कुसुमेश
ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
मगर कम न हो हौसला आदमी का.

अँधेरो से कोई भी डरने न पाए,
अँधेरो पे कब्ज़ा रहे रोशनी का.

समझने को तैयार कोई नहीं है,
किसे फ़र्क समझाऊँ नेकी-बदी का.

अदालत में बीसों बरस केस चलते,
मेयार है मुंसिफ़ो-मुंसिफ़ी का.

ज़रुरत की चीज़ें मुहैया हैं लेकिन,
उन्हें शौक़ बढ़ता गया लक्ज़री का.

सफ़र ज़िन्दगी का ये तय हो सकेगा,
सहारा 'कुँवर'मिल गया जो नबी का.
--------------------------
शब्दार्थ : मेयार - स्तर

Thursday, October 7, 2010

विरासत को बचाना चाहते हो
कुँवर कुसुमेश

विरासत को बचाना चाहते हो ,
कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.

तुम्हारी सोंच पे सब कुछ टिका है,
कि आख़िर क्या कराना चाहते हो.

रियलिटी शो के ज़रिये चैनलों में,
बदन नंगा दिखाना चाहते हो.

अरे ओ पश्चिमी तहज़ीब वालों ,
ये कैसा गुल खिलाना चाहते हो.

हमें पहचान दी शाइस्तगी ने ,
इसी को तुम गँवाना चाहते हो.

'कुँवर' बच्चों के बचपन को बचा लो,
अगर अच्छा बनाना चाहते हो.