Tuesday, November 17, 2015

हर रिश्ता कमज़ोर.......................


पहले तो मजबूत थी,हर रिश्ते की डोर। 
लेकिन अब होने लगा,हर रिश्ता कमज़ोर। 
-कुँवर कुसुमेश

Friday, November 13, 2015

फुलझड़ी के लिए..............



वो मुफ़लिसी में था तैयार ख़ुदकुशी के लिए । 

कि उसका रो रहा बच्चा था फुलझड़ी के लिए। 

बहुत ग़रीब था वो कुछ नहीं खरीद सका ,

बस अपने दिल को जलाया था रौशनी के लिए। 

-कुँवर कुसुमेश

Wednesday, October 21, 2015

मायावी रावण....................


विजयादशमी की हार्दिक बधाई के साथ हाज़िर है एक दोहा :- 

मायावी रावण कहाँ,जलकर हुआ है राख। 

ज़िन्दा है इन्सान में,अब भी वो गुस्ताख़। 

-कुँवर कुसुमेश 

Tuesday, October 20, 2015

ग़ज़लें पंजाबी लिपि में

 गुरदासपुर ,पंजाब से प्रकाशित पंजाबी पत्रिका,रूपांतर, के ताज़ा अंक-86

में मेरी 2 ग़ज़लें पंजाबी लिपि में प्रकाशित:-


Sunday, October 18, 2015

अरहर की दाल................


दो दोहे
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उफ़ अरहर की दाल ने,हाल किया बेहाल। 
दो सौ रुपया प्रति किलो,से ऊपर है दाल।

यूँ अरहर की दाल को,निर्धन से मत छीन। 
निर्धन पायेगा भला , कैसे अब प्रोटीन। । 
-कुँवर कुसुमेश

Friday, September 25, 2015

पुराने वक़्त की जागीर है ये.................


पुराने वक़्त की जागीर है ये। 
सफ़े पर ख़्वाब की ताबीर है ये। 
इसे रक्खा बड़ी हिकमत से मैंने,
जवानी की मेरी तस्वीर है ये। 
-कुँवर कुसुमेश 

Tuesday, September 15, 2015

पुस्तक समीक्षा

 पुस्तक समीक्षा
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ग़ज़ल की मक़बूलियत से भला कौन वाक़िफ़ नहीं है। ग़ज़ल ने अगर उर्दू अदब को मालामाल किया है तो पिछले लगभग तीन दशकों में इसने हिन्दी साहित्य में भी बड़ी मजबूती से अपने पैर जमाये हैं। इस दौरान हिन्दी ग़ज़ल के एक से एक बेहतरीन ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुए हैं। ऐसा ही एक ताज़ा-तरीन ग़ज़ल संग्रह "सराबों में सफ़र करते हुए" इस वक़्त मेरे हाथों में है। रूड़की (उ०प्र०) के जाने-माने साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार जी ने, हिन्दी साहित्य को इस किताब से पहले, छः पुस्तकें दी हैं जिनमे 3 उपन्यास, 2 कहानी सग्रह और 1 ग़ज़ल संग्रह, पानी की पगडण्डी, उल्लेखनीय हैं। 'सराबों में सफ़र करते हुए" इनका दूसरा ग़ज़ल संग्रह है। संग्रह में 102 गज़लें हैं। ग़ज़ल हालाँकि कई बहरों पर देखने को मिलीं इस संग्रह में मगर बहरे-हज़ज मुसम्मन सालिम में लगभग आधे से ज़ियादा हैं। वास्तव में बहरे-हज़ज मुसम्मन सालिम बड़ी प्रचिलित और रसीली बहर है। इसके अर्कान मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन ने तो ग़ज़लकारों पर जैसे जादू कर रक्खा है। लगभग हर ग़ज़लकार इस बहर का मुरीद है। यूँ तो यह बहर मुफ़रद बहरों में से एक है मगर मशहूरो-मारूफ शायर जनाब मुनव्वर राना ने इस बहर पर बेशुमार ग़ज़लें कहकर लोगों को इस बहर का दीवाना बना दिया। इस ग़ज़ल संग्रह में बहरे-हज़ज मुसम्मन सालिम पर ग़ज़लकार जनाब कृष्ण कुमार का एक लाजवाब मतले का शेर क़ाबिले-ग़ौर है:-
उठाने के लिये नुक़्सान तू तैयार कितना है।
तेरा झुकना बताता है की तू खुद्दार कितना है।
पेज-17
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इसी बहर में एक और अच्छा शेर :-
यहाँ खामोशियों ने शोर को बहरा बना डाला,
हमारी ज़िंदगी किन तल्ख़ आवाज़ों पे ठहरी थी।
पेज-18
ऊँचे पदों पर बैठे लोगों की कारगुज़ारी से आहत शायर कह उठता है कि :-
किसी मुफ़लिस को क्या देंगे ये ऊँचे ओहदे वाले,
इन्हीं का पेट भरता है गरीबों के निवाले से।
पेज-30
चारो तरफ फैलते नफरत के कारोबार में भी ग़ज़लकार मुहब्बत की अलख जगाये रखने की पैरवी करता नज़र आता है :-
किसी सूरत भी हो मुम्किन,हुनर से या दुआओं से।
न बुझने दो मुहब्बत के चरागों को हवाओं से।
पेज-39
निम्न अशआर में ग़ज़लकार ने मुहब्बत की डगर पकडे रहने के रास्ते भी सुझाये हैं। इस मतले में रदीफ़ के निर्वाह का भी जवाब नहीं। देखें ;-
फरिश्ता बन नहीं सकते ये माना प्यार में लेकिन,
झरोखा खोल तो सकते हो हर दीवार में लेकिन।
जिसे जितनी ज़रुरत है वो उतना साथ देता है,
मैं खुद को खर्च करता हूँ बड़ी मिक़्दार में लेकिन।
पेज-63
बहरे-रमल मुसम्मन महजूफ में भी शायर का एक शेर देखने क़ाबिल है ;-
प्यास के सैलाब में दर्या किनारा है कहाँ।
डूबते को एक तिनके का सहारा है कहाँ।
पेज-77
पर्यावरण प्रदूषण से एक रचनाकार का चिंतित होना स्वाभाविक है। ऐसे में ग़ज़लकार कह उठता है कि :-
है किसी की दुआ का असर धूप में।
मुझको मिलते रहे हैं शजर धूप में।
पेड़ काटे तो हमने ये सोचा नहीं,
काटनी है हमें दोपहर धूप में।
पेज-91
ग़ज़ल की भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित बोलचाल की है इसीलिए आसानी से ग्राह्य है। ग़ज़ल के शिल्प का ख़ास ख्याल रक्खा गया है जो क़ाबिले-तारीफ़ है। हालाँकि, शायद अनजाने में ही,पहली ग़ज़ल के मतले का मिसरा सानी ऐबे-तनाफ़ुर की गिरफ़्त में गया है। ग़ज़लों में मक़ते का शेर नहीं है जो हिंदी की ग़ज़लों में अब अक्सर नहीं दिखता अतः इसे ऐब नहीं माना जाना चाहिए जबकि उर्दू के ग़ज़लगो इसे ज़रूरी समझते हैं। छपाई साफ़-सुथरी और कवर पेज खूबसूरत है।
ग़ज़लकार को दिली मुबारकबाद। शायर अदबी सफर पर पूरी कामयाबी के साथ ताउम्र गामज़न रहे , यही दुआ है।
अयन प्रकाशन ,नई दिल्ली से वर्ष 2015 में छपी इस पुस्तक का मूल्य रु० 220/- है।
पुस्तक हेतु बधाई देने अथवा पुस्तक खरीदने के लिए ग़ज़लकार से उनके मोबाइल नं० 9917888819 या 9897336369 पर संपर्क किया जा सकता है।
कुँवर कुसुमेश
4/738 विकास नगर,लखनऊ-226022
मोबा:09415518546

Sunday, September 13, 2015

मीठी ज़बान हिन्दी है...................


एक ऊँची उड़ान हिन्दी है। 
देश की आन-बान हिन्दी है।
जो सभी के दिलों में घर कर ले,
ऐसी मीठी ज़बान हिन्दी है।
-कुँवर कुसुमेश 

Friday, September 4, 2015

कन्हैया आ भी जाओ...............


मधुर-सी तान पे मुरली बजैय्या आ भी जाओ। 
कि ताक़तवर हुआ अब तो रुपैया आ भी जाओ।
बचाये जालिमों से कौन हम सब को मेरे कान्हा, 
भरे हैं कंस दुनिया में कन्हैया आ भी जाओ ।
 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें 
-कुँवर कुसुमेश 

Thursday, August 13, 2015

मुक्तक कुँवर कुसुमेश के


  आँख में आँसू छुपे हैं शबनमी परिवेश के। 
वह क़लम क्या जो लिखे कविता बिना संदेश के। 
आपके है सामने इक मज्मुअः की शक्ल में,
देखिये कैसे लगे "मुक्तक कुँवर कुसुमेश के" ।
-कुँवर कुसुमेश  

Friday, August 7, 2015

तग़ज़्ज़ुल



शेर कहने में तग़ज़्ज़ुल का ख़ास महत्व है। तग़ज़्ज़ुल यानी शेर में किसी चमत्कृत करने वाली बात से गहराई लाना।  तग़ज़्ज़ुल के बिना शेर सपाट बयानी हो कर रह जाता है जो फन्ने-अरूज़ के लिहाज़ से शेर की ज़रूरतों को पूरा नहीं करता, भले ही वज़्न/अरकान,बहर  आदि के लिहाज़ से वो एकदम दुरुस्त ही क्यों न हो। तग़ज़्ज़ुल को माहिरे-फ़न उस्ताद ख्वाब अकबराबादी ने तीन हिस्सों में परिभाषित किया है। 

1-क़दीमी तग़ज़्ज़ुल:-रिवायती लबो-लहज़े में चमत्कृत करने वाली बात,मसलन-हुस्नो-इश्क़ और जामो-मीना पर 
2-जदीदी तग़ज़्ज़ुल:-हुस्नो-इश्क़ और जामो-मीना से इतर चमत्कृत करने वाली बात

3-फ़िक्री तग़ज़्ज़ुल:-कोई गहरी चिंतनपरक चमत्कृत करने वाली बात


ग़ज़ल अपने शुरूआती दौर में क़दीमी तग़ज़्ज़ुल से लबरेज़ रहती थी। समय के बदलाव के साथ साथ ग़ज़ल हुश्नो-इश्क़ और जामो- मीना से बाहर निकली और उसने क़दीमी तग़ज़्ज़ुल की दीवार लांघ कर जदीदी तग़ज़्ज़ुल की और अपना रुख किया। जदीदी तग़ज़्ज़ुल के आते ही इसके लबो-लहज़े में भी तब्दीलियाँ आयीं। ऐसे में तग़ज़्ज़ुल से समझौता न करते हुए इसने अरबी,फारसी और उर्दू के अलावा बोलचाल की भाषा को भी आत्मसात करना शुरू किया और हिन्दी, प्रांतीय भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के बोलचाल के, यूँ कहे कि अासानी से ग्राह्य होने वाले, शब्दों को लेते हुए उड़ान भरी। जदीदियत की ज़मीन पर इसके पैर पड़ते ही फन्ने-अरूज़ ने भी नए सिरे से सर उठाना शुरू किया और कुछ फन्नी रिआयतों की ज़रूरत सामने आने लगी । ऐसे में आहिस्ता आहिस्ता फन्ने-अरूज़ में कुछ रिआयती बदलाव आये जिसका लाभ नई पीढ़ी को मिलने लगा। इन ज़रूरी रिआयतों का ज़िक्र अरूज़ी शायरों ने भी करना शुरू किया। नतीजा ये है कि आज हिंदी में भी तग़ज़्ज़ुल से भरपूर लाजवाब ग़ज़लें कही जा रही है। जो लोग ग़ज़ल से दिली तौर पर जुड़े हैं वो एक अच्छे पाठक भी हैं और अपने अध्ययन से अपनी जानकारियों को update करते रहते हैं मगर जो ऐसा नहीं कर रहे, वो update नहीं हो पाते और लकीर के फ़क़ीर हो कर रह जाते हैं यह एक दुखद पहलू भी है। 

ज़रा सोचिये अब कोई डॉक्टर एंटीबायोटिक की जगह पचासों वर्ष पुरानी teramycin,tetracycline या penicillin prescribe करता है। नहीं। क्योकि डॉक्टर्स अपडेट हो रहे हैं और उन्हें latest एंटीबायोटिक की जानकारी है और तभी वो सफल है।
-कुँवर कुसुमेश
Mob:09415518546

Monday, July 27, 2015

आखिरी सलाम कलाम साहब............................


हाज़िर है आपको आखिरी सलाम कलाम साहब :-

लाज़िमी है आँख नम होना किसी के प्यार में। 
खासकर जब आदमी अच्छा लगे व्यवहार में। । 
आपने कुछ ख़ास ही दिल में बना ली थी जगह,
आप जैसे  लोग  अब  मिलते  कहाँ संसार में। । 
-कुँवर कुसुमेश 

Friday, July 17, 2015

हुक्मे-रब्बी है........................


हुक्मे-रब्बी है, हमें राह पे लाने के लिये । 
ये महज़ रस्म नहीं सिर्फ निभाने के लिये। 
प्यार से ईद मनाना है गले मिल-जुल कर,
चाँद निकला है हमें इतना बताने के लिये।
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 ईद मुबारक हो 
-कुँवर कुसुमेश  
हुक्मे-रब्बी=ईश्वरीय आदेश 

Wednesday, June 24, 2015

अब्र बरसे हैं.........................


लोग पानी को खूब तरसे हैं। 
तब कहीं जाके अब्र बरसे हैं। 
देर क्यों लग रही  मेरे मौला,
ख्वाब मेरे तो मुख़्तसर से हैं। 
-कुँवर कुसुमेश
 अब्र-बादल ,मुख़्तसर-थोड़े 

Saturday, June 20, 2015

योग दिवस


"अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" का प्रारम्भ होना भारत के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है। 
बाबा रामदेव जी की विनम्रता,सहनशीलता और योग-परिश्रम की दाद देनी होगी।   ऐसे ही लोग युग पुरुष कहलाते हैं। 

इस ऐतिहासिक अवसर पर 
मेरे कुछ दोहे :-

योग दिवस प्रारम्भ यूँ ,मानो कोई पर्व। 
सचमुच इस उपलब्धि पर,भारत को है गर्व।। 

दर्ज हुआ इतिहास में,देखो इक्किस जून। 
योग मनोमष्तिष्क को,देगा बड़ा सुकून।। 

बिन औषधि बिन डॉक्टर,मानव बने निरोग। 
जिससे यह सम्भव हुआ,कहते उसको योग।। 

बरसों के बीमार को,दो दिन में आराम। 
खुद ही करके देखिये,प्रातः प्राणायाम।। 
-कुँवर कुसुमेश 
मोबा:09415518546 

Tuesday, June 16, 2015

स्वास्थ्य को खूब निखारो..........


यारो इक्किस जून का,करिये खूब प्रचार। 
योग दिवस उस रोज़ से,प्रकटेगा इस बार। 
प्रकटेगा इस बार,योग से रोग भगेंगे। 
जय जय बाबा राम देव,सब लोग कहेंगे। 
करके प्राणायाम,स्वास्थ्य को खूब निखारो। 
बिन पैसे हो ठीक,जियो मस्ती में यारो। 
-कुँवर कुसुमेश 

Friday, June 5, 2015

सभ्यता गई..........................


आगे बढ़ती पीढ़ी अपने-अपने ही रास्ता गई। 
पिछली पीढ़ी से क्या लेना दुनिया को ये बता गई। 
कल तक तो सभ्यता के कारण भारत का सर ऊँचा था,
बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड के चक्कर में सभ्यता गई। । 
-कुँवर कुसुमेश 

Saturday, April 25, 2015

ज़लज़ला


मतलबी इंसान है मतलब में अपनी मुब्तला। 
बारहा पर्यावरण को चोट पहुँचता चला।। 
इसमें क़ुदरत का ज़रा भी दोष हो ऐसा नहीं,
आदमी की भूल का परिणाम है ये ज़लज़ला।। 
-कुँवर कुसुमेश 

Tuesday, April 14, 2015

बरबाद फसलें.........................


कई दिन से जारी लगातार बारिश। 
ये गर्मी के मौसम में खूंखार बारिश। 
हुई जा रही अबकी  बरबाद  फसलें,
अजी कब रुकेगी धुआँधार बारिश।। 
-कुँवर कुसुमेश 

Tuesday, March 31, 2015

अजीब चीज़ बनाई है व्हाट्स अप...............


हर आदमी मोबाइल की माला रहा है जप। 
घर के ज़रूरी  काम भी होने लगे हैं ठप।। 
कैसे सुबह से शाम हुई कुछ पता नहीं,
ऐसी अजीब चीज़ बनाई है व्हाट्स अप।। 
-कुँवर कुसुमेश 

Monday, March 16, 2015

वाट्स ऐप-युग


मिनटों में हो वाइरल,मन की हर इक बात। 
वाट्स ऐप-युग में मिली,सबको ये सौगात।। 
-कुँवर कुसुमेश

Saturday, March 14, 2015

जाड़ा कब तक है.........................



आधा मार्च खत्म है फिर भी ठंडक है। 

अब कहना मुश्किल है जाड़ा कब तक है।। 

लेकिन अबकी फूल खिले हैं अति सुन्दर,

अबकी हरियाली तो यार चकाचक है।। 

-कुँवर कुसुमेश