Sunday, June 26, 2011


मलिहाबादी आम
(कुण्डली)

कुँवर कुसुमेश

दुनिया में मशहूर हैं,मलिहाबादी आम
तुक्मी,चौसा,दशहरी,और बहुत से नाम.


और बहुत से नाम.कहे हापुस से चौसा.
हमसे ज्यादा नहीं बिके तुम अब तक मौसा.


जोर जोर से बहस चली मुन्ना-मुनिया में.
मैंने खाये आम हैं ज्यादा  इस दुनिया में .


***                 ***                 ***


सस्ते हैं बाज़ार में, मीठे भी हैं आम.
ले लो,ले लो,लूट लो,मचा हुआ कुहराम.


मचा हुआ कुहराम,बहुत मीठे हैं खा लो.
ठेले पर खाओ,घर की खातिर बंधवा लो.


थैला भर ले गया आम घर हँसते-हँसते.
बीबी ने भी कहा , आम सचमुच हैं सस्ते.
                                                              ***                                         

Tuesday, June 14, 2011


 नीम 

(दोहे)

कुँवर कुसुमेश 

रेशा-रेशा नीम का,आता सबके काम.
टहनी,पत्ती,फूल,फल,मिल जाते बिन दाम.

नीमों पर आते दिखे,गर्मी में फल-फूल.
गर्मी का मौसम अतः,है इनके अनुकूल.

करें नीम की कोपलें,साफ़ निरंतर खून.
दातों की रक्षा करे,बिन पैसे दातून.

आसपास की वायु को,करे प्रदूषण मुक्त.
स्वच्छ वायु के वास्ते,अतः नीम उपयुक्त.

हरे निबौली नीम की,भांति भांति के रोग.
अतः अनेको व्याधि में,हो इसका उपयोग.

बिन पैसे औषधि मिली,ये क़ुदरत का खेल.
दाद,खाज,कृमि की दवा,मित्र ! नीम का तेल.

जिसके घर के सामने,खड़ा हुआ है नीम.
उसके घर मौजूद है,सबसे बड़ा हकीम. 
*****

Saturday, June 4, 2011


पर्यावरण दिवस पर एक ग़ज़ल 


कुँवर कुसुमेश 

पेड़ कटने  से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.

जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .

हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ.

जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
उनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ .

अनवरत  बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
   
****************