Tuesday, December 31, 2013
Friday, November 8, 2013
Friday, November 1, 2013
दीवाली के पर्व पर,बरस रहा है नूर..........................
-कुँवर कुसुमेश
दीवाली के पर्व पर,बरस रहा है नूर.
अहंकार तम का हुआ,फिर से चकनाचूर.
अन्यायी को अंत में,मिली हमेशा मात.
याद दिलाती है हमें,दीवाली की रात.
घर घर पूजे जा रहे,लक्ष्मी और गणेश.
पावन दीवाली करे,दूर सभी के क्लेश.
दीवाली का पर्व ये, पुनः मनायें आज.
और पटाखों से बचे,अपना सकल समाज।।
यश-वैभव-सम्मान में,करे निरंतर वृद्धि.
दीवाली का पर्व ये,लाये सुख-समृद्धि.
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शब्दार्थ: नूर=प्रकाश
Thursday, October 24, 2013
Friday, September 13, 2013
Monday, May 27, 2013
Tuesday, May 21, 2013
Thursday, March 28, 2013
Friday, March 22, 2013
Monday, March 11, 2013
उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .
कुँवर कुसुमेश
तड़पता आदमी सब्रो-क़रार क्या जाने .
जो नफ़रतों में पला हो वो प्यार क्या जाने .
चमन की बात ही करना है तो चमन से करो,
ख़िज़ाँ , ख़िज़ाँ है महकती बहार क्या जाने .
दिलों के बीच में उठती दिखाई देती है,
उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .
मिले हैं अपने पराये सभी से जिसको फ़रेब,
भरोसा कैसे करे,ऐतबार क्या जाने .
बिखरना,टूटना सीखा है तड़पती शै ने,
ये दिल है ये भला बातें हज़ार क्या जाने .
न जाने दोस्त समझता है या कोई दुश्मन,
करे 'कुँवर' कोई किसमें शुमार क्या जाने .
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