Saturday, October 16, 2010

अँधेरो से कोई भी डरने न पाए / अँधेरो पे कब्ज़ा रहे रोशनी का

कुँवर कुसुमेश
ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
मगर कम न हो हौसला आदमी का.

अँधेरो से कोई भी डरने न पाए,
अँधेरो पे कब्ज़ा रहे रोशनी का.

समझने को तैयार कोई नहीं है,
किसे फ़र्क समझाऊँ नेकी-बदी का.

अदालत में बीसों बरस केस चलते,
मेयार है मुंसिफ़ो-मुंसिफ़ी का.

ज़रुरत की चीज़ें मुहैया हैं लेकिन,
उन्हें शौक़ बढ़ता गया लक्ज़री का.

सफ़र ज़िन्दगी का ये तय हो सकेगा,
सहारा 'कुँवर'मिल गया जो नबी का.
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शब्दार्थ : मेयार - स्तर

33 comments:

  1. क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
    1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
    2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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  2. वाह सर आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं।

    ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
    मगर कम न हो हौसला आदमी का.
    इसे पढकर शैलेन्द्र जी की दो पंक्तियां याद आ गई।
    तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन कर
    अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर

    बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
    भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोsस्तु ते॥
    विजयादशमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    काव्यशास्त्र

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  3. बहुत वढिया । मालिक का सहारा मिल जाये तो फिर जिन्दगी का सफर कितना ही मुश्किल हो क्या फर्क पडता है। यदि एशो आराम की चीजों का शौक निरंतर वढता चला जायेगा तो आम जरुरत की चीजें जिनसे जिन्दगी आरामसे कट सकती है उसका कोई मानी नहीं रहेगा । हर शेर उत्तम

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  4. ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
    मगर कम न हो हौसला आदमी का.

    बेहद उम्दा मतले से शुरू हो कर मक़्ते तक का ख़ूबसूरत सफ़र तय किया इस ग़ज़ल ने
    बहुत ख़ूब!

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  5. ब्लाग जगत की दुनिया में आपका स्वागत है। आप बहुत ही अच्छा लिख रहे है। इसी तरह लिखते रहिए और अपने ब्लॉग को आसमान की उचाईयों तक पहुंचाईये मेरी यही शुभकामनाएं है आपके साथ
    ‘‘ आदत यही बनानी है ज्यादा से ज्यादा(ब्लागों) लोगों तक ट्प्पिणीया अपनी पहुचानी है।’’
    हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    मालीगांव
    साया
    लक्ष्य

    हमारे नये एगरीकेटर में आप अपने ब्लाग् को नीचे के लिंको द्वारा जोड़ सकते है।
    अपने ब्लाग् पर लोगों लगाये यहां से
    अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से

    कृपया अपने ब्लॉग पर से वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा देवे इससे टिप्पणी करने में दिक्कत और परेशानी होती है।

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  6. वाह सर आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं।

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  7. ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
    मगर कम न हो हौसला आदमी का.
    सच कहा, ज़िन्दगी में हौसला ज़रूरी है.
    अंधरों से कोई भी डरने न पाए,
    अंधरों पे कब्ज़ा रहे रोशनी का.
    उम्मीद बंधाता शेर...
    समझने को तैयार कोई नहीं है,
    किसे फ़र्क समझाऊँ नेकी-बदी का.
    नसीहत आमेज़...

    सफ़र ज़िन्दगी का ये तय हो सकेगा,
    सहारा 'कुँवर'मिल गया जो नबी का.
    मतले से मक़ते तक, हर शेर उम्दा है.

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  8. कुंवर जी बहुत सुन्दर लिखा है आपने... और अच्छी सोच भी है.. बहुत सुन्दर ..दशहरा पर शुभकामनाएं

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  9. "andheron pe kabjaa rahe roshni ka" yah bahut sundar hai.meri bahut shubhkaamnaayen.

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  10. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें

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  11. अत्यंत प्रभावशाली लेखन। शुभकामनाएं!

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  12. ये हौसला कम न होने पाए मानव की ज़िन्दगी में ... फिर तो हर सफ़र आसान और हर मंज़िल क़रीब है।

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  13. ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
    मगर कम न हो हौसला आदमी का.

    बहुत सुन्दर प्रभावशाली लेखन !

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  14. .


    कुछ रचनायें अच्छी लगती हैं, कुछ बेहद अच्छी लगती हैं और दिमाग में जगह बना लेती हैं। आपकी ये रचना इतनी ही बेहतरीन है। किस लाइन की तारीफ़ करूँ और और किसे छोड़ दूँ भला ? सभी एक से बढ़कर एक।

    आभार।

    .

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  15. 6.5/10

    उम्दा ग़ज़ल के दीदार यहाँ जरा कम ही होते हैं
    ग़ज़ल मैच्योर भी लगी और ताज़ी भी
    कुछ तो ख़ास था कि शेर कई बार पढ़े भी और भीतर उतरे भी.
    और हाँ ख़ास बात .. आपने 'लक्ज़री' शब्द जिस तरह फिट किया.. आनंद आ गया

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  16. ज़रुरत की चीज़ें मुहैया हैं लेकिन,
    उन्हें शौक़ बढ़ता गया लक्ज़री का!
    विलासिता के आकर्षण में आज हम उलझते जा रहे हैं।

    पूरी ग़ज़ल हमारे आस-पास के जीवन से जुड़ी है। कल्पना-लोक में विचरने के बजाय आप यथार्थ की ज़मीन से जुड़्कर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं...जदीद शाइरी को इसकी बहुत ज़रूरत है!

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  17. समझने को तैयार कोई नहीं है,
    किसे फ़र्क समझाऊँ नेकी-बदी का.

    bahut khoob kunwar ji

    behtareen rachna ...

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  18. .

    कुंवर जी,

    कृपया 'नबी' का अर्थ बता दीजिये।

    .

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  19. आदरणीयवर

    अच्‍छा लगा

    खूब कह रहे हैं। अल्‍लाह करे जोर ए कलम और जियादा ।

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  20. अपने आस पास के अंधेरे समयों की विसंगतियो को दर्शाती रचना जो विषम परिस्थितियों में भी हौसला उम्मीद की लौ जलाए रखने की प्रेरणा देती है. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  21. कुँवर जी..
    जिंदगी को बहुत पिसा है आपने
    खयालो के पत्थरो पर..
    तब जाके ये रंग आया है
    आपकी ग़ज़लों में ....
    मुझे ज़हीन बात ज़हीन लोग और जहीन ग़ज़ले पसंद है ....
    आप यूँ ही लिखते रहें और हम यूँ ही पढ़ते रहें ...
    धन्यवाद ....

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  22. बहुत अच्छी लगी रचना |बधाई
    आशा

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  23. .

    कुंवर जी,

    आपने मेरी पोस्ट पर आकर 'नबी' का अर्थ बताया , आपकी विनम्रता को नमन।

    यह एक नया शब्द है मेरे लिए। बेहद खूबसूरत। इसका उपयोग ग़ज़ल में बहुत अच्छा लगा।

    आभार आपका।

    .

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  24. प्रभावशाली लेखन्।

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  25. ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
    मगर कम न हो हौसला आदमी का.

    ज़रुरत की चीज़ें मुहैया हैं लेकिन,
    उन्हें शौक़ बढ़ता गया लक्ज़री का!

    बेहद खूबसूरत। मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए आभार...

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  26. कुंवर जी, बहुत ही प्रभावशाली कविता है।

    http://sudhirraghav.blogspot.com/
    नफरत से पैदा करते हैं और पाक कहते हैं

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  27. kunwar ji aapke post me pehli baar aayi hun. aapki dohe w gazalon ka sangrah padhne ka mauka mila to jaroor padhungi. is blog me sabse pehle jo line padhi thi wah yah thi behad pasand bhi aayi
    ----- अंधरों से कोई भी डरने न पाए / अंधरों पे कब्ज़ा रहे रोशनी का

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  28. भाई कुसुमेश जी,
    आपकी गजलों पर क्या कहूं। बहुत कुछ याद आने लगता है। लखनऊ की वे गोष्ठियां, वे बहसें और कुछ साथियों का रूठना, मनाना। लखनऊ को बहुत मिस करता हूं। जिन साथियों को मैंने लखनऊ छोड़ते समय जवान छोड़ा था, वे अब या तो अधेड़ हो चुके हैं, या फिर बूढ़े। लखनऊ के साथियों से मिलने और उनसे फिर उसी तरह गुफ्तगू करने का मन होता है। आपके यहां की बैठकें और साहित्यिक चर्चाएं याद आती हैं, तो मन में अजीब सा दर्द उभर आता है। लेकिन फिर सोचता हूं कि पापी पेट के लिए भटकना ही शायद लिखा है। लखनऊ क्या छोड़ा, मानो कविता से नाता टूट गया। हां, व्यंग्य और आलेख जरूर अपने अखबार की जरूरत के मुताबिक लिख लेता हूं। इन दिनों पत्रकारिता पर आधारित उपन्यास ‘चिरकुट’ लिख रहा हूं जो संभवत: दो महीने में पूरा हो जाएगा।

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  29. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 3 - 11 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज ...

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  30. अच्छा लिखा है...सामयिक है...आप का लिखा पहली बार पढ़ा...बेहद अच्छा लगा .

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  31. बहुत अच्छे लिंक्स पढ़ने को मिले.
    मुझे स्थान दिया,आभारी हूँ आपका,संगीता जी.

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  32. कुंवर जी सादर प्रणाम ! बड़े दिनों बाद आपका शिरवाड लेने आ पाया...

    ज़रुरत की चीज़ें मुहैया हैं लेकिन,
    उन्हें शौक़ बढ़ता गया लक्ज़री का.

    सफ़र ज़िन्दगी का ये तय हो सकेगा,
    सहारा 'कुँवर'मिल गया जो नबी का.

    और जब ये सहारा मिल जाता है तो यात्रा पथ के कांटे स्वतः ही फूल बन जाते हैं भाई श्री प्रणाम !

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  33. अँधेरो से कोई भी डरने न पाए,
    अँधेरो पे कब्ज़ा रहे रोशनी का.
    ..बेहद प्रेरणादायी कब्यांजलि......शुभकामनायें !!

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