Sunday, November 14, 2010

समन्दर भी डराना जानता है

कुँवर कुसुमेश

धरातल  डगमगाना  जानता है,
फ़लक ग़ुस्सा दिखाना जानता है.

सुनामी से चला हमको पता ये,
समन्दर भी डराना जानता है.

बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
ख़ुदा भी आज़माना जानता है.

समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
परिंदा फड़फड़ाना जानता है.

मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है. 
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क़फ़स-पिंजरा , खौफे-ख़ुदा -अल्लाह से डर

30 comments:

  1. समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
    बहुत खूब कुंवर साहब . आप का अंदाज़ ए बयान और आप के ख्यालात दोनों आला दर्जे के हैं..
    मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
    'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.

    और यह तो वोह चाभी है जिसे कोई जान जाए तो एक नेक इंसान बन जाए.
    आपकी ग़ज़ल की जितने तारीफ की जाए कम है...

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  2. बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
    ख़ुदा भी आज़माना जानता है......वाह !! बहुत खूब ...

    मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
    'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है. .... उम्दा ....

    हर शेर बहुत खूबसूरत है कुंवर जी ... बहुत अच्छी लिखी है ग़ज़ल .... शुभकामनाएं ...

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  3. समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

    ---

    जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराती खूबसूरत पंक्तियाँ।


    .

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  4. मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा...
    sateek aur jeevan ke goodh ki paribhaashaa...

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  5. कुंवर जी..बेहद सुन्दर लिखा है..

    समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

    क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
    परिंदा फड़फाड़ाना जानता है.

    मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
    'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.

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  6. बहुत खूबसूरत और ज़िंदगी के करीब गज़ल है ..

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  7. हर शेर उम्दा।
    यह ग़ज़ल दिल के साथ दिमाग में भी जगह बनाती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    विचार-परिवार

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  8. धरातल डगमगाना जानता है,
    फ़लक ग़ुस्सा दिखाना जानता है.
    मतले से...
    मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
    'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.
    मक़ते तक....
    बहुत उम्दा अश’आर...खूबसूरत ग़ज़ल.

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  9. 5.5/10

    छोटे बहर की सुन्दर ग़ज़ल
    कई शेर ताजगी से भरे हैं .. जो ध्यान खींचते हैं

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  10. समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

    क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
    परिंदा फड़फड़ाना जानता है.

    bahoot hi sunder evam hakiqat se bhari hui nazm... bahhot khoob

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  11. क़फ़स में क़ैद कर पाना है मुश्किल,
    परिंदा फड़फड़ाना जानता है.

    bahut hee sundar...

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  12. ... bahut sundar ... behatreen ... badhaai !

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  13. सुनामी से चला हमको पता ये,
    समन्दर भी डराना जानता है.

    बहुत खूब ....!!
    बड़े साइंस दां बनते हो बन लो ,
    ख़ुदा भी आज़माना जानता है.

    जी खुदा की मर्ज़ी के आगे ये साइंस दां क्या करें .....

    समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

    वाह ......सारे के सारे शे'र प्रकृति का गुणगान करते ..से ....

    मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
    'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है.

    जी खुदा के घर अजाब और सबाब सभी होता .....
    सभी शे'र ज़िन्दगी को सीख देते से ......!!

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  14. ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है !
    आदमी के गुरुर पर करारा प्रहार है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ
    www.marmagya.blogspot.com

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  15. समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.


    प्रकृति का गुणगान करते बहुत उम्दा शेर...... बहुत खूब

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  16. Lajawaab ... bahut hi khoobsoorat aur naye andaaj ke sher .. soonaami ka bimb lakaam ka raha ...

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  17. वैसे तो सभी ने बहुत कुछ लिख दिया.
    इस ग़ज़ल में आपने सत्यता को रेखांकित किया है .
    बहुत अच्छी ग़ज़ल है .
    आपको इसके लिए आभार !

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  18. आदरणीय कुंवर कुसुमेश जी
    नमस्कार !
    अनेक कारणों से आपके यहां उपस्थिति विलम्ब से दर्ज़ करवा पा रहा हूं , यद्यपि आपकी शानदार रचनाएं पढ़ता रहा हूं ।

    प्रस्तुत ग़ज़ल का एक-एक शे'र क़ाबिले-ता'रीफ़ है ।
    समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.

    वाह कुंवरजी !

    …और मासूमजी, क्षितिजाजी, राजेशजी, नूतनजी, शाहिदजी, और हीरजी सहित मेरे जैसे कितने पाठकों की नज़र में चढ़े इस शे'र के लिए तो आपको जितनी बधाई दी जाए कम है …
    मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
    'कुंवर' अंतिम ठिकाना जानता है.

    पूरी ग़ज़ल के लिए नमन !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  19. समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है.
    बहुत उम्दा अश’आर...खूबसूरत ग़ज़ल.
    ................दिल से मुबारकबाद|

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  20. poori nazm ka sar antim do laino main....
    khuda ka khauf ho to shayad insaan itni kood-faand hi na kare...shkriya

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  21. प्रकृति से छेड़छाड़ के डर को गजल में बहुत खूब व्यक्त किया है आपने

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  22. बेहतरीन गजल ...शुभकामनायें !!!

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  23. वाह कुँवर अब तो खुदा भी
    बात अपनी मनवाना जानता है

    मज़ा आ गया पढ़ कर। बहुत खूबसूरत लिखा है आपने।

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  24. मुझे गज़ल या फ़ज़ल लिखनी नही आती है बस जरा तुकबंदी...क्षमा करें...

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  25. "समझना मत कभी क़ुदरत को गूंगा,
    ये गूंगा गुनगुनाना जानता है."
    ऐसे तो हर शेर लाजवाब है पर मेरा पसंदीदा शेर तो ये ही है
    लाजवाब प्रस्तुति

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