Thursday, May 17, 2012

वैध समलैंगिकता हुई.........................



कुँवर कुसुमेश 

आत्मा से कभी पूछ ले.
कौन-सी राह पर तू चले.

वैध समलैंगिकता हुई,
उफ़ अदालत के ये फैसले.

पश्चिमी तर्ज़ पर देश में,
हल हुए हैं सभी मसअले

ठोकरें-ठोकरें हर क़दम,
ज़िंदगी के यही मर्हले.

आग  ने भी जलाया 'कुँवर'
और पानी से भी हम जले.
*****
मर्हले=पड़ाव/ठहरने का स्थान 

35 comments:

  1. मेरे मेल बॉक्स में ये था ...
    @ वैध समलैंगिकता हुई आपकी टिप्पणी के इंतज़ार में.
    तो मन म्रें ये विचार आए ..
    क्या कहूं, अब तो वैध हो ही गई।
    ***
    छोटी बहर की इस शानदार गज़ल के लिए आपको बधाई तो दे ही सकता हूं। और जो मुझे सबसे अच्छा शे’र लगा उसे कोट करना चाहूंगा ...
    आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.
    सही है, हम पानी से जले हैं।

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  2. समलैंगिकता विदेशों में मान्य है तो रहे. इस बीमारी को वैध बना कर अपने घर पालना अच्छा नहीं. आपकी चिंता जायज़ है.

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  3. आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.

    सही कहा, सटीक चिंता!!

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  4. आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.

    सटीक चिंतन .... विचारणीय ...

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  5. समलैंगिकता भले ही कानून वैध है, लेकिन क्या यह सामाजिक द्रष्टि से उचित है
    विचारणीय अच्छी प्रस्तुति,,,,,,

    MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
    MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....

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  6. ज्वलंत मुद्दे पर सार्थक प्रस्तुति………चिन्तनीय

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  7. आत्मा से कभी पूछ ले.
    कौन-सी राह पर तू चले.

    Nice.

    Please see

    "रूहानी इल्म के लिए ज़ाहिरी इल्म भी ज़रूरी है Ruhani ...":
    http://sufidarwesh.blogspot.com/2012/05/ruhani-haqiqat.html

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  8. आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.

    बहुत खूब.......!

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  9. सत्य हैं .....वक्त बदल गया हैं

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  11. समलैंगिक |
    ताप दैहिक |
    सुख भौतिक -
    कोप दैविक ||
    अब तो घर घर
    अत्यधिक -
    सुह्रुद्जन
    होंगे दिक् ||

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  12. ठोकरें-ठोकरें हर क़दम,
    ज़िंदगी के यही मर्हले.

    आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.
    छोटी बहर की ज़मीनी ग़ज़ल अपने समय के यथार्थ को झेलती देखती ....अवश .

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  13. आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.
    वाह कुसुमेश जी! इस दौर का समूचा दर्द इस एक शेर में सिमटा हुआ है ! आपकी लेखनी का जवाब नहीं !
    ग़ज़ल का कोई भी शेर बेज़बा नहीं हैं !

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  14. आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.

    बहुत सार्थक लिखा है ...
    पश्चिम से प्रभावित हम अपनी पहचान ...अपनी सभ्यता खो रहे हैं ...!!

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  15. उपयोगी सन्देश देती रचना !

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  16. मेरी दो लाइन आपको समर्पित

    संसार की रीतें बहुत हैं पुरानी
    जीना हमें हैं नहीं उन्हें दुहरानी
    किन्तु न तोड़ें घर की दीवारें
    मात्र हम पाटें सामाजिक दरारें

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  17. aapne bahut jwalant mudda apni rachnamein uthaya haai ....sarthak bhav

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  18. इंसान ने प्रकृति के साथ-साथ अपनी काया के साथ भी खिलवाड़ किया है..

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  19. आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.

    बहुत ही सार्थक एवं सामयिक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद ।

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  20. आग ने भी जलाया 'कुँवर'
    और पानी से भी हम जले.
    भारतीय संस्कृति को तार तार कर दिया है ऐसे लोगों ने और प्रशासन ने कालिख पोत के रख दी है ....आपने इस ज्वलंत मुद्दे पर अच्छा लिखा

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  21. परदेशी भारत से अच्छाई सीखने को आतुर हैं और हम निरे मुर्ख वहां की गंदगी को अपने माथे पर सजा रहे हैं....

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  22. Samajh me nahee aata,kya sahee hai aur kya galat!

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  23. उफ़ अदालत के ये फैसले...
    जायज़ है आपकी चिंता... पश्चिमी हमारी सभ्यता की झुक रहे हैं और हम उनकी बीमारी को अपना रहे हैं, बड़ा अजीब लगता है...

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  24. बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...

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  25. आप की चिंता जायज है..पश्चिमी हमारी सभ्यता को धुन की तरह चाट रही है और हम सिर्फ देख रहे हैं....सार्थक प्रस्तुति..

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  26. पश्चिमी तर्ज़ पर देश में...
    हल हुए हैं सभी मसअले...

    घर की तो साहब बस मूंछें ही मूंछें हैं...सारा कानून दुनिया का उतार डाला...पर अमलीजामा पहनाने में फिसड्डी रह गये...कम शब्दों में गहरे तीर...

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  27. पश्चिमी तर्ज़ पर देश में,
    हल हुए हैं सभी मसअले


    Waah..... Bahut Badhiya

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  28. सार्थक सन्देश देती हुई छोटी भर की बड़ी ग़ज़ल .सुन्दर अलफ़ाज़ मन में उतर जातें हैं ,कुशुमेश जब कोई ग़ज़ल सुनाते हैं .बधाई .

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  29. पश्चिमी तर्ज़ पर देश में,
    हल हुए हैं सभी मसअले

    ....बहुत सच....बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...

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  30. पश्चिमी तर्ज़ पर देश में,
    हल हुए हैं सभी मसअले ...

    कडुवा सच है ये आज की भारत का ... पर सच तो यही है की हम सब पाश्चात्य होते जा रहे हैं ...
    बहुत ही प्रभावी लेखन ..

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  31. बहेतरीन और सही फ़रमाया आपने प्रगति के नाम पर धरातल में जा रहे है हम|
    संस्कृति का विनाश- क्या होगा इस देश का ?

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  32. ठोकरें-ठोकरें हर क़दम,
    ज़िंदगी के यही मर्हले.
    satik rachna .....

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  33. जिस्म की जो भूख थी,विकृत हुई
    जी नहीं लगता,चलो अब चल चलें

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  34. बदलते समय की बदलती दास्तां।

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