Friday, November 8, 2013

चलन ई-मेल का


--कुँवर कुसुमेश

हो गया मँहगा सफ़र अब रेल का। 

दाम फिर बढ़ने लगा है तेल का।।  

चिट्ठियां इतिहास बनती जा रही हैं ,

आ गया जब से चलन ई-मेल का।। 

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12 comments:

  1. सटीक छंद ... अब चिट्ठियों की महक कहां रही ...

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  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    शुभकामनायें आदरणीय

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  3. इ-मेल भी अब तो ज़्यादातर फ़ॉर्वर्डेड आते हैं...

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (10-11-2013) को सत्यमेव जयते’" (चर्चामंच : चर्चा अंक : 1425) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. WAAH KYA BAAT HAI BACHAPAN KI YAAD AA GAI

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  6. सुन्दर छंदों में सटीक बात
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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  7. सुंदर रचना , बधाई आपको ।

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  8. वाह वाह
    बहुत खूब

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  9. बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
    शुभकामनाएं.

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