Friday, July 27, 2012

तुलसी रस का व्याधि में सर्वोत्तम उपयोग




कुँवर कुसुमेश 

ज्वर-जुकाम-कृमि-नासिका,या हो खासी रोग.

तुलसी रस का व्याधि में,सर्वोत्तम उपयोग.

सर्वोत्तम उपयोग,बिना पैसे घर चंगा.

निर्धनता भी डाल न पाए कोई अड़ंगा.

क्यारी या गमले में तुलसी रखें लगाकर.

पास न आने दें जुकाम-हिचकी-खासी-ज्वर.

Wednesday, July 18, 2012

सुपर स्टार राजेश खन्ना को दिली और भाव-भीनी श्रद्धांजलि :-


उम्र भर जिसमें रहा था वो ठिकाना छोड़ के.
चल दिया पंछी यहाँ का आबो-दाना छोड़ के.
क्या नहीं था पास जब तक तुम हमारे साथ थे,
है अभी भी पास सब कुछ मुस्कुराना छोड़ के.
                                        -कुँवर कुसुमेश 


                                             

Wednesday, June 13, 2012

चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा............................



कुँवर कुसुमेश 

लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
वक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.

चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.

कर रहा ख़ामोशियों की वो हिमायत,
है नहीं क़ाबू जिसे अपनी ज़ुबाँ पर.

आज के साइंस दानों का है दावा,
कल बसेगी एक दुनिया आसमाँ पर.

कशमकश ही कशमकश है जानते हैं,
नाज़ है फिर भी हमें हिन्दोस्ताँ पर.

है 'कुँवर' मुश्किल मगर उम्मीद भी है,
कामयाबी पाऊँगा हर इम्तिहाँ पर.
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Monday, June 4, 2012

विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे




कुँवर कुसुमेश 

पर्यावरण बनाइये,आप प्रदूषण मुक्त.
हिल मिल करके कीजिये,सब प्रयास संयुक्त.

कभी कहीं भू-स्खलन,कभी कहीं भूचाल.
दूषित पर्यावरण से ,जन-जीवन बेहाल.

सुखमय वातावरण हो,हो आमोद-प्रमोद.
हरी-भरी दिखती रहे,सदा प्रकृति की गोद.

दूषित पर्यावरण है,आप मनायें खैर.
जमा चुका है पैर यूँ,ज्यूँ अंगद के पैर.

सारी दैवी आपदा,के तुम जिम्मेदार.
पहले मनमानी किया,लेकिन अब लाचार.

वन संरक्षण हेतु लो,सामूहिक संकल्प.
तब शायद कुछ हो सके,समय बचा है अल्प.
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Thursday, May 17, 2012

वैध समलैंगिकता हुई.........................



कुँवर कुसुमेश 

आत्मा से कभी पूछ ले.
कौन-सी राह पर तू चले.

वैध समलैंगिकता हुई,
उफ़ अदालत के ये फैसले.

पश्चिमी तर्ज़ पर देश में,
हल हुए हैं सभी मसअले

ठोकरें-ठोकरें हर क़दम,
ज़िंदगी के यही मर्हले.

आग  ने भी जलाया 'कुँवर'
और पानी से भी हम जले.
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मर्हले=पड़ाव/ठहरने का स्थान 

Wednesday, April 11, 2012

मौसम तुनक मिज़ाज



कुँवर कुसुमेश 

प्रतिदिन होता जा रहा,मौसम तुनक मिज़ाज.
मानो गिरने जा रही, हम पर कोई गाज.

पर्यावरण असंतुलन,सहन न करती सृष्टि.
इसके कारण ही दिखे,अनावृष्टि-अतिवृष्टि. 

संघटकों का प्रकृति के,बिगड़ गया अनुपात.
बिगड़ रहे हैं इसलिए दिन पर दिन हालात.

पर्यावरण उपेक्षा,पहुँचाये नुकसान.
असमय अपने काल को,बुला रहा इन्सान.

नित बढ़ता शहरीकरण, और वनों का ह्रास.
धीरे धीरे कर रहा,प्रकृति संतुलन नाश.

प्राणदायिनी वायु की,अगर आपको चाह.
तो फिर पर्यावरण को,करिये नहीं तबाह.
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Monday, March 19, 2012

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक......




कुँवर कुसुमेश 

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.

दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.

चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
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दौरे-हाज़िर=वर्तमान समय,   क़ाबिले-कुर्सी=कुर्सी के योग्य.
गर्दिशे-अय्याम=संकट के दिन