Sunday, February 27, 2011


गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से

कुँवर कुसुमेश 

अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.

खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.

हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.

सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.

जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.
   *********

90 comments:

  1. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से

    बहुत खूब ...शुभकामनायें आपको !!

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  2. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
    आश है तो साँस है | अच्छा लगा

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  3. .

    Kunwar ji ,

    It's a beautiful ghazal , reminding me of another lovely ghazal which goes thus - " Gulon mein rang bhare , baadlon bahar chale ".

    Thanks and regards ,

    .

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  4. bahut hi sunder gajal likhi hai apne

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  5. बेहद खूबसूरत और आशावादी रचना

    आपकी रचना मे कुछ जोडने की छोटी सी कोशिश

    अश्कों को सहेज के रख ले तू आज आँखों मे
    कभी तो खुशी बन के मोती बन जायेगे फिर से

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  6. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.

    क्या कहूं ग़ज़ल तो बेहद खूबसूरत है और हर शेर पर वाह निकल रही है
    पर जो आत्म विश्वास आपने दिखाया है वह गजब है....यही विश्वास होना चाहिए....बहुत खूबसूरत

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  7. उम्मीदों की रौशनी लिए एक बेहतरीन ग़ज़ल. आभार.

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. "ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
    कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से."

    बहुत खूब....
    बढ़िया ग़ज़ल है जनाब
    मुबारक हो

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  10. कुंवर जी ,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है.
    वीणा जी ने सच लिखा है हर शेर पर वाह वाह निकल रही है.
    ब्लॉग के कुछ मुक्कमिल शायरों में आप का नाम भी है.

    हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
    किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.
    बहुत खूब.
    सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    बहुत खूब लिखा है आपने.और मक्ता तो बहुत ही बढ़िया है.
    जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
    उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.
    आपकी शायरी को ढेरों सलाम.

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  11. asha se bharpoor gazal likhi hai aapne..
    bahut acchi lagi..
    abhaar..!

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  12. "खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से."....
    बहुत खूब....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है.....

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  13. "हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,

    किसी की याद ही आये कभी कभी फिर से."

    कुश्मेश्जी...

    पूरी ही ग़ज़ल खूबसूरती के साथ कुछ सन्देश देती है....

    किस पर दाद दूँ.....समझ नहीं पा रही हूँ !!

    बस "इरशाद" ही कह सकती हूँ ........!!

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  14. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    बहुत सुंदर रचना .....

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  15. बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

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  16. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.

    जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
    उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.

    इसे याद रखूंगी, अच्छा लगा |

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  17. सच में आपकी शायरी जगाने वाली ही है....
    आशाओं से भरी ताजगी वाली शायरी....
    प्रणाम.

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  18. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    puri ho jaye ye soch ... dua ki hai her roj

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  19. sir ji namaskar ji
    bahut hi sunder parastuti
    badhai

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  20. वाह कुवँर साहब वाह
    क्या शेर कहा

    जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
    उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.


    बधाई

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  21. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.

    कुंवर जी वाह...वा...आपकी एक और शसक्त ग़ज़ल...बेहतरीन...हर शेर हीरे की तारक तराशा हुआ और चमदार...मेरी दाद कबूल करें...

    नीरज

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  22. आशावादी एवं प्रेरणादायक रचना है.

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  23. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    वाह। एक मुकम्मल गजल। आप ऐसे ही लिखते रहें और हम आपका अनुसरण करते रहे।

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  24. माना आजकल इतना बदल गया गोया,
    कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  25. जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
    उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से..
    जरूर आपकी ग़ज़ल में है वो ताकत, खूबसूरत आशावादी रचना..

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  26. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से

    इस शेर के आगे तो कुछ भी नहीं है कुंवर जी ... उम्दा ग़ज़ल

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  27. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.

    शानदार गज़ल!!!!!

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  28. आद. कुंवर जी,

    ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
    कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.
    ग़ज़ल का हर शेर इतना उम्दा है कि जी करता है दाद देता ही रहूँ !
    अच्छे को बस अच्छा कह देने से मन भी तो नहीं भरता !
    आपकी लेखनी को नमन !

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  29. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
    उसे 'कुँवर' की जगायेगी शायरी फिर से.......

    बेहतरीन ग़ज़ल...
    हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है....
    हार्दिक बधाई।

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  30. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से।

    खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से।

    वाह, कुसुमेश जी , वाह।
    क्या खूब ग़ज़ल लिखी है आपने।
    आपकी ग़ज़लों की बात ही कुछ और है।

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  31. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
    kya khoob kha hai
    baki ashaar bhi sunder

    ----- sahityasurbhi.blogspot.com

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  32. बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़.

    सादर

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  33. एक-एक शे’र लाजवाब। देर तक मन में गूंजती है यह ग़ज़ल।
    आपकी लेखनी को सलाम!!

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  34. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01-03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  35. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से

    बहुत खुबसूरत रचना |
    शब्दों का खुबसूरत ताना - बाना |

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  36. भाई कुशमेश जी कंटेंट की ताजगी लिए एक खूबसूरत गज़ल पढ़ने को मिली आपको बहुत बहुत बधाई |सादर

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  37. bahut khubsurat gajal hai.
    hamare dil ka daricha khula hi rahata hai
    kisi ki yaad hi aye kabhi kabhi phir se....
    bahut sunder....

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  38. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.


    बेहद शानदार अशआर.....
    बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।

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  39. @ सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.

    आमीन !
    बहुत बढ़िया रचना सुन्दर भावों से परीपूर्ण

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  40. बात भी खूब कही...

    जो सुकून आप को पढ़कर मिला
    ऐसी नज्म के लिए शुक्रिया...

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  41. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    hum sabhi yahi chahte hai .ati sundar .

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  42. kamlesh ji ,

    pahli bar aapki rachana ko padha , shayad der ho gayi . bahut achhi rachana ,kavya dharm ke sakaratmak paksha ko bakhubi varnit kiya hai .
    sundar shilp dhanyavad .

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  43. जरूर जगाएगी आपकी शायरी ! बहुत ही अच्छी गज़ल ! धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ !

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  44. आदरणीय कुशमेश जी
    नमस्कार !
    बहुत खूब....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है

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  45. आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

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  46. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
    bahut khoobsoorat aur vishvaspoorn matla
    खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

    waah !behad optimistic sher jo dilon men hausala aur himmat bedar kar de
    badhai

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  47. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
    --
    गजल बहुत खूबसूरत है!

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  48. वाकई आदमी कोशि‍शें तो पूरी करता है जि‍न्‍दगी को जि‍न्‍दगी की तरह जीने की, पर अक्‍सर मौत को जीता है.. और आखि‍रकार

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  49. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

    ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
    कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.

    आदमी के हालात का और दर्द का बेहतरीन चित्रण किया है।

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  50. This comment has been removed by the author.

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  51. एक जीवन्त संदेश देती रचना...

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  52. हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
    किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.

    Bahut khoob ...is lajawaab gazal par dheron badhaai ... kamaal ka likhte hain aap Kunvar ji ..

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  53. सुन्दर और भावुक ..धन्यवाद..

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  54. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

    बहु खूबसूरत गज़ल..सार्थक और लाज़वाब शेर..

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  55. बेहद खूबसूरत..उम्दा ग़ज़ल...लाज़वाब..दाद कबूल करें.

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  56. झकझोर कर जगाने वाली गजल.

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  57. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    पर ऐसा सोचना अब सार्थक प्रतीत नहीं होता ...आदमी के आदमी होने के चांस कम ही लगते हैं

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  58. वाह !........अँधेरे मेँ रोशनी दिखाने वाली गजल । बहतरीन विचारोँ को प्रस्तुत किया है बावू जी आपने । आभार।

    " इक दिल के उसने हजार टुकड़े किये "

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  59. वाह !........अँधेरे मेँ रोशनी दिखाने वाली गजल । बहतरीन विचारोँ को प्रस्तुत किया है बावू जी आपने । आभार।

    " इक दिल के उसने हजार टुकड़े किये.........रचना "

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  60. कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    अति उतम आनंदित करने वाले अंदाज है आपके बड़े दिनों के बाद कुछ अच्छा पढने को मिला
    धन्यवाद

    कोई पूछता क्यों नहीं इन्सान से कि तू इन्सान क्यों नहीं !
    http://sagarmal.blogspot.com/2010/12/blog-post_4660.html

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  61. कुसुमेश जी । दो बार जुङ गये ब्लाग्स की एडीटिंग में आपका
    ब्लाग असावधानी से रिमूव हो गया था । जिसका मुझे खेद है ।
    अब आपका ब्लाग मध्य पंक्ति में जुङ गया है । मुझे सचेत
    करने के लिये आपका बेहद धन्यवाद ।

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  62. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

    सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    दोनो शेर दिल को छू गये। बहुत ही खूबसूरत गज़ल है। बधाई।

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  63. आदरणीय कुसुमेश जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    पूरी ग़ज़ल काबिले-ता'रीफ़ है…
    और यह शे'र हासिले-ग़ज़ल …

    सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाए आदमी फिर से


    इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद और भरपूर दाद है…

    ♥ महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! ♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  64. बहुत बढ़िया रचना सुन्दर भावों से परीपूर्ण|
    आप को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  65. ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
    कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.


    सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.

    बहुत बढ़िया रचना ..........
    आप को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  66. बहुत उम्दा ग़ज़ल ,,,,,,हर शेर बेहतरीन

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  67. देर से आने कल इए माफी की गुहार...
    बाकी आपको पता ही है की क्या हुआ था???
    ग़ज़ल के लिए... हमेशा की तरह बहुत अच्छी...
    मुझे भी सीखनी है...

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  68. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से...
    रोशन सवेरे हों सबके लिए ...

    सकारात्मक विचार हर लिहाज़ से मेरी पहली पसंद हैं और यह कविता भी ऐसी ही है ...
    बहुत से ब्लॉग की फीड नहीं मिल पाने के कारण पढना देर से हुआ..

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  69. मेरे लिए तो "वाह" हर एक शे'र शानदार!
    लिखते रहें, पढने की इच्छा बनी रहेगी!
    --
    व्यस्त हूँ इन दिनों-विजिट करें

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  70. बहुत सुन्दर सर ताजगी भर दिया आप ने
    सुन्दर गजल
    बहुर सुन्दर

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  71. अँधेरा चीर के आयेगी रोशनी फिर से,
    ये शाख देखना हो जायेगी हरी फिर से.
    wah.....bahut sundar....

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  72. बहुत सुन्दर गजल ..बधाई.

    _______________
    पाखी बनी परी...आसमां की सैर करने चलेंगें क्या !!

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  73. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

    pehli baar aya hu. accha laga apko parhna

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  74. बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

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  75. अन्तरार्ष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  76. हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
    किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.

    आती ही होगी .....
    इन्तजार जारी रखें ....
    बहुत सुंदर सारे शे'र .....

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  77. क्या ग़ज़ल लिखी है आपने? सर जी .....बेहद ही उम्दा ग़ज़ल लिखी है। मुझे तो इसका हर शेर पसंद आया। आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ।

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  78. खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
    गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.

    वाह क्या बात है .... बेहतरीन बात कही है आपने !

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  79. आपके ब्‍लाग पर पहले भी आता रहा हूं। यह अलग बात है कि टिप्‍पणी नहीं की। जीवन में अगर सकारात्‍मक सोच हो तो सब कुछ संभव है।
    आपसे एक ही अनुरोध है नकारात्‍मक विचारों और ब्‍लागों से दूर रहें।

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  80. सकारात्मक और प्रेरित करने वाली पंक्तियां

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  81. मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
    बहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने ! बेहतरीन प्रस्तुती! बधाई!

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  82. सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
    कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
    बहुत खूबसूरत गज़ल है ! हर एक शेर लाजवाब है और कमाल का अंदाज़े बयाँ है ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !

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  83. tareef ke liye shavd kam padenge .
    sakaratmak ravaiya bada pyara sandesh de gaya .....

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